डीएनए हिंदी: समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर केंद्र सरकार की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. विधि आयोग लोगों से इस पर राय ले रहा है. उत्तराखंड में तैयार हो रहे UCC के नियमों को लेकर भी खूब चर्चा है और सुझावों के बारे में भी कई तरह की बातें हो रही हैं. अलग-अलग जाति, धर्म और समुदाय के लिए लोग अपनी-अपनी राय और आपत्ति दर्ज करा रहे हैं. इसी को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों के जनजातीय लोग भी काफी आशंकित हैं. इन लोगों को डर सता रहा है कि एक तरह का कानून आ जाने से उनके रीति-रिवाजों को खतरा पैदा हो जाएगा. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत मिले संरक्षण के खत्म होने का भी डर सता रहा है.
पूर्वोत्तर के राज्यों में 220 से ज्यादा जनजातियां पाई जाती हैं. इन सभी जनजातियों की परंपराएं और रीति-रिवाज काफी अलग और अनोखे हैं. संविधान के तहत इन्हें संरक्षण भी प्राप्त है. हालांकि, यूनिफॉर्म सिविल कोड के संभावित प्रावधानों को लेकर हो रही चर्चाओं ने इन लोगों को भी आशंकाओं से भर दिया है. आइए समझते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या है और क्यों जनजातीय लोगों को इस तरह के डर सता रहे हैं.
क्या है पूर्वोत्तर की जनजातियों की आशंका?
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, जनजातीय आबादी मिजोरम में 94.4 प्रतिशत, नगालैंड में 86.5 प्रतिशत और मेघालय में 86.1 प्रतिशत है. इन लोगों की चिंता है कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो उनके रीति-रिवाजों पर बलुसंख्यक प्रथाएं और रीति-रिवाज हावी हो जाएंगे. ऐसे में इन लोगों विवाह के लिए अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और इसी तरह की अन्य प्रथाओं के लिए अपने समुदाय विशेष के कानूनों पर असर पड़ने का डर है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2018 में आई विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि असम, ओडिशा, बिहार और झारखंड में कई जनजातियां ऐसी हैं जो पुराने और प्रथागत कानूनों का पालन करती हैं. पूर्वोत्तर की खासी और जयंतिया हिल्स के कूर्ग ईसाई, खासिया और ज्येतेंग और बिहार, ओडिशा की कई जनजातियां हैं. कई जनजातियां ऐसी भी हैं जहां मातृसत्तात्मक व्यवस्था चलती है. यानी शादी के बाद पति अपनी ससुराल में जाकर रहता है जबकि यूसीसी में पितृसत्तात्मकता लागू होने की पूर्ण संभावना है. ऐसे में इन जनजातियों को भी अपनी प्रथा खत्म होने का डर है.
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 371G के मुताबिक, संसद का कोई भी ऐसा काम जो सामाजिक या धार्मिक प्रथाओं, मिज़ो रीति-रिवाजों और जातीय समूहों के भूमि स्वामित्व और ट्रांसफर को प्रभावित करे, वह मिजोरम पर तब तक लागू नहीं हो सकता जब तक कि उसे मिजोरम की विधानसभा से पारित न किया जाए. यही कारण था कि 14 फरवरी 2023 को ही मिजोरम की सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया. सभी पार्टियों ने इस प्रस्ताव का साथ भी दिया.
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सत्ताधारी मिजो नेशनल प्रंट के विधायक थंगमावई ने कहा कि मिजो समुदाय के अंदर भी कई तरह की उप-जानजातियां हैं, ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना सही नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि इससे अस्थिरता पैदा होने की आशंका है इसीलिए हमने इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था.
हर राज्य में हैं अलग जनजातियां
मेघालय में प्रमुख रूप ये गारो, खासी और जयंतियां जनजातियां हैं. इन सबमें विवाह, तलाक और अन्य रीति-रिवाजों से जुड़े नियम काफी अलग हैं. ऐसे में उन्हें भी अपने रीति-रिवाजों पर खतरा दिख रखता है. मेघालय के सीएम कोरनाड संगमा भले ही एनडीए के साथ हैं लेकिन उन्होंने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की खिलाफत की है.
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कमोबेश यही हाल नगालैंड में भी है क्योंकि अनुच्छेद 371ए के तहत नगालैंड को संरक्षण मिला है. नगा समुदाय की धार्मिक प्रथाओं, जमीन और संसाधनों से जुड़े कानूनों और अन्य प्रथागत कानूनों को लेकर संरक्षण प्राप्त है. इन्हीं कानूनों के तहत इनके विशेष अधिकारों को सुरक्षा मिलती है. इनमें भी बदलाव के लिए विधानसभा की मंजूरी जरूरी है. यही वजह है कि नगालैंड, मिजोरम और मेघालय समेत सभी पूर्वोत्तर राज्यों में इसका विरोध किया जा रहा है.
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