डीएनए हिंदी: पश्चिम बंगाल (West Bengal) के 11 जिलों में बीते कुछ सप्ताह में काला बुखार या काला अजार (Kala Azar or Black fever) के मामले बढ़ रहे हैं. इन जिलों में कम से कम 65 लोग काला अजार से पीड़ित हुए हैं. पश्चिम बंगाल से काला अजार खत्म हो चुका था लेकिन एक बार फिर बढ़ते मामलों ने स्थानीय प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है. झारखंड (Jharkhand) में काला अजार से बीते 8 सालों में पहली मौत भी हुई है. अगर सही वक्त पर इलाज न किया जाए तो काला अजार के मामले 95 फीसदी तक बेहद घातक साबित हो सकते हैं. आइए जानते हैं काला अजार के लक्षण, उपाय और बचाव.
क्या है काला अजार या विसरल लीशमैनियासिस?
काला-अजार या विसरल लीशमैनियासिस (Leishmaniasis) एक प्रोटोजोआ परजीवी रोग है. यह बीमारी मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज़ के काटने से फैलता है. यह उष्णकटिबंधीय इलाकों में होने वाली बीमारी है, जिससे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं. सैंडफ्लाइज़ भूरे रंग के होते हैं और उनके शरीर पर बाल होते हैं. ये'लीशमैनिया डोनोवानी' नाम के परजीवी से संक्रमित होती हैं.
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वेक्टर सैंडफ्लाई कीचड़ भरे घरों की दरारों में रहता है. अंधेरे और नम घरों में इसके पाए जाने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक लीशमैनियासिस के 3 मुख्य रूप हैं जिनमें से काला अजार सबसे गंभीर है.
कौन लोग सबसे ज्यादा होते हैं प्रभावित?
काला अजार से प्रभावित होने वाले ज्यादातर लोग बेहद गरीब तबके के होते हैं. कुपोषणष जनसंख्या विस्थापन, खराब आवास और कमजोर प्रतिरक्षा के लोग इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. WHO के मुताबिक लीशमैनियासिस वनों की कटाई और शहरीकरण जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों से भी जुड़ा हुआ है.
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2020 में WHO की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक
2020 में, WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक 90 फीसीद से ज्यादा मामलों सिर्फ 10 देशों में हैं. ब्राजील, चीन, इथोपिया, इरिट्रिया, भारत, केन्या, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन ऐसे देश हैं, जहां काला अजार के सबसे ज्यादा केस सामने आते हैं.
काला अजार के लक्षण क्या हैं?
कई दिनों तक बुखार का अनियमित तौर पर सामने आना, वजन कम होना, प्लीहा और यकृत का बढ़ना और एनीमिया इसके ज्ञात लक्षणों में से एक है. इसकी वजह से त्वचा शुष्क और पतली हो सकती है. त्वचा बेहद रूखी हो सकती है. बाल झड़ने लगते हैं. हल्के त्वचा वाले लोगों में, हाथ, पैर, पेट और चेहरे की त्वचा का रंग भूरा हो सकता है.
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यही कारण है कि NCVBDC के मुताबिक इस बीमारी को 'ब्लैक फीवर' भी कहते हैं. लीशमैनियासिस का इलाज होता है. सही इलाज से लोगों की जान बचाई जा सकती है. इस बीमारी में रोगियों को जल्द ट्रीटमेंट देने की जरूरत होती है. अगर सही समय पर इलाज मिल जाए तो लोगों की जान बचाई जा सकती है.
उपचार में क्या शामिल है?
ब्लैक फीवर और काला अजार के ट्रीटमेंट के लिए एंटी-लीशमैनियल दवाएं उपलब्ध हैं. WHO वेक्टर कंट्रोल को अपनाने के लिए मिशन चलाता है. वेक्टर कंट्रोल के तहत कीटनाशक, स्प्रे, कीटनाशक, जालों को हटाने का काम किया जाता है. सैंडफ्लाइज़ की संख्या को कम करके ही रोग के फैलाव को रोका जा सकता है.
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भारत सरकार ने साल 2015 तक इस बीमारी को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा था. यह समय सीमा कब की खत्म हो गई है लेकिन काला अजार का खतरा नहीं टला है. इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए राष्ट्रव्यापी उन्मूलन अभियान चलाया गया है लेकिन अब तक बीमारी खत्म नहीं हुई है.
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