History of Congress Party: कैसे हुआ कांग्रेस पार्टी का गठन? क्यों पड़ी जरूरत और अबतक कौन-कौन रहा अध्यक्ष, जानें सबकुछ

कुलदीप सिंह | Updated:Aug 31, 2022, 01:33 PM IST

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की कवायद तेज हो गई है.

History of Congress: 28 दिसंबर 1885 को एलेन ओक्टेवियन ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी. वह इटावा के कलेक्टर रहे थे. आजादी के बाद अधिकांशतः पार्टी का अध्यक्ष पद गांधी परिवार के पास रहा है.

डीएनए हिदीः देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (congress) इन दिनों गुटबाजी और अंदरूनी विरोध का सामना कर रही है. कई बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं. पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की मांग हो रही है. कांग्रेस हाईकमान ने इस मांग को स्वीकार कर लिया है. 17 अक्टूबर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराए जाएंगे. देश की सबसे पुरानी और मुख्‍य विपक्षी पार्टी कांग्रेस आज से 136 साल पुरानी है. इस पार्टी का इतिहास आजादी के पूरे संघर्ष से जुड़ा हुआ है. आखिर इस पार्टी की स्थापना हुआ कैसे थी और इस पार्टी के गठन की पीछे क्या उद्देश्य था, विस्तार से समझते हैं. 

कैसे हुई कांग्रेस की स्थापना? 
कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान 28 दिसंबर 1885 को हुई थी. एलेन ओक्टेवियन ह्यूम (Allan Octavian Hume) 1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे. ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. वह थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य भी थे. उन्होंने 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया. उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. कांग्रेस के संस्थापकों में ए. ओ. ह्यूम, दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने. शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खि‍लाफ आंदोलन शुरू हुए.

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1907 में कांग्रेस में बने दो दल
1907 में कांग्रेस में दो दल बन चुके थे. इनमें था गरम दल और दूसरा नरम दल. गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे. नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे. दरअसल गरम दल पूर्ण स्वराज की मांग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था. प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकिय पद (अर्थात डोमिनियन स्टेट्स) की मांग की गई. ठीक इसके जद में खिलाफत मोमेंट भी शुरु हुआ जिसमें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना गया है. वहीं भारत वापस लौटने के बाद गांधी जी को साल 1919 में चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली. वहीं अली बंधुओं के नेतृत्व में चल रहे खिलाफत आंदोलन में गांधी जी को मुखिया बनया गया. जालियावाला बाग हत्याकांड के पश्चात गांधी कांग्रेस के महासचिव बने. उनके मार्गदर्शन में कांग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गई.

आजादी के बाद सत्ता में आई
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद 1952 में पहली बार आम चुनाव कराए गए. इसमें कांग्रेस चुनकर सत्ता में आई. 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था. इस साल हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस की कुर्सी छीन ली. हालांकि तीन साल के अंदर ही 1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई. 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1991, 2004, 2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की. आजादी लेकर अब तक कांग्रेस में करीब 50 बार विभाजन हो चुका है. कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन 1967 में हुआ जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम INC (R) रखा. 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम INC कर दिया.

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कांग्रेस में संगठन कैसे करता है काम

ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (AICC): राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव, खजांची, पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.

प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC): हर राज्य में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता है.

कांग्रेस संसदीय दल (CPP): राज्यसभा और लोकसभा में पार्टी के सांसद संसदीय दल का हिस्सा होते हैं.

कांग्रेस विधायक दल (CLP): राज्य स्तरीय इस ईकाई में राज्य की विधानसभा में पार्टी विधायक सीएलपी के सदस्य होते हैं. अगर किसी राज्य में कांग्रेस की सरकार है तो वहां का मुख्यमंत्री ही विधायक दल का नेता होता है.

- युवाओं, छात्रों, महिलाओं, व्यापारियों के लिए पार्टी की अलग अलग विंग है- छात्रों के लिए नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI), युवाओं के लिए इंडियन यूथ कांग्रेस (IYC) है.

- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 9 सितंबर 1938 में 'नेशनल हेराल्ड' नाम से एक अखबार निकाला था. इसे नेहरू के मुखपत्र के तौर पर देखा गया. पैसों की कमी के चलते साल 2008 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया.

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कांग्रेस का राजनैतिक इतिहास
कांग्रेस के राजनैति इतिहास की बात करें तो आज़ादी से लेकर 2014 तक, 16 आम चुनावों में से, कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत जीता है और 4 में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया. इस तरह कुल 49 वर्षों तक वह केंद्र सरकार का हिस्सा रही. कांग्रेस ने देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. पहले जवाहरलाल नेहरू (1947-1965) थे. 2014 और 2019 के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया है. जवाहरलाल नेहरू (1947–64) तक करीब 17 साल तक वो प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद गुलज़ारीलाल नन्दा पीएम बने. फिर लाल बहादुर शास्त्री उसके बाद इन्दिरा गांधी. फिर राजीव गांधी उसके बाद पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव और फिर मनमोहन सिंह ने कांग्रेस में रहते हुए प्रधानमंत्री की कमान संभाली.  

2000 में आखिरी बार हुआ था चुनाव
कांग्रेस ने नवंबर 2000 में अध्यक्ष पद के लिए अपना अंतिम चुनाव किया था. पार्टी के इतिहास में सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष रहीं. उन्होंने 1998 के लोकसभा चुनावों के बाद सीताराम केसरी से पार्टी का नियंत्रण संभाला और तब से 2017-19 के बीच दो साल की अवधि को छोड़कर जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने.

