साल 1669 का था. मौजूदा हरियाणा स्थित तिलपत नाम के एक गांव में गोकुला जाट (Gokula Jaat) नाम का एक शख्स हुआ करता था. उस वक्त हिंदुस्तान पर औरंगजेब (Aurangzeb) की हुकूमत थी, और गोकुला जाट ने मुगल (Mughal) बादशाह औरंगजेब के खिलाफ बगावत कर दी थी. इस बगावत के पीछे की वजह थी मुगल शासन में इस्लाम धर्म को बढावा और किसानों के ऊपर कर की बढ़ोतरी. गोकुला किसानों और जाटों को संगठित करना शुरू कर दिया, साथ बादशाह को कर देने से मना कर दिया. सिकंदरा के इलाकों में वो लगातार अपने अभियान को बढ़ाने लगा. उसने बगियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर अब्दुल नवी की हत्या कर दी. अब्दुल मथुरा में मुगल फौजदार था. ये सब देख औरंगजेब आग-बबूला हो गया.
गोकुला ने धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया
औरंगजेब ने मथुरा पर अपने नए फौजदार हसन अली को भेजा. हसन के साथ एक बड़ी फौज भी भेजी गई थी. इतना ही नहीं औरंगजेब खुद भी इस बगावत को कुचलने के लिए मुगल फौज के साथ मैदान ए जंग में शरीक हुआ. मुगलिया फौज और जाट बागियों के बीच एक बड़ी जंग लड़ी गई. आखिरकार औरंगजेब की जीत हुई, और गोकुला को कैद कर लिया गया. गोकुला जाट के सामने दो रास्ते दिए गए, या तो वो सपरिवार इस्लाम अपना ले या फिर अपनी मौत को गले लगा ले. गोकुला ने धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया. इसके बात उसकी हत्या कर दी गई, और उसके परिवार का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया. इस घटना के बाद जाट पूरी तरह से आक्रोशित हो उठे, और उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ बगावत को और तेज कर दिया.
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अकबर की कब्र को खोदकर उसकी हड्डियां जला डाली
उस वक्त बड़ी संख्या में जाटों को मारा गया और कई जाट महिलाओं को जौहर करना पड़ा. गोकुला के बाद बागियों का नेतृत्व ब्रजराज जाट और उसका भतीजा राजाराम जाट कर रहा था. बागी लगातार संघर्ष कर रहे थे. उन्होंने छापामार अभियान की मदद से अपने बगावत को जारी रखा था. मुगलिया फौज ने ब्रजराज जाट की भी हत्या करवा दी. बादशाह औरंगजेब ने मुगल फौजदार शफी खान को जाटों के खिलाफ युद्ध खोलने का हुक्म दिया. औरंगजेब के हुक्म के बाद जाटों ने भी अब उसे सबक सिखाने और गोकुला की मौत का बदला लेने की ठानी. राजाराम जाट ने आगरा में अकबर की कब्र को खोदकर उसकी हड्डियां जला डाली. साथ ही अकबर का हिंदू रीति रिवाज से श्राद्ध कर्म भी कर दिया. अपने परदादा अकबर की कब्र का ये हाल देख औरंगजेब बौखला गया. यही वो समय था, जहां से मुगल कमजोर होते चले गए.
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