डीएनए हिंदी: दिल्ली के नगर निगम चुनाव के बाद लंबे समय तक जमकर हंगामा हुआ. बड़ी मुश्किल से चुनाव हो पाए और आम आदमी पार्टी (AAP) की शैली ओबेरॉय एमसीडी की मेयर बनीं. अब इसी महीने फिर से मेयर के चुनाव होने हैं क्योंकि नियमों के मुताबिक, 5 साल में दिल्ली को 5 मेयर मिलते हैं. इसी बीच उत्तर प्रदेश में भी नगर निकाय चुनाव शुरू हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश में 17 जिले ऐसे हैं जहां नगर निगम हैं. नगर निकाय के चुनाव दो चरणों में होंगे. पहले चरण में 4 मई और दूसरे चरण में 11 मई को वोट डाले जाएंगे और चुनाव के नतीजे 13 मई को आएंगे.
17 नगर निगमों के अलावा, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायतों का चुनाव भी होना है. नगर निगम के मुखिया को महापौर यानी मेयर, नगर पालिका के मुखिया को चेयरमैन और नगर पंचायत अध्यक्ष को भी चेयरमैन कहा जाता है. 17 नगर निगमों में कुल 1420 वॉर्ड, 199 नगर पालिकाओं में 5327 वॉर्ड और 544 नगर पंचायतों में कुल 7178 वॉर्डों में चुनाव होना है.
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सबसे अहम है महापौर यानी मेयर का चुनाव
उत्तर प्रदेश में जिले कुल 75 हैं लेकिन नगर निगम सिर्फ 17 जिलों में है. ऐसे में राजनीतिक रूप से महापौर का चुनाव काफी अहम हो जाता है. मुख्य पार्टियां मेयर पद के लिए अपने कैंडिडेट के नाम का ऐलान भी करती हैं. मेयर को ड्राइवर, गनर और सरकारी गाड़ी भी मिलती है. आइए विस्तार से समझते हैं कि मेयर और चेयरमैन के क्या-क्या अधिकार हैं.
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नियमों के मुताबिक, वास्तविक अधिकार मेयर के बजाय नगर कमिश्नर के पास होते हैं. मेयर सिर्फ नगर निगम बोर्ड के मुखिया के रूप में 30 लाख रुपये तक के विकास कार्यों को मंजूरी दे सकते हैं. इस बोर्ड में नगर आयुक्त, पार्षद और अन्य अधिकारी भी होते हैं. मेयर के पास एक स्पेशल पावर यह होती है कि अगर कोई म्युनिसिपल कमिश्नर 6 महीने से ज्यादा तक अपने पद पर रहे तो मेयर उसका कैरेक्टर रोल यानी सीआर लिख सकते हैं.
चेयरमैन के अधिकार क्या-क्या हैं?
नगर पालिका और नगर पंचायत दोनों के चुने हुए मुखिया को चेयरमैन ही कहा जाता है. नगर पालिका के चेयरमैन को मेयर से ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि उसके पास पैसे जारी करने के अधिकार होते हैं. बिना उसके दस्तखत के पैसे नहीं खर्च किए जा सकते है. वह नगर पालिका के कर्मचारियों और अधिकारियों का ट्रांसफर कर सकता है और वित्तीय कामों के लिए मंजूरी भी सकता है.
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नगर पंचायत का चेयरमैन भी वित्तीय अधिकार रखता है. पहले नियम था कि अविश्वास प्रस्ताव लाकर दो तिहाई बहुमत से मेयर और चेयरमैन को हटाया जा सकता है. हालांकि, अब नियमों में बदलाव कर दिया गया है. अब पार्षद या सभासद मेयर या चेयरमैन को हटा नहीं सकते हैं.
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