डीएनए हिंदी: मणिपुर में हिंसा भड़के दो महीने से ज्यादा हो चुका है. जातीय संघर्ष से शुरू हुआ विवाद धार्मिक रंग भी पकड़ने लगा है और दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया है. मणिपुर के नेताओं और यहां तक कि प्रदर्शनकारियों का भी बार-बार कहना है कि प्रदेश में धार्मिक हिंसा का इतिहास नहीं रहा है. यह दुखद है कि धार्मिक मान्यता स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है. मैतेयी समुदाय आबादी में बहुसंख्यक है और इंफाल घाटी के आसपास रहते हैं. प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पर इसी समुदाय के विधायक हैं और सीएम एन बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से आते हैं. कुकी समुदाय ज्यादातर ईसाई धर्म को मानते हैं. समझें यह जातीय संघर्ष धार्मिक तनाव में कैसे बदल गया.
मैतेयी समुदाय और धर्मांतरण का इतिहास
मैतेयी समुदाय बहुसंख्यक हिंदू है और इनमें सभी को आरक्षण नहीं मिला था. हाई कोर्ट के हालिया फैसले में इन्हें एसटी के तहत आरक्षण दिया गया जो मणिपुर हिंसा का तात्कालिक कारण बनी. कुछ वर्गों को एससी और ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण मिला था. कुकी और नगा समुदाय बहुसंख्यक ईसाई हैं. मणिपुर में धर्मांतरण के एंगल पर काफी चर्चा होती है. नगा और कुकी समुदाय में ज्यादातर आबादी ईसाई है और यह प्रदेश की कुल जनसंख्या का 10 फीसदी के करीब हैं. हिंसा को धर्मांतरण के एंगल से भी देखा जा रहा है क्योंकि प्रदेश में 200 से ज्यादा चर्चों को जलाने की अपुष्ट दावे किए जा रहे हैं. दूसरी ओर हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया है. हालांकि दोनों ही गुटों के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि हिंसा का आधार धार्मिक नहीं था. यह अधिकारों के लिए की जाने वाली लड़ाई है.
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मैतेयी राजघराने के दौर से अब तक का इतिहास
मणिपुर में ऐतिहासिक तौर पर हिंदू राजघराने का वर्चस्व रहा था. मणिपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे प्रियोरंजन सिंह ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि मैतेयी समुदाय के साथ नगा और कुकी समुदाय के जातीय और धार्मिंक हिंसा का इतिहास पुराने दौर में नहीं था. मैतेयी राजघराने ने नगा और कुकी लोगों को अपने साथ मिलाया था और उन्हें राज-काज और दूसरे कामों में भागीदारी दी थी. धार्मिक आधार पर भी कलह और विद्वेष से प्रदेश अछूता ही रहा था. दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की नींव पिछले दशकों की उपज है.
हालांकि पिछले एक दशक में पूर्व राजघराना जो कि मैतेयी समुदाय का है प्रदेश में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. प्रदेश की सियासत में भी मैतेयी हिंदू राजघराने की धमक बढ़ी है और महाराज लीशेम्बा संजाओबा बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं. बीजेपी ने जब विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की तो सीएम की कुर्सी मैतेयी समुदाय के एन बीरेन सिंह को दी. लगातार हिंसा और प्रेसिडेंट रूल की मांग के बाद भी पार्टी हाईकमान ने अब तक सिंह पर अपना भरोसा बरकरार रखा है. ढके-दबे लहजे में कहा तो यहां तक जात है कि मैतेयी समुदाय का बड़ा हिस्सा एन बीरेन सिंह को किसी हीरो से कम नहीं मानता है.
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दोनों समुदाय धार्मिक एंगल से कर रहे इनकार
मणिपुर में संघर्ष कर रहे दोनों समुदाय और अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं का भी कहना है कि यह धार्मिक विवाद नहीं है. धार्मिक एंगल दिए जाने पर सबने हैरानी जताई है. प्रदेश की बीजेपी अध्यक्ष शारदा देवी ने कहा कि यह देखना दुखद है कि कुकी लोगों के चर्चों को मैतेयी हिंदुओं के मंदिरों और घरों में जिस जगह पर प्रार्थना की जाती है उसे निशाना बनाया गया है. यह धार्मिक हिंसा नहीं है और प्रदेश में धार्मिक आधार पर भेदभाव या संघर्ष का इतिहास नहीं रहा है.
स्वतंत्र मणिपुर की मांग करने वाले और यूएनएलएफ के पूर्व चेयरमैन राजकुमार मेघन ने भी बीबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि जातीय संघर्ष को धार्मिक एंगल देना सरासर गलत है. मणिपुर में लड़ाई अस्मिता और पहचान की है. मणिपुर कांग्रेस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष देवब्रत सिंह ने हिंसा की घटना में धार्मिक एंगल की बात से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में धर्म के नाम पर दंगा-फंसाद कभी नहीं हुआ है.
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