Maratha Reservation Protest: हिंसक क्यों हो गया मराठा आरक्षण आंदोलन? किस बात की है लड़ाई

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Oct 31, 2023, 07:12 AM IST

Maratha Reservation Protest

Maratha Reservation Protest: मराठा आरक्षण आंदोलन बीड हिंसा के बाद फिर से सुर्खियों में है. महाराष्ट्र के कई जिलों में इंटरनेट बंद और कर्फ्यू लगा दिया गया है. आइये जानते हैं कि क्या है मराठाओं की लड़ाई.

डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र की धरती पर आरक्षण का मुद्दा भड़का हुआ है. आंदोलनाकारी अब हिंसा पर उतर आए हैं. 30 अक्टूबर को राज्य के अलग-अलग जगहों पर जमकर आगजनी और तोड़फोड़ की गई. दो विधायक और राज्य के एक पूर्व मंत्री को प्रदर्शनकारियों के गुस्से का सामना करना पड़ा. आंदोलनकारियों ने बीड जिले में एनसीपी विधायक प्रकाश सोलंके के घर में आग लगा दी. वहीं उनके दफ्तर और गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की गई. हालात को देखते हुए बीड समेत कई जिलों में इंटरनेट बंद और कर्फ्यू लगा दिया गया है. अब सवाल ये है कि आखिर इस आंदोलन की वजह क्या है?

जिसने एकनाथ शिंदे सरकार की मुसीबतों को बढ़ा दिया है. आंदोलन की अगुवाई कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है कि जब तक मराठाओं को आरक्षण नहीं दिया जाएगा वह आंदोलन खत्म नहीं करेंगे. जरांगे आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र के जालना जिले में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हैं. इस आंदोलन ने तब जोर पकड़ा जब जरांगे प्रदर्शन के दूसरे चरण के तहत जालना में अंतरवाली सराटी गांव में 25 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का ऐलान किया. उनकी अपील पर कई मराठा संगठन सड़क पर उतर आए.

मराठाओं की क्या है मांग?
दरअसल, मराठा समुदाय के लोग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सितबंर 1948 तक निजाम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी माना जाता था और ये ओबीसी थे. इसलिए फिर से इन्हें कुनबी जाति का दर्जा दिया जाए और OBC में शामिल किया जाए. यह लड़ाई लंबे समय से चल रही है. लेकिन ऐसा नहीं कि राज्य सरकार ने ऐसा कदम नहीं उठाया हो. महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं को आरक्षण देने की पूरी कोशिश में है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा सीमित कर रखी है वह सरकार के लिए रोड़ा बनी हुई है.

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साल 2018 में बीजेपी की फडणवीस सरकार ने कानून बनाकर मराठा समुदाय को 13 प्रतिशत आरक्षण दिया था. लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने मराठा आरक्षण यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि आरक्षण को 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में आरक्षण की सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि देश में आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ इसी 50 फीसदी के अंदर की जा सकती है.

मराठों की आर्थिक स्थिति कैसी है?
महाराष्ट्र में लगभग 30 फीसदी मराठा समुदाय की आबादी है. सामाजिक और आर्थिक रूप से यह समुदाय काफी पिछड़ा हुआ है. उच्च शिक्षा संस्थानों और नौकरियों में मराठा समुदाय का अधिक प्रतिनिधित्व न के बराबर है.  राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (SBCC) की साल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में करीब 37.28 फीसदी मराठा गरीबी रेखा (BPL) से नीचे रहते हैं. इस समुदाय का 76 फीसदी समुदाय कृषि और कृषि श्रम पर निर्भर करता है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से 2013 से 2018 तक  2152 मराठा समुदाय के किसानों ने आत्महत्या की. इस खुदकुशी की मुख्य वजह  कर्ज और फसल की बर्बादी थी.

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