देश में ‘एक देश-एक चुनाव’ की बात चल रही हैं. अभी इस बिल को पारित होने में समय है. माना जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इसे पेश किया जाएगा, लेकिन 370 और GST की तरह पहले ही इसको लेकर सियासत शुरू हो गई है. देश के भीतर जिस तरह से ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर पक्ष विपक्ष में तकरार छिड़ी हुई है, उसे देखकर लगाता नहीं है कि ये सब इतना आसान होने वाला है.
इससे पहले भी भाजपा सरकार कई ऐसे कदम उठा चुकी है जिनके विरोध में देश में जमकर प्रदर्शन हुआ है. इसी तरह से ‘एक देश-एक चुनाव’ के फैसले से भी कई लोग नाराज हैं, जो कि लगातार भाजपा के इन निर्णय को गलत बता रहे हैं. भाजपा के धारा 370 और जीएसटी जैसे फैसले पर भी देश में खूब प्रदर्शन हुआ था.
मोदी सरकार को अगर ये बिल संसद में पास कराना है तो कई अहम पड़ाव से होकर गुजरना होगा. जब ये बिल संसद में पास हो जाए, संविधान में संशोधन किया जाए और सरकार को सभी राज्यों का पूर्ण सहयोग मिलेगा तभी ये संभव है. इसलिए वन नेशन, वन इलेक्शन इनता आसान नहीं हैं.
वर्तमान स्थिति ये है कि राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही जगह एनडीए को बहुमत है, लेकिन जब जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) और जीएसटी को संसद में पारित कराया गया था तब की मौजूदा सरकार को कई तरह के विरोध का सामना करना पड़ा था. तो क्या ऐसे में पार्टी के लिए वन नेशन, वन इलेक्श चुनौती है. खैर ये तो संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ही पता चलेगा.
एक देश, एक चुनाव बात करें तो अगर सरकार इसे पारित कराने में सफल रहती है और देश में एक देश, एक चुनाव लागू हो जाता है. तो संविधान में सशोधन होगा. इसके लिए विपक्ष की उतनी ही आवश्यकता है जितनी पक्ष की. इस बिल को सफलता पूर्वक पास कराकर धरातल पर लाने के लिए पक्ष विपक्ष का एकमत होना जरूरी है.
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अगर ये शीतकालीन सत्र में ये विधेयक पास हो गया तो केंद्र सरकार 2029 तक देश में लोकसभा के साथ सारे राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा सकती है. इस हिसाब से अगर ऐसा हुआ तो देश में कई ऐसे राज्य हैं जिनके अगले विधानसभा चुनाव दो साल आगे 2029 में चुनाव होंगे.
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