राहुल गांधी को अब कुछ दिन आम आदमी की तरह बिताने चाहिए, पढ़ें लुटियंस दिल्ली से दूर होने में कैसे है फायदा

Subhesh Sharma | Updated:Apr 25, 2023, 03:19 PM IST

Rahul Gandhi

राहुल गांधी के पास बेहतरीन मौका है, खुद को वीवीआईपी कल्चर से बाहर निकालने और 'आम आदमी बनकर' आम आदमी के दुखों से जुड़ने का.

डीएनए हिंदी: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के 'अच्छे दिन' हाल फिलहाल आते नहीं दिख रहे. पहले संसद की सदस्या रद्द हुई और फिर उन्हें अपना सरकारी बंगला भी खाली करना पड़ा. एक तरह से राहुल गांधी से सबकुछ छिनता जा रहा है. राहुल ने जब बंगला खाली किया तो जाहिर सी बात है दुख हुआ होगा. उनके बयानों में ये दुख साफ झलकता भी दिखा. राहुल ने कहा था कि मुझे सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ी है. लेकिन बंगला खाली करने के बाद अब राहुल के पास एक बेहतरीन कमबैक का मौका है. जो उन्हें किसी भी हाल में गंवाना नहीं चाहिए. क्योंकि लुटियंस से हुई ये विदाई ही, दोबारा उनकी लुटियंस दिल्ली एंट्री की राह तय कर सकती है. साथ ही साथ राहुल विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा भी बनकर उभर सकते हैं. आइए विस्तार से समझते हैं आखिर क्यों लुटियंस से दूरी राहुल गांधी के लिए बुरी नहीं बल्कि अच्छी साबित हो सकती है...

अब मौका है आम आदमी को समझने का

सोनिया गांधी 2004 से जनपथ के अपने बंगले में अकेली रह रही हैं, जब से राहुल गांधी सांसद बने और उन्हें खुद का बंगला मिला. इस बात की बड़ी संभावना है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी के बंगले में शिफ्ट हो जाएंगे. लेकिन क्या राहुल गांधी को ऐसा करना चाहिए? 

राहुल गांधी को 2024 के लिए न सिर्फ खुद को बल्कि कांग्रेस को भी मजबूत करना है. 2014 के चुनाव से लेकर आज तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने 'चाय वाला' होने की बात से फायदा पहुंचा है. मोदी ने 'चाय वाला' होने की बात कहकर आम जनता से रिश्ता से बनाया है. ऐसे में राहुल के पास भी बेहतरीन मौका है, खुद को वीवीआईपी कल्चर से बाहर निकालने और 'आम आदमी बनकर' आम आदमी के दुखों से जुड़ने का. राहुल अगर इस राह पर आगे बढ़ते हैं तो यकीनन जनता से उनका बॉन्ड मजबूत होगा. 

इसके साथ ही राहुल गांधी विपक्ष में खोते दबदबे को भी वापस हासिल कर सकेंगे. विपक्ष के नेता के रूप में आज राहुल को चैलेंज करने वाले अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे कई नाम हैं. ये सभी नेता ग्रास रूट की पॉलिटिक्स को बढ़िया से समझते हैं और इनकी पकड़ लोगों में मजबूत है. अरविंद केजरीवाल का कद पिछले कुछ साल में सबसे ज्यादा बढ़ा है और इसका सबसे बड़ा क्रेडिट जाता है उनकी आम आदमी वाली इमेज को. अगर राहुल भी सुख सुविधाओं से दूर होकर मेहनत का ये रूट अपनाते हैं, तो यकीनन जनता उन्हें पसंद करेगी. आम लोगों के बीच थोड़ा बहुत आम होना राहुल के लिए जरूरी है.

आज भी युवराज वाली छवि नहीं छोड़ रही पीछा

राहुल गांधी ने भले ही हजारों किलोमीटर की पैदल भारत जोड़ो यात्रा की है, लेकिन लोगों के बीच उनकी छवि आज भी युवराज वाली है. दिल्ली लुटियंस छोड़कर वो राजधानी के किसी भी हिस्से में किराये पर रह सकते हैं. ये पूरी तरह उनपर निर्भर करता है कि उन्हें एक कमरे वाला मकान चाहिए कि 4 कमरे वाला. लेकिन जब वो रेंट पर रहेंगे तो एक बात तो साफ है कि उन्हें आम आदमी की लाइफ के बारे में ज्यादा बेहतर समझ आएगा.

एक आदमी जो किराये के मकान में रहता है. उसे हर महीने किराया भरने से लेकर बिजली और पानी के बिल जैसी तमाम चीजें पूरी करनी पड़ती हैं. जिस सबसे राहुल कई साल से दूर रहे हैं या यूं कहें कि उन्होंने ये सब कभी किया ही नहीं है. लेकिन समय आ चुका है जब उन्हें ये सब कर लेना चाहिए.

दुनिया की सुपरपावर अमेरिका के राष्ट्रपति को भी व्हाइट हाउस खाली करना पड़ता है और इसके बाद उन्हें भी अपना नया ठिकाना ढूंढने के लिए कुछ ही समय का वक्त मिलता है. ऐसे ही ब्रिटेन में तो सिर्फ एक दिन में ही प्रधानमंत्री को अपना सरकारी निवास छोड़कर नया घर ढूंढना होता है. तो फिर राहुल गांधी का बंगला खाली करना कौनसी बड़ी बात है.

2024 की राह आम आदमी ही तय कराएगा

2024 का लोकसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है और पिछले चुनावों के सर्वे अगर आप उठाकर देखेंगे तो वोट उन्हीं मुद्दों पर पड़ा है, जो आम जनता से जुड़े हैं. फिर चाहे वो महंगाई हो या बेरोजगारी. 2019 चुनाव के बाद किए गए CSDS लोकनीति के सर्वे में ये बात साफ नजर आती है लोगों के लिए क्या अहम है, वो चुनाव में किस चीज वोट करते हैं. सर्वे में सामने आया था कि 11.3 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी और नौकरियां न होने के मुद्दे पर वोट किया था. 4 प्रतिशतक लोगों ने महंगाई पर वोट किया तो 14.3 प्रतिशत लोगों ने विकास को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा माना था.

राहुल गांधी को अगर 2024 के लिए तैयारी करनी है तो उन्हें आम आदमी की तरह रहना सीखना होगा और उनके सुख-दुख को भी समझना होगा. वीआईपी लेयर जब तक उनके आसपास चढ़ी रहेगी, तब तक भारत में उन्हें कोई भी परिश्रम कर आगे बढ़ने वाला नेता नहीं मानेगा.

(इस लेख में लेखक के अपने निजी विचार हैं. डीएनए हिंदी केवल इसे प्रकाशित कर रहा है.)

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