ऑपरेशन मेघदूत, जिसमें भारत ने बर्फ के रेगिस्तान में चटा दी थी पाकिस्तान को धूल

Written By मेजर अमित बंसल (रिटा.) | Updated: Apr 13, 2024, 10:24 PM IST

13 अप्रैल 1984 को भारतीय सैन्य इतिहास में एक स्वर्णिम दिन था. इस दिन भारतीय जवानों ने ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तानी सेना के मंसूबों को ध्वस्त कर हतिरंगा फहराया था.

आज से चालीस साल पहले 13 अप्रैल 1984 को बैसाखी के दिन भारत ने न केवल पाकिस्तान और चीन बल्कि पूरी दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर और इसके आसपास की चोटियों पर तिरंगा फहराया था. सियाचिन ग्लेशियर 1949 के कराची समझौते के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बना हुआ था. ये इलाका इतना दुर्गम था कि भारी ठण्ड, बर्फीले तूफान, जगह बदलते ग्लेशियर और मीलों गहरी बर्फ की दरारों के चलते किसी के पास वहां जाने का साहस नहीं था. लेकिन इसके सामरिक महत्व को जानते हुए भारत के लिए इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण रखना आवश्यक था और यहीं से सियाचिन की कहानी शुरू हुई थी.

आइए जानते हैं क्या है ऑपरेशन मेघदूत 
भारत ने पगले ही यह सोच लिया थ कि इस क्षेत्र के सामरिक महत्व के कारण, इस पर किसी भी तरह पाकिस्तान या चीन का नियंत्रण नहीं होना चाहिए. भारत का ये डर यकीन में तब बदल गया जब पाकिस्तान ने 1963 में एक समझौते के तहत शक्सगाम घाटी चीन को सौंप दी थी. सियाचिन क्षेत्र रणनीतिक रूप से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है, जहां यह उत्तर में शक्सगाम घाटी पर निगाह रखता है, वहीं पश्चिम में गिलगित बाल्टिस्तान की ओर से लेह तक आने वाले मार्गों को नियंत्रित करता है. इसके साथ ही, पूर्वी दिशा में स्थित प्राचीन काराकोरम दर्रे पर भी अपना पूरा नियंत्रण रखता है.


ये भी पढ़ें-'एक झटके में मिटा दूंगा हिन्दुस्तान की गरीबी' Rahul Gandhi का दावा, जानें मोदी सरकार में घटी या बढ़ी गरीबी


 

ऑपरेशन के पहले पाकिस्तान ने शक्सगाम घाटी चीन को देने के तुरंत बाद, इस क्षेत्र में कई अंतर्राष्ट्रीय पर्वतारोहण अभियानों को भेजना शुरू कर दिया था. उसके इस कदम के पीछे दो कारण थे. पहला कारण था दुनिया के सामने इस क्षेत्र पर अपना और अपने देश का हिस्सा जाहिर करना और दूसरा कारण था इस इलाके पर अपना सम्पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना था. 

बेहतरीन युद्ध योजना और भारतीय तैयारी पाकिस्तानी सेना ग्लेशियर के इलाके में युद्ध करने में सक्षम थी. योजना को सफल बनाने के लिए भारतीय सेना ने कई अलग अगल आयामों में काम किया. सबसे पहले उन्होंने 1982 में चुनिंदा सैनिकों को एक अभियान के रूप में अंटार्कटिका भेजा जिससे उन्हें ऐसे माहौल की चुनौतियों को समझने में मदद मिले. दूसरे, भारत ने इस ऑपरेशन के लिए वो सैनिक जो गढ़वाल, कुमाऊं, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसी पहाड़ियों से थे, और बचपन से ही पहाड़ों से अच्छी तरह वाकिफ थे.

पिछले चालिस सालों से जारी है ऑपरेशन मेघदूत
ऑपरेशन मेघदूत पिछले चालीस साल से निरंतर जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ जम्मू-कश्मीर समस्या का राजनीतिक समाधान नहीं हो जाता. ऑपरेशन मेघदूत अपने आप में एक बहुत ही अनोखा अभियान है क्योंकि इतिहास में कभी भी किसी भी सेना ने ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं किया, जहां सेना को शून्य से पचास डिग्री नीचे के तापमान में, सामान्य से आधी ऑक्सीजन में और अत्यधिक दुर्गम क्षेत्र में चालीस सालों तक कोई युद्ध लड़ना पड़े. यह भारतीय सैन्य नेतृत्व के दृढ़ संकल्प और भारतीय सैनिकों की वीरता के कारण ही संभव हुआ है.

DNA हिंदी अब APP में आ चुका है. एप को अपने फोन पर लोड करने के लिए यहां क्लिक करें.

देश-दुनिया की Latest News, ख़बरों के पीछे का सच, जानकारी और अलग नज़रिया. अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और वॉट्सऐप पर.