डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज (Same Sex Marriage) की याचिकाकर्ता उत्कर्ष सक्सेना और अनन्य कोटिया के प्यार में एक ट्रेडिशनल प्रेम कहानी की तरह कई रोड़े थे. यह रोड़ा जाति, वर्ग या धर्म का नहीं था बल्कि अपनी पहचान का ही था. इस कपल ने अपने रिश्ते के शुरुआती दौर में लगभग 6 साल एक तरह के डर के साये में बिताए. यह डर अपनी स्वीकृति और गैर-आपराधिक होने के दायरे को लेकर था. इस गे कपल ने अपनी जिंदगी के उस मुश्किल दौर के बारे में भी हमसे अपनी यात्रा शेयर की है. कहानी के उस हिस्से तक पहुंचने से पहले हिंदी के विख्यात कवि धर्मवीर भारती की पंक्तियां सबको पढ़नी चाहिए.
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे तो क्या
महज इससे किसी का प्रेम मुझ पर पाप कैसे हो?
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूम तो क्या
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर पाप कैसे हो?
प्यार और साथ के बाद भी हमेशा एक डर का साया चला साथ में
भारत में लंबे समय तक सामाजिक ताने-बाने और कानूनी दायरे में भी समलैंगिकों के प्रेम को पाप की तरह देखा गया. इसे अपराध के दायरे में रखा गया. सेम सेक्स मैरिज के लिए याचिका दाखिल करने वाले उत्कर्ष और अनन्य कोटिया ने हमसे खास बातचीत में बताया कि 2008 में पहली बार मिले और अगले कुछ महीनों में हम एक-दूसरे के सबसे करीब थे. यह रिश्ता कुछ ऐसा था जिसमें एक जैसे संघर्ष थे, बचपन में अपने शरीर से ही उपजे डर की घुटन थी. साथ रहने की कामना तो थी लेकिन स्वीकार्य नहीं होने का डर उससे भी बड़ा था. वह दौर मुश्किल था लेकिन साथ छूटा नहीं. बीतते दिनों के साथ रिश्ते में प्रेम की तरलता के साथ विश्वास की मजबूत डोर भी बंध गई. दोनों ने 2014 में पहली बार अपने रिश्ते के बारे में एक दोस्त को बताया था. बता दें कि 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस फैसले को फिर से पलट दिया. आखिरकार 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इसे आपराधिक कृत्य के दायरे से बाहर निकाल दिया. यहां सुनें दोनों के संघर्ष की कहानी.
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इस सीरीज की पहली कड़ी यहां पढ़ें: Pride Month Special: गे कपल से जानिए Same Sex Marriage की जंग क्यों, दिल के रिश्ते को क्यों चाहिए कानूनी बंधन
परिवार से मिला भरपूर सहयोग
आम तौर पर समलैंगिकों के सामने पहली चुनौती परिवार से ही आती है लेकिन इस जोड़े की कहानी इससे थोड़ी अलग है. दोनों को परिवार की तरफ से पूरा सहयोग मिला. हालांकि कोटिया और उत्कर्ष दोनों का मानना है कि शायद यह पिछले कुछ वर्षों में आया सामाजिक बदलाव है जिसे उनके परिवार ने भी आसानी से स्वीकार कर लिया. हो सकता है कि शुरुआती दौर में ही बताने पर कुछ अलग रिएक्शन मिलता. दोनों के रिश्ते पर परिवार की मुहर लग चुकी है और अब इस जोड़े को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है.
Pride Month Special Series की आखिरी कड़ी में पढ़ें कि सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ताओं की क्या उम्मीद है और दोनों की भविष्य की क्या योजना है.
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