डीएनए हिंदीः राष्ट्रपति भवन में कोई खास कार्यक्रम हो या गणतंत्र दिवस की परेड का मौका, राष्ट्रपति को आपने उनके अंगरक्षकों के साथ देखा होगा. राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे ये बॉडी गार्ड्स (President Body Guard) काफी खास होते हैं. राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है. उन्हें कमांडर-इन-चीफ का दर्जा भी मिलता है. राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड्स हमेशा लोगों का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं. आपने इन गार्ड्स को गहरे चटक रंग की यूनिफार्म और लहलहाता हुआ साफा पहने देखा होगा. क्या आपको मालूम है कि यह गार्ड्स एक खास वर्ग के लोगों में से ही चुने जाते हैं. इनका इतिहास काफी रोचक रहा है.
क्या होता है PBG?
प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड को PBG कहा जाता है. PBG का सबसे अहम रोल भारत के राष्ट्रपति (President of India) की सिक्योरिटी का जिम्मा संभालना है. यह भारतीय सेना की एक घुड़सवार फौज रेजिमेंट है. यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी घुड़सवार यूनिट और कुल मिलाकर सबसे सीनियर यूनिट है. यह यूनिट राष्ट्रपति के आधिकारिक कार्यक्रमों का भी हिस्सा रहती है. यहां शामिल जवान अच्छी कद काठी वाले होते हैं. इनका चयन भी कई मानकों पर खरा उतरने के बाद ही किया जाता है. घुड़सवारी में इनका कोई सानी नहीं होता इसके यह एक काबिल टैंक मैन और पैराट्रूपर्स भी होते हैं.
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क्या है इसका इतिहास?
राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड्स का इतिहास करीब 250 साल पुराना है. जिसका गठन 1773 में अंग्रेस गर्वनर जनरल वॉरेन हेस्टिंगन ने अपनी सुरक्षा के लिए 50 घुड़सवार सैनिकों के साथ बनारस में किया था. उन्हें 'मुगल हॉर्स' कहा जाता था. मुगल हॉर्स का गठन 1760 में सरदार मिर्जा शाहबाज़ खान और सरदार खान तार बेग ने किया था. उस समय बनारस के राजा चैत सिंह ने इस यूनिट के लिए 50 घुड़सवार सैनिक दिए थे. इस यूनिट में घुड़सवार सैनिकों की कुल संख्या 100 थी. इस यूनिट के पहले कमांडर ईस्ट इंडिय़ा कंपनी के कैप्टन स्वीनी टून थे. 1784 से 1859 तक इसे वर्नर जनरल बॉडी गार्ड (GGBG) कहा जाता था, 1859 से 1944 में उनका टाइटल बदलकर 44th डिविजनल रिकॉनेसां स्क्वाड्रन कर दिया गया. इसके दो साल बाद 1946 में ये वापस से गवर्नर जनरल बॉडी गार्ड कहलाने लगे. 1947 में जब देश आजाद हुआ तो इस टुकड़ी को दो भागों में बांट दिया गया. इनमें एक भारत में रही और दूसरी पाकिस्तान में. 1950 में इन्हें मौजूदा नाम मिला जो President's Bodyguard कहलाता है.
क्यों खास है यह टुकड़ी?
इस घुड़सवार टुकड़ी को 61 कैवेलरी (cavalry) के नाम से भी जाना जाता है. यह दुनिया में बची आखिरी घुड़सवार अंगरक्षक टुकड़ी में से एक है. इसके सभी अंगरक्षक पूरी तरह से ट्रेंड होते हैं. राष्ट्रपति की सुरक्षा के अलावा इन्हें परेड और अन्य मौकों पर भी देखा जा सकता है. यह एक रॉयल सेना जैसी दिखाई देती है. राष्ट्रपति बॉडी गार्ड्स की टुकड़ी में 222 (4 अधिकारी, 20 जेसीओ और 198 सिपाही) लोग हैं. ये अपनी हर ड्यूटी बेहद सधे हुए तरीके से निभाते हैं. इन्हें प्रेसिडेंट या वाइस प्रेसिडेंट के शपथ ग्रहण के समय, गणतंत्र दिवस की परेड, बीटिंग रिट्रीट, स्टेट हेड या किसी अन्य देश के नेता के आने पर या गार्ड चेंजिंग सेरेमनी में देखा जा सकता है. इस सेना का कमांडिंग ऑफिसर हमेशा ब्रिगेडियर या कर्नल रैंक का होता है. उसके नीचे मेजर, कैप्टन, रिसाल्दार और दाफादार होते हैं. सिपाहियों की रैंक 'नायक' या 'सवार' होती है.
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सिर्फ राजपूत, जाट और सिख ही बन सकते हैं हिस्सा
इस यूनिट में सिर्फ राजपूत, जाट और सिख ही शामिल किए जाते हैं. हालांकि शुरुआत में 1773 में जब इस यूनिट का गठन किया गया. उस समय इसमें मुसलमानों को भर्ती किया गया. फिर इस यूनिट में मुसलमानों के साथ हिंदुओ (ब्राह्मण, राजपूत) को भी भर्ती किया जाने लगा. 1895 के बाद इसमें ब्राह्मणों की भर्ती बंद कर दी गई. इस यूनिट में शामिल जवानों के लिए बेसिक हाईट कम से कम 6.3 फीट होना जरूरी थी, जो अब 6 फीट है. प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडडेंट थे लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह. उनके डिप्टी थे साहबजादा याकूब खान, जो बाद में PBG के जवानों की खासियत इनके मजबूत घोड़े होते हैं. इसमें जर्मनी की खास ब्रीड के घोड़े शामिल होते हैं. खास बात ये है कि ऊंचे कद के इन घोड़ों का वजन करीब 450 से 500 किलो होता है. भारतीय सेना में केवल इन्हीं घोड़ों के बाल लंबे रखे जा सकते हैं.
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