डीएनए हिंदी: देश में IT एक्ट (IT Act) की धारा 66A एक बार फिर चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बार फिर इस धारा के तहत सभी राज्यों की पुलिस द्वारा मुकदमे दर्ज करने पर नाराजगी जताई है. चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने साल 2015 के श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए फैसले को सख्ती से पूरे देश में लागू कराने का निर्देश दिया है. आइए जानते हैं कि धारा 66A क्या है और श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था, जो इस धारा को निरस्त करता है. क्या अब भी इस धारा के तहत कार्रवाई करना सांविधानिक है या नहीं?
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सबसे पहले जानते हैं कि धारा 66A क्या है
आईटी एक्ट में साल 2009 में संशोधन के जरिये धारा 66A (IT Act 66A) को जोड़ा गया था. इस धारा के दायरे में सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाले या किसी भी इलेक्ट्रानिक माध्यम के जरिये भेजे गए आपत्तिजनक, धमकाने, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाले कंटेंट को रखा गया था. इस धारा के तहत ऐसा कंटेंट अपलोड करने या भेजने को प्रतिबंधित माना गया था और इसके लिए आरोपी की गिरफ्तारी का प्रावधान था. साथ ही इस धारा के तहत 3 साल तक की सजा सुनाने के साथ आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता था.
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कैसे हो रहा था इस धारा का दुरुपयोग
इस धारा की परिभाषा को लेकर हमेशा विवाद खड़े होते रहे हैं. माना गया था कि पुलिस इसकी परिभाषा को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर उपयोग करती है. इसकी परिभाषा इतनी विवादित है कि ऑनलाइन मीडिया पर किसी सामान्य पोस्ट को भी पुलिस इसके दायरे में रखकर गिरफ्तारी कर सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने माना था इसे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम केंद्र सरकार केस (Shreya Singhal vs Union of India Case) में सुनवाई के दौरान धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया था. जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा था कि यह धारा संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी यानी अपनी बात कहने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. इससे लोगों का जानकारी पाने के अधिकार का हनन होता है.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के DGP और होम सेक्रेट्री को स्पष्ट आदेश दिए थे कि धारा 66A के तहत दर्ज सभी मामलों में से इसे हटा देना चाहिए. साथ ही केंद्र सरकार को भी आदेश दिया था कि धारा 66A को अमान्य किए जाने की सूचना गजट में प्रकाशित की जाए.
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क्यों नाराज हुआ है अब सुप्रीम कोर्ट
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के सामने धारा 66A का मुद्दा उठने से पहले इसके तहत देश के 11 राज्यों में 229 मामले कोर्ट के सामने विचाराधीन थे, वहीं इस धारा को निरस्त करने के बावजूद इन 11 राज्यों की पुलिस लगातार इसके तहत मुकदमे दर्ज कर रहीं हैं. इन मुकदमों को दर्ज करने में पहले से भी ज्यादा तेजी दर्ज की गई है. साल 2021 के मध्य में सामने आए एक आंकड़े के मुताबिक, साल 2015 से 2021 तक 6 साल के दौरान इस धारा के तहत 11 राज्यों में 1,307 मुकदमे दर्ज हो चुके थे.
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क्या कहा है अब दोबारा सुप्रीम कोर्ट ने
- फिर से कहा गया है कि धारा 66A संविधान का उल्लंघन है और इसके तहत किसी भी नागरिक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
- जहां भी धारा 66A के तहत मुकदमे चलाए जा रहे हैं, वहां चार्जशीट से इस धारा को हटाकर शेष बची धाराओं के तहत कानूनी कार्यवाही की जाए.
- सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों व होम सेक्रेट्री अपने यहां धारा 66A के तहत कोई मुकदमा दर्ज नहीं किए जाने की बात सुनिश्चित करें
- IT एक्ट के बारे में किसी भी तरह का कोई प्रकाशन होने पर इसे स्पष्ट रूप से लिखा जाए कि इसकी धारा 66Aको सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के उल्लंघन के तौर पर घोषित किया है.
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धारा 66A नहीं तो कैसे हो सोशल मीडिया पोस्ट पर कार्रवाई
सोशल मीडिया या इलेक्ट्रानिक माध्यम वाले आपत्तिजनक कंटेंट पर कार्रवाई के लिए धारा 66A से इतर भी कार्रवाई के लिए प्रावधान दिए गए हैं. ऐसे कंटेंट पर निम्न धाराओं में कार्रवाई हो सकती है-
- धारा 499, 500 व 501 (आपराधिक मानहानि): सोशल मीडिया पर अपने खिलाफ कोई आपत्तिजनक कंटेंट पोस्ट होने पर आप IPC की धारा 499, 500 व 501 (आपराधिक मानहानि) के तहत मुकदमा दर्ज करा सकते हैं. साथ ही मजिस्ट्रेट के यहां आप मानहानि का दावा भी कर सकते हैं. इस आरोप में कम से कम दो साल की सजा आरोप साबित होने पर मिल सकती है.
- धारा 469: IPC की धारा 469 के तहत भी सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट में फर्जी दस्तावेजों के जरिए छवि धूमिल करने की कोशिश पर केस दर्ज हो सकता है. इस धारा का उपयोग सम्मान को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से फर्जी कार्य करने या दस्तावेज बनाने के मामले में होता है. इस धारा में भी दो वर्ष की सजा का प्रावधान है.
- धारा 153A: यदि किसी पोस्ट से सामाजिक, वर्ग, लिंग, जन्म स्थान, भाषा से जुड़ा कोई झूठा तथ्य पोस्ट किया जाता है तो धार्मिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप में IPC की धारा 153A () के तहत भी मुकदमा दर्ज किया जा सकत है. यह गैरजमानती अपराध है और इसमें 5 साल तक की अधिकतम सजा मिल सकती है.
- धारा 298: किसी सोशल मीडिया पोस्ट से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने पर IPC की धारा 298 के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है इस मामले में दोष सिद्धि पर 1 साल की सजा मिल सकती है.
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