Places Of Worship Act 1991: क्या श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में भी निष्प्रभावी हो सकता है 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?

Written By कुलदीप सिंह | Updated: Sep 14, 2022, 01:40 PM IST

Shri Krishna Janmbhoomi: श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद का मामला मथुरा जिला कोर्ट और हाईकोर्ट में चल रहा है. 

डीएनए हिंदीः ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला कोर्ट अहम फैसला सुना चुकी है. कोर्ट ने इस मामले में हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के योग्य माना है. वहीं अदालत ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसकी दलील थी कि ज्ञानवापी पर 1991 का वर्शिप एक्ट लागू होता है. यानी ज्ञानवापी के स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है. अब मामले में हिंदू पक्ष की याचिका पर आगे सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी माना कि  इस मामले में 1991 का प्लेसेस ऑफ (Places Of Worship Act 1991) वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता. 1991 का कानून कहता है कि आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो भविष्य में उसी रूप में रहेगा. अब इस फैसले का असर कई और मामलों पर भी पड़ सकता है. 

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
इस कानून को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था. Places of Worship Act के तहत 15 अगस्‍त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के उपासना स्‍थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्‍थल में नहीं बदला जा सकता. इस कानून में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है. कानून के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा. 

ये भी पढ़ेंः ज्ञानवापी के फैसले का और किन मामलों में होगा असर, किन-किन धार्मिक स्थलों पर है विवाद, जानें सबकुछ

क्या है पूरा मामला?

हिंदू पक्ष का दावा है कि 1670 में औरंगजेब ने मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर को तुड़वा दिया था और वहां ईदगाह मस्जिद बनवा दी थी. 1815 में अंग्रेजों ने इस जमीन को नीलाम कर दिया. इसे राजा पटनीमल ने खरीदा था. वो यहां मंदिर बनवाना चाहते थे. 1920 और 1930 के दशक में जमीन को लेकर विवाद हो गया. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था.

हुआ था समझौता
बता दें कि 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया. भारत के उद्योगपतियों के एक संघ जिसमें रामकृष्ण डालमिया, हनुमान प्रसाद पोद्दार और जुगल किशोर बिड़ला शामिल थे, ने जमीन खरीदी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का निर्माण करते हुए यहां भव्य केशवदेव मंदिर का निर्माण किया. तब समय के साथ ट्रस्ट ने पड़ोसी ईदगाह के साथ इस मुद्दे को सुलझा लिया गया और मस्जिद के हिस्से की जमीन ईदगााह को दे दी. पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है.  

ये भी पढ़ेंः Places of Worship Act पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 सप्ताह में मांगा केंद्र से जवाब, जानिए क्या है ये कानून और क्यों बना था

अब क्या है मामला?
अब जो मामले कोर्ट में गए हुए हैं, वो इसी समझौते के खिलाफ है. याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन आदि की ओर इसी समझौते पर सवाल उठाया गया है. उनका कहना है कि ट्रस्ट को कोई अधिकार ही नहीं था कि वो ऐसा कोई समझौता करे. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि इस समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं है. हिन्दू पक्ष का दावा है कि उसका इस पूरे 13.37 एकड़ पर अधिकार है जो उसे मिलना चाहिए क्योंकि इसी जमीन पर उनके इष्टदेव भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए इस जमीन पर उनका ही अधिकार होना चाहिए. 

मथुरा विवाद पर क्या असर पड़ेगा?
अयोध्या और काशी के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मथुरा के मामले में भी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लागू होगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद सुलझ चुका है. वहीं वाराणसी के जिला कोर्ट के फैसले के बाद ज्ञानवापी मामले में भी सुनवाई होगी. कोर्ट ने इस मामले में भी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू ना होने की बात कही है. 1991 के कानून से सिर्फ अयोध्या विवाद को छूट मिली थी, क्योंकि वो मामला आजादी से पहले अदालत में था. अब कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले से जुड़े श्रृंगार गौरी केस में भी इस कानून के दायरे से बाहर माना है. जबकि, मथुरा मामले में पूरी कानूनी लड़ाई 1968 के समझौते से शुरू होती है. ऐसे में यह कोर्ट पर निर्भर करेगा कि क्या वह इस मामले को 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से छूट देता है या नहीं.  

ये भी पढ़ेंः Places of worship act का क्या है सेक्शन-4 जिससे ज्ञानवापी और मथुरा को मिल सकती है राहत?

क्या कहती है एक्ट की धारा-4? 
जानकारों का कहना है कि इस याचिका में एक्ट की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है इसमें विशेष रूप से कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें हैं उन पर ये कानून लागू नहीं होगा. मतलब अगर कोई जगह जिसका ऐतिहासिक महत्व है उसे प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत नहीं लाया जाएगा. इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि Archaeological Survey of India (ASI) यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसे एंसियंट मॉन्यूमेंट एंड ऑर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट 1958 के तहत अपने संरक्षण में लेकर संरक्षित करेगा. ऐसे में इस तरह की जगहों को मंदिर मस्जिद की जगह ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर देखा जाएगा. अगर किसी बिल्डिंग को बने 100 साल हो गए हैं इसका कोई ऐतिहासिक महत्व है तो इसे एएसआई संरक्षित कर सकता है. इस नियम के हिसाब से कानून के कुछ जानकारों का मानना है कि मथुरा और काशी के मंदिरों के मामले इस कानून से बाहर हो जाते हैं.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.