विवेकानंद रॉक मेमोरियल पर दो नरेंद्र का राष्ट्रीय चिंतन

Written By Nikhil Yadav | Updated: May 31, 2024, 12:41 PM IST

विवेकानंद मेमोरियल में ध्यानमग्न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

स्वामी विवेकानंद का सन्यासी जीवन से पूर्व का नाम भी नरेंद्र था और भारत के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र है. जगह भी वही है, शिला भी वही है और चिंतन का विषय भी . ध्यान और चिंतन भारतवासियों के लिए जीवन पद्धति का भाग है. लेकिन अधिकतर व्यक्ति अपनी आत्मोन्नति और आत्मविकास के लिए ध्यान और चिंतन करते है.

लोकसभा चुनाव के अंतिम और सातवें चरण के मतदान से ठीक पहले तमिलनाडु प्रांत का छोटा सा शहर कन्याकुमारी चर्चा में है.  विषय है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कन्याकुमारी प्रवास.  प्रधानमंत्री मोदी का यह 30 और 31 मई का दौरा राजनैतिक नहीं बल्कि पूर्ण आध्यात्मिक रहेगा.  प्रधानमंत्री कन्याकुमारी में  "विवेकानंद शिला स्मारक में स्थित" स्वामी विवेकानंद की मूर्ति ओर "ध्यान मंडपम" में ध्यान ओर साधना कर रहे हैं. यह स्मारक स्वामी विवेकानंद की भी ध्यानस्थली रही है उन्होंने यहां ध्यान ओर साधना की थी..

जब विवेकानंद को देश की गरीबी देख नींद नहीं आई

अपने सम्पूर्ण भारत के प्रवास के बाद जब स्वामीजी दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी पहुंचे तो उन्होंने माता कन्याकुमारी मंदिर के दर्शन किये और फिर समुद्र के बीच में स्थित शिला पर तैर कर गए. वहा पहुंचने के बाद  स्वामी विवेकानंद ने  25, 26, 27 दिसंबर 1892 को  साधना करने के बाद भारत के पुनरुत्थान के लिए अपना कार्य शुरू किया. निखिल यादव की पुस्तक "अमृत काल में स्वामी विवेकानन्द की प्रासंगिकता" के अनुसार स्वामीजी ने इस ध्यान को पुनः 19 मार्च, 1894 को शिकागो से स्वामी रामकृष्णानंद को लिखे एक पत्र में याद  किया, स्वामी विवेकानंद लिखते हैं “मेरे भाई, यह सब देखते हुए, विशेष रूप से (देश की) गरीबी और अज्ञानता के कारण, मुझे एक पल भी  नींद नहीं आई.

केप कोमोरिन में, भारतीय चट्टान के आखिरी छोर पर बैठ, मैंने एक योजना बनाई”. यह योजना भारत को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त  करवा के उसकी आध्यात्मिक शक्ति को विश्व के सामने प्रस्तुत करने की थी. जिसमें स्वामी विवेकानंद सफल रहे.


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शिला की दो विशेषताएं और दो नरेंद्र की कहानी

स्वामीजी की ध्यानस्थली होने के अतरिक्त इस शिला की दो और विशेषताएं है, पहली यहां माता कन्याकुमारी के "श्रीपाद" आज भी विद्यमान हैं और दूसरी यह शिला "तीन सागरों" के संगम के बीचों बीच स्थित है. दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित इस शिला पर बाद में स्वामीजी विवेकानंद की जन्म शताब्दी पर उनके स्मारक बनाने का विचार आया जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक  माननीय एकनाथजी रानडे जी ने पूर्ण किया और बाद में उस स्मारक को जीवंत बनाने  के लिए 1972 में "विवेकानंद केंद्र' संगठन की स्थापना की थी.

स्वामी विवेकानंद का संन्यासी जीवन से पूर्व का नाम भी नरेंद्र था और भारत के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र है. जगह भी वही है, शिला भी वही है और चिंतन का विषय भी . ध्यान और चिंतन भारतवासियों के लिए जीवन पद्धति का भाग है. लेकिन अधिकतर व्यक्ति अपनी आत्मोन्नति और आत्मविकास के लिए  ध्यान और चिंतन करते है. लेकिन स्वामी विवेकानंद का कन्याकुमारी की शिला पर किया हुआ ध्यान इसलिए इतना प्रसिद्ध और चर्चित हुआ क्योंकि यह ध्यान और  चिंतन व्यक्तिगत लाभ और हानि पर न केंद्रित होते हुए राष्ट्र के पुनरुथान पर केंद्रित था. उस समय भारत पर अंग्रेज़ों का शासन था. राजनैतिक गुलामी के साथ- साथ आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर भी भारत अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था.  भारतीय नवसंतति आत्मसम्मान , आत्मगौरव और आत्मविश्वास खो चुकी थी उस समय स्वामी विवेकानंद ने उनके अंदर अतीत के प्रति गर्व और  भविष्य के प्रति विश्वास जागृत किया था.

