समलैंगिक विवाह इन देशों में वैध, फिर भारत में क्यों आ रही अड़चनें? समझें पूरा मामला

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Oct 17, 2023, 10:20 AM IST

Same Sex Marriage Case

Same Sex Marriage Case: भारत में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग लंबे समय से उठती रही है. देश में समलैंगिकता और समलैंगिक विवाह की क्या कानूनी स्थिति है, आइये इसके बारे में जानते हैं.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में संविधान पीठ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में आज यानी 17 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी. इस फैसले पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. भारत सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है. सरकार का कहना है कि सेम सेक्स मैरिज की मांग शहरों में रहने वाले एलीट क्लास लोगों की है, जबकि ग्रामीण लोगों का इससे कोई लेना-देना नहीं है. दुनिया के 34 से ज्यादा देश समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे चुके हैं. भारत में भी इसे वैध करने की मांग लंबे समय से उठ रही है. लेकिन इसमें क्या अड़चनें आ रही हैं आइये समझते हैं.

सरकार का कहना है कि भारत में विवाह की परिभाषा में सिर्फ पुरष और महिला ही आते हैं. सेम सेक्स मैरिज की अनुमति मिलती है तो समाज में इसका गलत संदेश जाएगा. जो चीजें पर्दे के पीछे होती थीं वो खुले तौर पर होने लगेंगी. धार्मिक लोगों का कहना है कि वेद या शास्त्र में इस तरह के संबंधों का उल्लेख नहीं है. विवाह का उद्देश्य वंशवृद्धि होता है. अगर इस तरह के रिश्ते को लीगल मान्यता मिलेगी तो विवाह का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा. उनका कहना है कि  देश के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने और चली आ रही मान्यताओं के चलते इस मुद्दे पर बड़ी आबादी खुद को असहज पाती है. 

भारत में विवाह को लेकर बने कानून में हिंदू विवाह अधिनियम, ईसाई विवाह अधिनियम, मुस्लिम विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत बांटा गया है. लेकिन इनमें किसी में भी समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह से संबंधित जिक्र नहीं है.

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LGBTQ समुदाय के पास क्या होंगे अधिकार?
सुप्रीम कोर्ट अगर आज समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए कह देती है तो LGBTQ (लेस्ब‍ियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्व‍ीयर) समुदाय को कई अधिकार मिल जाएंगे. सबसे बड़ा अधिकार तो यही होगा कि वह सेम सेक्स मैरिज में शादी कर सकेंगे. इसके अलावा बच्चा गोद लेने का अधिकार, बीमा और विरासत जैसे मुद्दों में वह कानून लाभ ले सकेंगे. हालांकि, इसमें अड़चन इस बात को लेकर होगी कि जब किसी बच्चे को गोद लेते हैं तो उनमें से किसी को माता-पिता के रूप में मान्यता दी जाती है. लेकिन सेम सेक्स क्या होगा, इसको लेकर भी स्थिति साफ करनी पड़ेगी. 

इन देशों में समलैंगिक विवाह को मिल चुकी मान्यता

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में क्या सुनाया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक जोड़ों के बीच रिश्तों को आपराधिक कृत्यों की श्रेणी से बाहर कर दिया था. इससे पहले समलैंगिक लोगों के बीच रिश्ता अपराध की श्रेणी में आता था. जिनके खिलाफ सामाजिक और कानूनी कार्रवाई की जाती थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने ऐसे संबंधों को अप्राकृतिक बताने वाली धारा 377 को निरस्त कर दिया था. LGBTQ (लेस्ब‍ियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्व‍ीयर) समुदाय के लोगों के लिए सर्वोच्च अदालत का यह फैसला ऐतिहासिक माना गया और उनके रिश्तों में एक नया अध्याय शुरू हो गया. 

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