Election Special: जब अटल बिहारी वाजपेयी 3 सीटों पर लड़े थे लोकसभा के चुनाव, पढ़ें ये पॉलिटिकल किस्सा

Written By आदित्य प्रकाश | Updated: May 05, 2024, 09:46 AM IST

देश के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी ( Atal Bihari Vajpayee) पहले ऐसे राजनेता थे, जो एक बार में ही एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे. उसके बाद कई सारे नेताओं ने ये रणनीति अपनाई, जैसा कि हम इस लोकसभा चुनाव में भी देख पा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) को लेकर सियासत अपने उरूज पर है. 7 मई को तीसरे फेज की वोटिंग होनी है. इसी बीच कांग्रेस पार्टी की तरफ से घोषणा की गई कि राहुल गांधी यूपी की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ेंगे. वो पहले से ही केरल के वायनाड सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. अब वो दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे चुनावी किस्से पर चर्चा करने जा रहे हैं, जब एक राजनेता तीन सीटों से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे. वो राजनेता कोई और नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी  (Atal Bihari Vajpayee) थे.

खास रणनीति के तहत 3 सीटों पर चुनाव लड़े थे 
देश में पहला लोकसभा का चुनाव 1952 में हुआ था.  इस लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ की सीट से प्रत्याशी थे, लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वो भारतीय जनसंघ के नेता थे. लखनऊ सीट पर उस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी की जीत हुई थी. पहले लोकसभा के चुनाव के बाद 1957 में दूसरे लोकसभा का चुनाव आया. उन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी का नाम जनसंघ के बड़े युवा नेताओं में शुमार था. ऐसे में पार्टी चाहती थी कि वो लोकसभा चुनाव जीतकर संसद का रुख करें. इसी क्रम में पार्टी की तरफ से वो तीन लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए गए. उन्हें एक बार फिर से लखनऊ की सीट से मैदान में उतारा गया. साथ ही उन्हें बलरामपुर और मथुरा से भी उन्हें कैंडिडेट बनाया गया.


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कैसे रहे चुनावी नतीजे?
चुनाव के जब परिणाम आए तो वो फिर से लखनऊ की सीट से चुनाव हार गए थे, साथ ही उन्हें मथुरा की सीट से भी शिकस्त मिली थी, लेकिन बलरामपुर की सीट से उन्हें जीत हासिल हुई थी. इस तरह से उन्हें संसद में भेजने की रणनीति काम आ गई थी. इस खास रणनीति की वजह से वो इतिहास में ऐसा करने वाले पहले प्रत्याशी भी बन गए थे. वो पहले ऐसे राजनेता थे जो एक बार में ही एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे. उसके बाद कई सारे नेताओं ये रणनीति अपनाई, जैसा कि हम इस लोकसभा चुनाव में भी देख पा रहे हैं.

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