Maharashtra Politics: NCP में 2 कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के पीछे क्या है शरद पवार का प्लान? समझिए पूरा गणित

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 10, 2023, 07:49 PM IST

Sharad Pawar

Maharashtra Politics: राजनीति मामलों के जानकारों का कहना है कि शरद पवार का यह फैसला सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय रानजीति में एंट्री कराने को लेकर है.

डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र में शनिवार को उस समय सियासी पारा गरमा गया जब एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने बड़ा ऐलान कर दिया. पार्टी के 25वें स्थापना दिवस के मौके पर शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल को NCP का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया. पवार की अचानक की गई इस घोषणा से हर कोई चौंक गया. हांलाकि, पवार के इस निर्णय के दौरान भतीजे अजित पवार भी वहां मौजूद थे. लेकिन उनको लेकर कोई भी ऐलान नहीं किया गया. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि शरद पवार के बाद नंबर 2 कहे जाने वाले अजित पवार का नाम क्यों नहीं था? क्यों एनसीपी में दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की जरूरत पड़ी? 

इस मामले में जब एनसीपी के सीनियर नेता छगन भुजबल से बात की गई तो उन्होंने इसके पीछे का लॉजिक समझाया. भुजवल ने बताया कि सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष इसलिए बनाया गया है ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में कामकाज बांटा जा सके. इन दोनों नेताओं के कंधों पर जिम्मेदारियां लादी गई हैं. यह सिर्फ 2024 के चुनाव के काम को हैंडल करने के लिए फैसला लिया गया है. उन्होंने कहा कि शरद पवार के इस फैसले का सभी नेताओं ने स्वागत किया है. कोई भी इस निर्णय से नाराज नहीं है.

सुप्रिया सुले को सीधा अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया?
राजनीति मामलों के जानकारों का कहना है कि शरद पवार का यह फैसला सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय रानजीति में एंट्री कराने को लेकर है. क्योंकि यह पहले से कहा जाता रहा है कि अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति देखेंगे. वह इसके लेकर काफी समय से सक्रिए भी हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से सुप्रिया सुले ने देश के मुद्दों पर जिस तरह अपनी सक्रियता दिखाई है इसका अंदाजा पहले से लगाया जा रहा था. लेकिन लोगों के यह समझ नहीं आ रहा कि सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष क्यों बनाया गया? उन्हें सीधा अध्यक्ष क्यों नहीं घोषित किया गया.

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इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसके पीछे पार्टी में चल रहा द्वंद बड़ा कारण है. शरद पवार चाहते तो सुप्रिया को सीधा अध्यक्ष बना सकते थे. लेकिन वह जानते हैं कि अगर उन्होंने यह ऐलान कर दिया होता तो पार्टी में विरोध शुरू हो सकता था. पार्टी के टूटने की भी आशंका थी. खासतौर पर भतीजे अजित पवार का विरोध झेलना पड़ेगा. यही वजह की उन्होंने धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है. हालांकि, अजित पवार ने इस फैसले का स्वागत किया है.

'अजित पवार नहीं हैं नाराज'
NCP जनरल सेक्रेटरी सुनील तटकरे ने कहा कि अजीत दादा ने हमेशा संगठन के लिए काम किया है, उन्होंने पिछले 24 सालों से पार्टी को मजबूत किया है. उन्होंने कहा कि अजित पवार को पार्टी के काम और जिम्मेदारियों में भूमिका निभाने में कभी भी किसी पद की आवश्यकता नहीं है.

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NCP में कब-कब क्या हुआ?
एनसीपी राजनीतिक उथल पुथल और बदलाव की कहानी नवंबर 2029 से शुरू हुई थी. इस चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 105 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि शिवसेना ने 56, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस के हाथ 44 सीटें लगी थी. मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी शिवसेना के बीच गठबंधन टूट गया. महाराष्ट्र की 288 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की जरूरत थी. ऐसे में बीजेपी ने अजित पवार से संपर्क साधा और उन्होंने शरद पवार के जानकारी के बगैर देवेंद्र फडणवीस के समर्थन दे दिया. इसके बाद रात में ही फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डिप्टी सीएम का पद की शपथ ले ली थी.

पवार के फैसले से मैं खुश-प्रफु्ल्ल पटेल
प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि वह पवार की घोषणा से उत्साहित हैं और पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करना जारी रखेंगे. पटेल ने कहा, ‘मैं 1999 से पवार साहब के साथ काम कर रहा हूं. इसलिए मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं है. बेशक, कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में प्रोन्नति पाकर मैं खुश हूं. मैं पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करना जारी रखूंगा.’ पवार ने पटेल को मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, गोवा और राज्यसभा का पार्टी प्रभारी भी बनाया. वहीं, सुले महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब में पार्टी मामलों के अलावा महिलाओं, युवाओं, छात्रों और लोकसभा से जुड़े मुद्दों की प्रभारी होंगी.

सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी बनाए जाने के बाद अब अजित पवार को पार्टी के मामलों पर सुले को रिपोर्ट करनी होगी. माना जा रहा है कि यह एक ऐसा कदम है, जिससे अजित को पार्टी में असहज महसूस करना पड़ सकता है. गौरतलब है कि शरद पवार ने पिछले महीने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी, जिसका पार्टी के सदस्यों के साथ-साथ अन्य राजनीतिक नेताओं ने जोरदार विरोध किया था. पवार की पेशकश पर विचार-विमर्श के लिए गठित राकांपा की समिति ने पांच मई को उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया था और उनसे पार्टी अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया था.

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