डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश में बीजेपी ने एक बार फिर सीएम की नाम की घोषणा कर सभी को चौंका दिया. जिन नेताओं के नाम की चर्चा मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर चल रही थी, उससे उलट एक ऐसे नेता को कमान सौंपी गई जो इस बात से खुद अंजान थे. यह नाम था डॉक्टर मोहन यादव का. सोमवार को प्रदेश की राजधानी भोपाल में जब विधायक दल की बैठक में फोटो सेशन हो रहा था, तब मोहन यादव पीछे की कतार में बैठे थे. लेकिन बैठक खत्म होने के बाद वह फ्रंट सीट पर आ गए और सर्वसम्मति से राज्य के मुख्यमंत्री चुन लिए गए.
जानकारी के मुताबिक, भोपाल में विधायक दल की बैठक के दौरान जब मोहन यादव का नाम पुकारा गया तो वह बिल्कुल अंजान बैठे थे. उनके बगल में बैठे विधायक ने कहा कि आपका नाम नए सीएम के लिए पुकारा जा रहा है. यह सुनकर मोहन यादव चौंक गए. वह तुरंत कुर्सी से खड़े हुए. तभी सभी विधायकों ने तालियां बजाना शुरू कर दिया. इसके बाद सबसे पीछे की कतार में बैठे मोहन यादव उठकर आगे आए और सभी का धन्यवाद किया.
मोहन यादव उज्जैन दक्षिण सीट से लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए हैं. वह शिवराज सिंह चौहान सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. मोहन यादव ओबीसी समुदाय से आते हैं. मध्य प्रदेश में उन्हें कमान सौंपकर बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अपनी मंशा जाहिर कर दी है. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के बाद एमपी में शिवराज सिंह चौहान को हटाकर पिछड़ा चेहरा चुना है. वह विपक्षी गठबंधन INDIA के जातिगत जनगणना के सभी दांव-पेंच फेल करना चाहती है.
सपा-आरजेडी के वोट में सेंध!
आंकड़ों की बात करें तो हिंदी राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में ओबीसी मतदाता चुनाव की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका रहती है. इस वोट बैंक पर अखिलेश यादव की सपा और लालू यादव की आरजेडी का काफी हद तक कब्जा रहा है. कांग्रेस भी जातिगत जनगणना कराकर ओबीसी वोटबैंक को साधने की कोशिश में जुटी थी. चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी भी इस बात को कहते रहे कि जनगणना के बाद ही ओबीसी समुदाय को सही तरीके से उनका हक मिलेगा.
मध्य प्रदेश में करीब 42 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. वहीं यादव वोटरों की संख्या 12 से 14 प्रतिशत है. उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत OBC वोटर, 10 प्रतिशत यादव हैं. बिहार में 63.13 फीसदी ओबीसी मतदाता और 14.26 फीसदी यादव वोटर हैं. हरियाणा की बात करें तो यहां 28.3 फीसदी ओबीसी और 10 फीसदी यादव वोटर हैं. लेकिन बीजेपी ने मोहन यादव लाकर 2024 में अखिलेश यादव और लालू यादव के वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश की है.
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मोहन यादव को ही क्यों चुना?
मोहन यादव के राजनीतिक करियर को देखें तो इस बात समझ आ जाएगा कि बीजेपी ने उन्हें कमान क्यों सौंपी है. दरअसल मोहन यादव छात्र राजनीति के समय से बीजेपी के छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं. उन्हें 1984 में एबीवीबी के उज्जैन अध्यक्ष बनाया गया था. वह 1986 तक इस पद रहे. ABVP के जरिए वह बीजेपी में आगे बढ़ते गए और मध्य प्रदेश एबीवीपी के राज्य सह-सचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे. माना जाता है कि उनका ओबीसी समुदाय को लोगों से काफी जुड़ाव रहा है. इसके अलावा वह RSS के करीबी भी माने जाते हैं.
छात्र राजनीतिक की समय से ही वह संघ से जुड़ गए थे. 1993 से 1995 के बीच मोहन यादव आरएसएस उज्जैन शाखा के सहखंड कार्यवाह रहे. आगे चलकर 1996 में वे उज्जैन RSS शाखा में खण्ड कार्यवाह बने. यही वजह है कि मध्य प्रदेश बीजेपी और आरएसएस के लिए लैब्रोटरी कही जाती है. लोकसभा चुनाव में 6 महीने से भी कम का समय बचा है. ऐसे में मोदी और शाह को ऐसे चेहरे की तलाश थी जो जितना करीब बीजेपी के हो, उतना ही RSS के करीब भी नजर आए. जिससे भाजपा को 2024 में बड़ा फायदा मिल सके. इस प्रोफाइल में मोहन यादव एकदम फिट बैठ रहे थे.
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