क्या है हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ? जिसे पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था लिए बताया खतरा

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 06, 2023, 12:18 AM IST

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भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 1950 से लेकर 1980 के दशक तक 4 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही थी जिसे रेट ऑफ ग्रोथ भी कहा जाता है.

डीएनए हिंदी: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ को लेकर चेतावनी जारी की है. उन्होंने प्राइवेट सेक्टर के निवेश में कमी, उच्च ब्याज दरों और वैश्विक वृद्धि की सुस्त पड़ती रफ्तार को देखते हुए कहा है कि भारत निम्न वृद्धि वाली ‘हिन्दू वृद्धि दर’ के बेहद करीब पहुंच गया है. भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 1950 से लेकर 1980 के दशक तक 4 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही थी जिसे हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ भी कहा जाता है.

धीमी वृद्धि के लिए 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' नाम 1978 में भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने दिया था. राजन के मुताबिक, नेशनल स्टैटिक्स ऑफिस (NSO) ने पिछले महीने राष्ट्रीय आय के जो अनुमान जारी किए हैं उनसे तिमाही वृद्धि में क्रमिक नरमी के संकेत मिलते हैं जो चिंता की बात है. एनएसओ के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर घटकर 4.4 फीसदी रह गई जो दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 6.3 फीसदी और पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.2 फीसदी थी. पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 5.2 फीसदी रही थी.

पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘आशावादी निश्चित ही पिछले GDP आंकड़ों में किए गए सुधार की बात करेंगे लेकिन मैं क्रमिक नरमी को लेकर चिंतित हूं. प्राइवेट सेक्टर निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं है, आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है और वैश्विक वृद्धि के आने वाले समय में और धीमा पड़ने के आसार हैं. ऐसे में मुझे नहीं मालूम कि वृद्धि किस तरह रफ्तार पकड़ेगी.’ आगामी वित्त वर्ष (2023-24) में भारत की वृद्धि दर के बारे में पूछे गए एक सवाल पर पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘‘पांच फीसदी की वृद्धि भी हासिल हो जाए तो यह हमारी खुशनसीबी होगी. अक्टूबर-दिसंबर के जीडीपी आंकड़े बताते हैं कि साल की पहली छमाही में वृद्धि कमजोर पड़ेगी.’’ 

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हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ के बहुत करीब 
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी आशंकाएं बेवजह नहीं हैं. आरबीआई ने तो चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में और भी कम 4.2 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान जताया है. इस समय, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही की औसत वार्षिक वृद्धि तीन साल पहले की तुलना में 3.7 फीसदी है. यह पुरानी हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ के बहुत करीब है और यह डराने वाली बात है. हमें इससे बेहतर करना होगा.’ हालांकि उन्होंने यह माना कि सरकार ढांचागत निवेश के मोर्चे पर काम कर रही है लेकिन विनिर्माण पर जोर दिए जाने का असर दिखना अभी बाकी ह.। उन्होंने सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन को चमकीला पक्ष बताते हुए कहा कि इसमें सरकार की भूमिका कुछ खास नहीं है.

'अडानी की मॉरीशस वाली फर्मों की क्यों नहीं की जांच'  
वहीं, पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अडाणी समूह से जुड़े मामले में बाजार नियामक सेबी पर अभी तक मॉरीशस स्थित संदिग्ध फर्मों के स्वामित्व के बारे में कोई पड़ताल नहीं करने पर सवाल खड़े किए. राजन के मुताबिक, मॉरीशस स्थित इन चार फंडों के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने 6.9 अरब डालर कोष का करीब 90 प्रतिशत अडानी समूह के शेयरों में ही लगाया हुआ है. इस मामले में कोई जांच नहीं किए जाने पर उन्होंने सवाल किया कि क्या सेबी को इसके लिए भी जांच एजेंसियों की मदद की जरूरत है? 

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मॉरीशस स्थित एलारा इंडिया अपॉर्चुनिटी फंड, क्रेस्टा फंड, एल्बुला इनवेस्टमेंट फंड और एपीमएस इनवेस्टमेंट फंड फर्जी कंपनी होने के आरोप लगने के बाद पिछले दो साल से संदेह के घेरे में हैं. ये कंपनियां गत जनवरी में दोबारा चर्चा में आ गईं जब अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया कि अडाणी समूह ने अपने शेयरों की कीमत बढ़ाने के लिए फर्जी कंपनियों का सहारा लिया. हालांकि अडाणी समूह ने इन आरोपों को बार-बार खारिज किया है. राजन ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के रुख पर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने कहा, “मुद्दा सरकार और कारोबार जगत के बीच गैर-पारदर्शी संबंधों को कम करने का है, और वास्तव में नियामकों को अपना काम करने देने का है. सेबी अभी तक मॉरीशस के उन कोषों के स्वामित्व तक क्यों नहीं पहुंच पाई है, जो अडाणी के शेयरों में कारोबार कर रहे हैं? क्या उसे इसके लिए जांच एजेंसियों की मदद की जरूरत है? 

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