डीएनए हिंदी: असम में बहुविवाह पर रोक लगेगी. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने मंगलवार को कहा कि वह एक राज्य अधिनियम के तहत बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है. यह कमेटी इस बात की जांच करेगी कि बहुविवाह (Polygamy) पर प्रतिबंध लगाने का राज्य सरकार के पास अधिकार है या नहीं.
हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट किया,'असम सरकार ये जांचने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है कि क्या राज्य विधानमंडल के पास बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है. समिति कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी और संविधान के अनुच्छेद 25 में दिए गए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की जांच करेगी, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत हैं. कमेटी सभी पहलुओं पर गहनता से विचार-विर्मश करेगी.'
क्या हैं बहुविवाह के नियम?
भारत में मुसलमानों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट है. आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुष दूसरा निकाह कर सकते हैं. इसी तरह शरियत कानून में भी बहुविवाह की अनुमति है. पहली पत्नी की सहमति से चार शादियां कर सकते हैं. हालांकि, इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी करने की इजाजत है. मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के तहत दूसरी शादी की अनुमति नहीं है. अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो उसे पहले अपने पति से तलाक लेना होगा फिर वह दूसरी शादी कर सकती है.
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क्या दिक्कतें आती हैं सामने?
बहुविवाह के दौरान दिक्कत तब आती है, जब तकनीकी तौर पर दूसरा विवाह करने से पहले पुरुषों को पहली पत्नी से इजाजत लेनी पड़ती है. लेकिन कई महिलाओं की शिकायत आती है कि उनसे इस बारे में कभी नहीं पूछा गया और वे इस कारण काफी अपमानित महसूस करती हैं. दोबारा शादी करने वाले मर्दों की पहली पत्नियों पर बच्चों के पालन-पोषण का बोझ पड़ जाता है. पति उनका ध्यान नहीं रखते क्योंकि वे दूसरे परिवार में व्यस्त हो जाते हैं. इस तरह के उन्हें कई कष्ट झेलने पड़ते हैं. फिर वो कानूनी सहारा लेती हैं.
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भारत में बहुविवाह का प्रचलन
2019 के नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) डेटा -20 के मुताबिक, भारत में बहुविवाह का प्रचलन मुसलमानों में 1.9 प्रतिशत, हिंदुओं में 1.3 प्रतिशत और अन्य धार्मिक समूहों में 1.6 प्रतिशत था. मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के फैकल्टी की तरफ से किए गए साल 2005-06, 2015-16 और 2019-20 के तीन एनएफएचएस सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में यह आंकड़ा सामने आया.
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