Lok Sabha Elections 2024: क्या 19 साल पुराने फॉर्मूले को अजमाएगी कांग्रेस? 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई थी NDA

Written By रईश खान | Updated: Jun 25, 2023, 04:55 PM IST

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Lok Sabha Elections 2024: देश की आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस 9 साल से अधिक समय से सत्ता से बाहर है. वह सत्ता में आने के लिए हर फॉर्मूले को अजमाना चाहती है.

डीएनए हिंदी: आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर विपक्षी दलों ने बिगुल फूंक दिया है. इसके मद्देनजर बिहार के पटना में शुक्रवार को 15 विपक्षी दलों की महाबैठक हुई. इस बैठक में मोदी के खिलाफ कैसे लामबंदी की जाए और आगे की रणनीति क्या हो इसको लेकर चर्चा की गई. बैठक के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्षी दलों ने बता दिया कि इस बार 2024 में लड़ाई संपूर्ण विपक्ष बनाम बीजेपी की होगी. वहीं कांग्रेस ने भी संकेत दे दिए हैं कि वह सीट बंटवारे को लेकर नरम रवैया अपनाने को तैयार है. देश की आजादी के बाद पहली बार है जब कांग्रेस 9 साल से अधिक समय से सत्ता से बाहर है. ऐसे में सत्ता वापसी के लिए वह हर फॉर्मूले को अपनाना चाहती है. इसी के मद्देनजर कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस 2004 के फॉर्मूले को अजमा सकती है. जिसने एनडीए को 269 सीटों से 138 पर समेट दिया था. इस फॉर्मूले की वजह से एनडीए पांच राज्यों में 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी थी.

कांग्रेस का क्या था ये फॉर्मूला?
दरअसल, कांग्रेस ने 1999 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में पहला चुनाव लड़ा था. लेकिन शरद पवार के कांग्रेस से अलग हो जाने के बाद पार्टी कुछ कमाल नहीं कर सकी थी. चुनावों के नतीजे आए तो एनडीए को 269 सीटें मिलीं और अटल विहारी वाजपेयी की सरकार बन गई. कांग्रेस ने इस हार पर गहरा मंथन किया था. इसके बाद 2004 में सोनिया गांधी ने एनडीए से मुकाबला करने के लिए उन पांच राज्यों के लिए फॉर्मूला तैयार किया जो उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकते थे. इन राज्यों में समान विचारधारा वाले 6 क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया. इन दलों में बिहार में आरजेडी-एलजेपी, झारखंड में जेएमएम, महाराष्ट्र में एनसीपी, आंध्र प्रदेश में टीआरएस और तमिलनाडु में डीएमके शामिल थीं. इस गठबंधन का कांग्रेस को इतना फायदा हुआ कि केंद्र में उसकी वापसी हो गई. 

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कांग्रेस को मिली थी 145 सीटों पर जीत
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 417 उम्मीदवार उतारे थे. जिनमें से उन्हें 145 सीट पर जीत मिली. जबकि बीजेपी ने 364 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जिसमें वह 138 सीट पर ही सिमट कर रह गई. वहीं, जिन पांच राज्यों में कांग्रेस ने गठबंधन किया था उनमें कुल 188 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस की अगुवाई वाले UPA 114 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिसमें से 61 सीटें कांग्रेस और 56 सीटें सहयोगी दल जीते थे.

कांग्रेस इस फॉर्मूले की वजह से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.  जबकि लेफ्ट फ्रंट को 59, सपा को 35 और बसपा को 19 सीटें मिली थीं. वहीं, एनडीए और अन्य विपक्षी दलों के खाते में सिर्फ 74 सीटें आई थीं. मतलब कांग्रेस की इस रणनीति की वजह से पांच राज्यों में  एनडीए सैकड़ा का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी थी.

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बीजेपी की भी पूरी नजर
हालांकि, अब हालात बदल चुके हैं.  2004 के बाद से कई क्षेत्रीय दल यूपीए का साथ छोड़कर जा चुके हैं. इनमें  जेडीएस, एलजेपी, बसपा, टीआरएस, टीडीपी और बीजद समेत कई दल दूरी बना चुके हैं. बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट के साथ भी अब पहले जैसे रिश्ते नहीं रहे हैं. लेकिन अब विपक्षी एकता का हिस्‍सा बन कांग्रेस उसी फॉर्मूले के ढाल पर नजर आ रही है. खासकर सीटों को बटवारे को लेकर. कांग्रेस की इस चाल पर बीजेपी की पूरी नजर है. उसे पता है कि विपक्ष 2024 में एकजुट होता है तो उसके लिए राह मुश्किल हो सकती है.

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