Joshimath Sinking: जोशीमठ की तबाही में अंधाधुंध निर्माण कितना जिम्मेदार, 5 पॉइंट्स में समझें

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Jan 14, 2023, 07:31 AM IST

जोशीमठ की तबाही के लिए विकास को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. (तस्वीर-PTI)

Joshimath Sinking: वैज्ञानिकों की चेतावनी के बाद भी जोशीमठ में अंधाधुंध निर्माण हुआ है. NTPC परियोजना पर भी सवाल उठ रहे हैं.

डीएनए हिंदी: उत्तराखंड (Uttarakhand) का जोशीमठ (Joshimath) शहर, अब खंडहर में तब्दील होने वाला है. वहां पुनर्वास बेहद कठिन है क्योंकि जमीन तेजी से धंस रही है. घरों में गहरी दरारें पड़ गई हैं जो किसी भी वक्त ढह सकते हैं. सड़कें धंस रही हैं. जोशीमठ स्थित आर्मी बेस की 20 से 25 इमारतों का हाल ऐसा है कि सेना को शिफ्ट करना पड़ा है. रणनीतिक तौर पर बेहद अहम शहर की तबाही देश देख रहा है. सरकार आज नागरिकों को बचाने के लिए शहर को खाली करा रही है. समय से अगर सरकार और अंधाधुंध निर्माण करने वाले लोग चेत जाते तो शायद जोशीमठ की तबाही रोकी जा सकती थी.

जोशीमठ की त्रासदी में NTPC प्रोजेक्ट का कितना बड़ा रोल था, भूमिगत सुरंग का दरारों (Joshimath Sinking) को बढ़ाने में कितना रोल था, उत्तराखंड सरकार जांच के लिए रिपोर्ट तैयार करने में जुट गई है. जोशीमठ में बड़े स्तर पर हुए भूस्खलन की जांच के लिए 8 संस्थान काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इस शहर में निर्माण रुकता, बड़ी आबादी न बसती तो यह शहर सुरक्षित रह सकता था. आइए 5 पॉइंट्स में जानते हैं कि अंधाधुंध निर्माण जोशीमठ की तबाही के लिए क्यों जिम्मेदार है.

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1. कमजोर जमीन पर बसा सघन शहर

जोशीमठ की जमीन बेहद नाजुक है. यह भूस्खलन की जमीन पर बसा शहर है, जहां धार्मिक पर्यटन की वजह से अंधाधुंध निर्माण हुए हैं. वैज्ञानिकों ने 1978 की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि अगर यहां निर्माण नहीं रोका गया तो यह शहर त्रासदी झेल सकता है. यहां विकास के नाम पर जो काम हुआ है, जोशीमठ के डूबने की एक वजह यह भी है.

2. विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना

जोशीमठ के लोग तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना को भी जोशीमठ की तबाही की एक वजह मानते हैं. 520 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षणता वाली यह परियोजना स्थानीय निवासों के लिए सिरदर्द बन गई. इसके निर्माण के लिए शहर में अंधाधुंध उत्खनन किया गया, जिससे जोशीमठ की जमीन दरकी.

3. ऑल वेदर रोड जोशीमठ की तबाही के लिए जिम्मेदार?

जोशीमठ धार्मिक रूप से बेहद अहम शहर है. यह चारधाम परियोजना का एक अहम पड़ाव है. जोशीमठ में साल के 12 महीने चलने लायक रोड बनाई जा रही है, जिससे चारधाम यात्रा सुगम हो. स्थानीय निवासी यह भी मानते हैं कि 900 किलोमीटर लंबी बारहमासी सड़क का निर्माण भी जोशीमठ के डूबने के लिए जिम्मेदार है. हेलंग और मारवाड़ी के बीच चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना फिलहाल रुक गई है. इसके अलावा इस शहर में धार्मिक पर्यटन के नाम पर पहाड़ काटकर घर बसाए गए हैं, जिनका खामियाजा आज लोग भुगत रहे हैं.
 
4. लगातार वैज्ञानिकों की वॉर्निंग और सरकार की चुप्पी

जोशीमठ पर वैज्ञानिक लगातार वॉर्निंग दे रहे थे. वैज्ञानिकों का कहना था कि जोशीमठ की जमीन बेहद हल्की है. लगातार बारिश और नालों के जाम होने की वजह से जमीनें और कमजोर हुई हैं. वैज्ञानिकों की वॉर्निंक के बावजूद पूरे क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण हुए. कभी बिजली प्रोजेक्ट के नाम पर, कभी पर्यटन के नाम पर तो कभी सड़क चौड़ीकरण के नाम पर. विकास की कीमत वहां की जनता ने चुकाई है. दशकों से बसा शहर, वीरान हो रहा है. अब इस शहर को फिर से रहने लायक बनाना, फिलहाल बेहद मुश्किल है. खुद वैज्ञानिकों के लिए यह अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है कि कैसे इस शहर में त्रासदी रोकी जाए.

5. NTPC परियोजना कितनी जिम्मेदार?

जोशीमठ की तबाही में NTPC प्रोजेक्ट की भूमिका क्या है, सरकार यह जांच कराएगी. हाल ही में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी थी कि टनल बोरिंग मशीनों के बजाय टनल के काम में विस्फोटकों के इस्तेमाल से जोशीमठ में भूस्खलन हो सकता है. जोशीमठ में भूस्खलन की जगह भू-धंसाव हुआ है. जमीनें व्यापक स्तर पर धंसती जा रही हैं. 720 से ज्यादा घरों में दरारें हैं. हजारों लोगों को राहत शिविरों में बसाया गया है. असुरक्षित ढांचों को रेड मार्क कर दिया गया है और उन्हें गिरा दिया जाएगा. आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में विध्वंस का काम पहले ही शुरू हो चुका है. जोशीमठ की तबाही में NTPC प्रोजेक्ट को उत्तराखंड के लोग सबसे बड़ा विलेन मान रहे हैं.

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40 साल से मिल रही थी वॉर्निंग, क्या कर रही थी सरकार?

वैज्ञानिक कोई बात सतही आंकलन से नहीं कहते हैं. किसी रिपोर्ट को तैयार करने में सालों की मेहनत लगती है. वैज्ञानिकों ने 4 दशक पहले कहा था कि यहां अंधाधुंध निर्माण न किए जाएं. सरकारों ने जोशीमठ में विकास परियोजनाओं को कभी रोका नहीं, बल्कि और बढ़ावा दिया. न तो जोशीमठ की जमीन ऐसे विकास के लिए तैयार थी, न ही वहां की भौगोलिक स्थिति. पहाड़ काटे जाएंगे, पेड़ काटे जाएंगे तो जमीनें दरकेंगी.  विकास की कीमत अब वहां की स्थानीय जनता चुका रही है. एक पूरा शहर, खंडहर हो गया है.

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