Section 66A: IT Act की धारा 66A क्या है, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों नाराज है, कैसे करें सोशल मीडिया पोस्ट पर कार्रवाई

कुलदीप पंवार | Updated:Oct 23, 2022, 04:14 PM IST

Supreme Court ने साल 2015 में ही श्रेया सिंघल मामले में IT एक्ट की इस धारा को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया था.

डीएनए हिंदी: देश में IT एक्ट (IT Act) की धारा 66A एक बार फिर चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बार फिर इस धारा के तहत सभी राज्यों की पुलिस द्वारा मुकदमे दर्ज करने पर नाराजगी जताई है. चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने साल 2015 के श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए फैसले को सख्ती से पूरे देश में लागू कराने का निर्देश दिया है. आइए जानते हैं कि धारा 66A क्या है और श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था, जो इस धारा को निरस्त करता है. क्या अब भी इस धारा के तहत कार्रवाई करना सांविधानिक है या नहीं?

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सबसे पहले जानते हैं कि धारा 66A क्या है

आईटी एक्ट में साल 2009 में संशोधन के जरिये धारा 66A (IT Act 66A) को जोड़ा गया था. इस धारा के दायरे में सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाले या किसी भी इलेक्ट्रानिक माध्यम के जरिये भेजे गए आपत्तिजनक, धमकाने, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाले कंटेंट को रखा गया था. इस धारा के तहत ऐसा कंटेंट अपलोड करने या भेजने को प्रतिबंधित माना गया था और इसके लिए आरोपी की गिरफ्तारी का प्रावधान था. साथ ही इस धारा के तहत 3 साल तक की सजा सुनाने के साथ आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता था.

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कैसे हो रहा था इस धारा का दुरुपयोग

इस धारा की परिभाषा को लेकर हमेशा विवाद खड़े होते रहे हैं. माना गया था कि पुलिस इसकी परिभाषा को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर उपयोग करती है. इसकी परिभाषा इतनी विवादित है कि ऑनलाइन मीडिया पर किसी सामान्य पोस्ट को भी पुलिस इसके दायरे में रखकर गिरफ्तारी कर सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट ने माना था इसे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन

साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम केंद्र सरकार केस (Shreya Singhal vs Union of India Case) में सुनवाई के दौरान धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया था. जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा था कि यह धारा संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी यानी अपनी बात कहने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. इससे लोगों का जानकारी पाने के अधिकार का हनन होता है. 

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के DGP और होम सेक्रेट्री को स्पष्ट आदेश दिए थे कि धारा 66A के तहत दर्ज सभी मामलों में से इसे हटा देना चाहिए. साथ ही केंद्र सरकार को भी आदेश दिया था कि धारा 66A को अमान्य किए जाने की सूचना गजट में प्रकाशित की जाए.

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क्यों नाराज हुआ है अब सुप्रीम कोर्ट

साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के सामने धारा 66A का मुद्दा उठने से पहले इसके तहत देश के 11 राज्यों में 229 मामले कोर्ट के सामने विचाराधीन थे, वहीं इस धारा को निरस्त करने के बावजूद इन 11 राज्यों की पुलिस लगातार इसके तहत मुकदमे दर्ज कर रहीं हैं. इन मुकदमों को दर्ज करने में पहले से भी ज्यादा तेजी दर्ज की गई है. साल 2021 के मध्य में सामने आए एक आंकड़े के मुताबिक, साल 2015 से 2021 तक 6 साल के दौरान इस धारा के तहत 11 राज्यों में 1,307 मुकदमे दर्ज हो चुके थे.

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धारा 66A नहीं तो कैसे हो सोशल मीडिया पोस्ट पर कार्रवाई
सोशल मीडिया या इलेक्ट्रानिक माध्यम वाले आपत्तिजनक कंटेंट पर कार्रवाई के लिए धारा 66A से इतर भी कार्रवाई के लिए प्रावधान दिए गए हैं. ऐसे कंटेंट पर निम्न धाराओं में कार्रवाई हो सकती है-

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