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आजादी के बाद अब तक कौन-कौन बना अध्यक्ष

जे बी कृपलानी (1947)
जेबी कृपलानी को आचार्य कृपलानी के नाम से भी जाना जाता है. आजादी के बाद वह कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने. उन्होंने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाने के लिए कांग्रेस छोड़ दी. वे चार बार लोकसभा के लिए चुने गए.

पट्टाभि सीतारमैया (1948-49)
सीतारमैया ने 1948 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुनाव में जीत हासिल की. ​​उन्होंने 1952-57 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया. सीतारमैया उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने आंध्र प्रदेश के अलग राज्य बनाने की मांग की थी.

पुरुषोत्तम दास टंडन (1950)
टंडन ने कृपलानी के खिलाफ 1950 का कांग्रेस अध्यक्ष पद जीता. हालांकि, बाद में उन्होंने नेहरू के साथ मतभेदों के कारण शीर्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

जवाहरलाल नेहरू (1951-54)
नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस ने एक के बाद एक राज्य विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव जीते. 1952 में भारत के पहले आम चुनाव में पार्टी ने 489 सीटों में से 364 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया.

यू एन धेबर (1955-59)
1948-54 तक सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री की सेवा करने वाले ढेबर ने नेहरू के बाद कांग्रेस अध्यक्ष बने. उनका कार्यकाल चार साल का था.

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इंदिरा गांधी (1959, 1966-67, 1978-84)
इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला. 1960 में उनकी जगह नीलम संजीव रेड्डी ने ले ली. हालांकि, वह 1966 में के कामराज के समर्थन से मोरारजी देसाई को हराकर एक साल के लिए कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में लौटीं. आपातकाल के बाद 1977 के राष्ट्रीय चुनाव हारने के बाद, उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और 1985 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहीं.

नीलम संजीव रेड्डी (1960-63)
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा का पहला कार्यकाल समाप्त होने के बाद, रेड्डी ने तीन कार्यकाल के लिए पार्टी की बागडोर संभाली. 1967 में उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के नेता के रूप में राजनीति में लौट आए. वह 1977 में भारत के छठे राष्ट्रपति भी बने.

के कामराज (1964-67)
भारत की राजनीति में के कामराज को "किंगमेकर" के रूप में जाना जाता है, कामराज इंदिरा के कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उदय का कारण थे. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ विभाजन के बाद, एक सिंडिकेट नेता कामराज ने कांग्रेस (ओ) का गठन किया.

एस निजलिंगप्पा (1968-69)
कांग्रेस में विभाजन से पहले, वह अविभाजित कांग्रेस पार्टी के अंतिम अध्यक्ष थे. बाद में वह सिंडिकेट नेताओं में शामिल हो गए. निजलिंगप्पा 1952 में चित्रदुर्ग सीट से लोकसभा के लिए चुने गए.

जगजीवन राम (1970-71)
जगजीवन राम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के अध्यक्ष बने. हालांकि, उन्होंने जनता पार्टी में शामिल होने के लिए 1977 में कांग्रेस छोड़ दी. 1981 में उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस (जे) बनाई. वह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के रक्षा मंत्री थे.

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शंकर दयाल शर्मा (1972-74)
शंकरदयाल शर्मा 1972 में कलकत्ता (कोलकाता) में एआईसीसी सत्र के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे. उन्होंने 1992 से 1997 तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया.

देवकांत बरुआ (1975-77)
देश में आपातकाल के दौरान बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे. वह पार्टी की बागडोर संभालने वाले असम के पहले और एकमात्र नेता थे. उन्हें उनकी "भारत इंदिरा है, इंदिरा भारत है" नारे के लिए याद किया जाता है.

राजीव गांधी (1985-91)
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी पार्टी अध्यक्ष बने और 1991 में उनकी हत्या तक इस पद पर बने रहे. उन्होंने 1984 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश दिलाया और भारत के छठे प्रधानमंत्री बने. हालांकि, कांग्रेस 1989 के राष्ट्रीय चुनाव हार गई. चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे के एक आत्मघाती हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी.

पी वी नरसिम्हा राव (1992-96)
1991 में राजनीति से संन्यास की घोषणा करने के बाद, राव ने अगले साल राजीव की हत्या के बाद वापसी की. वह गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र के पहले प्रधानमंत्री भी थे. उनके कार्यकाल के दौरान, देश ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विनाश को देखा, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे हुए.

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सीताराम केसरी (1996-98)
1996 में केसरी राव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष बने. उनके अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उन्हें हटा दिया गया था.

सोनिया गांधी (1998-2017 और 2019-वर्तमान)
सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और सबसे लंबे समय बनी रहीं. उनके कार्यकाल के दौरान, कांग्रेस ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीता और 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से सत्ता खो दी. राहुल गांधी 2017 में शीर्ष पद के लिए निर्विरोध चुने गए. हालांकि, बाद में 2019 लोकसभा चुनाव में हार की  "नैतिक" जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में, सोनिया गांधी ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.

राहुल गांधी (2017-2019)
11 दिसंबर, 2017 को राहुल गांधी को सर्वसम्मति से पार्टी अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनावों में कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाई. हालांकि, 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने "नैतिक" जिम्मेदारी लेते हुए शीर्ष पद छोड़ दिया. देश भर में पार्टी के कई नेताओं ने राहुल गांधी के साथ एकजुटता में 2019 की हार के बाद अपने पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया.

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