विश्वास युवा पीढ़ी में

उन्होंने कहा था “मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी में है. उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएंगे.  वे शेरों की तरह पूरी समस्या का समाधान करेंगे.“आज भारत को स्वाधीन हुए 75 वर्षो से ज्यादा हो गया है. हर क्षेत्र में भारत ने उन्नति की है चाहे वह एक उभरती हुए आर्थिक शक्ति के तौर पर हो या फिर अन्य क्षेत्र सम्मलित है मुख्यतः कृषि , दूध उत्पादन , उद्योग, वाणिज्य , विज्ञानं , अंतरिक्ष मिशन , सेना , खेल  (क्रिकेट). आज भारत के पास विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा के तौर पर "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी" भी है और विश्व के सबसे बड़े रेल और सड़क नेटवर्क वाले देशों की श्रेणी में भी भारत का नाम आता है.  भारत आज एक विकासशील देश है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उसने "विकसित भारत " बनने की हुंकार भरी है.  यह मात्र स्वप्न नहीं है बल्कि संकल्प है जिसका एक उदहारण है विश्व के अनेकों देशों का भारत के प्रति बढ़ता  विश्वास जिसकी एक झलक हमे G20 सम्मेलन में दिखी थी.  भारत इतिहास में अकेला ऐसा देश है जो भले ही विकासशील देशों की श्रेणी में आता हो लेकिन उससे " वर्ल्ड लीडर " के तौर पर देखा जा रहा हो.

 इसलिए प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान और चिंतन व्यक्तिगत ना रहते हुए " विकसित भारत " पर केंद्रित होगा.  स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम के सामने हुंकार भरी थी की आने वाली शताब्दी भारत की होगी.  उस स्वप्न को पूर्ण करने पर होगा.  इसलिए चाहे वह स्वामी विवेकानंद हो या अब प्रधानमंत्री मोदी चिंतन का विषय व्यक्तिगत नहीं राष्ट्रीय है जिसका केंद्र बिंदु भारत माता है. स्वामीजी ने अमेरिका के शहर शिकागो में आयोजित  "विश्व धर्म महासभा" में जो भारतीय संस्कृति का परिचय करवाया वही 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” का प्रस्ताव रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इससे आगे बढ़ाया. जिसकी सफलता हमे  11 दिसम्बर, 2014 को मिली जब संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्य देशों द्वारा 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई.


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"राष्ट्र स्मारक" है  "विवेकानंद शिला स्मारक"
स्वामी विवेकानंद का यह स्मारक एक " राष्ट्र स्मारक" है जिसमें सम्पूर्ण देश की भागेदारी रही थी.  हर प्रांत से आर्थिक सहयोग मिला था इस स्मारक के निर्माण में.  एकनाथीजी रानडे की पुस्तक "कथा विवेकानंद शिला स्मारक की" से हमें स्मारक निर्माण के विभिन पहलुओं से अवगत करवाती है  इस स्मारक के निर्माण का विचार स्वामीजी विवेकानंद की जन्म शताब्दी (1963 ) पर उत्पन्न हुआ जो 1970 में माननीय एकनाथजी रानाडे के प्रयासों से पूर्ण हुआ.  एक तरफ जहां तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भक्तवसलम ने उस शिला पर निर्माण करने से स्पष्ट मना कर दिया वहीं केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूं कबीर ने “शिला पर स्मारक प्राकृतिक सौंदर्य को खराब कर देगा” कहकर बाधाएं खड़ी कीं. लेकिन अपने कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर माननीय एकनाथजी रानडे ने मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया. एकनाथजी रानडे जी ने विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता की विचारधारा” में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पास पहुंच गए. जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है.”

समाज को स्मारक से जोड़ने के लिए लगभग 30 लाख लोगों ने 1,2 और 5 ₹ भेंट स्वरूप दिए. उस समय के लगभग 1% युवा जनसंख्या ने इसमें भाग लिया. रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानंद महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और इसका औपचारिक उद्घाटन 2 सितंबर, 1970 को भारत के राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि ने किया था. आज इस स्मारक की लोकप्रियता मात्र कन्याकुमारी शहर या तमिलनाडु प्रांत तक सीमित नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व से लोग यहाँ स्वामी विवेकानंद को नमन करने और ध्यान करने आते है.   एक " राष्ट्रीय स्मारक " में राष्ट्र का चिंतन कर प्रधानमंत्री मोदी नवीन भारत की नीव रखने जा रहे है.  

 
लेखक निखिल यादव- (विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता है. यह उनके निजी विचार हैं)

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