Same-Sex Marriage: समलैंगिक शादियों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से फिर मांगा जवाब, आखिर क्यों मुश्किल है भारत में सेम सेक्स मैरिज की राह?

Written By अभिषेक शुक्ल | Updated: Jan 06, 2023, 02:21 PM IST

Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

LGBTQ Marriage: भारत में समलैंगिक शादियों की राह आसान नहीं है. अगर इसे कानूनी मान्यता मिलती है तो बड़े स्तर पर संवैधानिक बदलावों की जरूरत पड़ेगी.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार (Union Government) से 15 फरवरी तक सेम सेक्स मैरिज पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को मार्च तक लिस्टेड करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के संबंध में अलग-अलग हाई कोर्ट के सामने पेंडिंग सभी याचिकाओं को अपने पास रख लिया है.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की बेंच ने केंद्र से 15 फरवरी तक इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाखिल करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि मार्च में सभी याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जाए.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी याचिकाकर्ता यदि अदालत के सामने अगर फिजिकली प्रेजेंट नहीं उपलब्ध है तो वह डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए अपनी बात रख सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं के वकीलों से इस मुद्दे, संबंधित कानूनों और पूर्व मिसाल, यदि कोई हो तो, उस पर एक लिखित नोट दाखिल करने और इसे आपस में और कोर्ट के साथ साझा करने को कहा.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) समलैंगिक विवाहों को लेकर दो राज्यों की याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. दिल्ली और केरल हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को लेकर एक ट्रांसफर पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीए एस नरसिम्हा की दो सदस्यीय पीठ इस केस की सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पहले भी जवाब भी मांगा है.

सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग की ओर से दायर जनहित याचिका पर भी सुनवाई हुई. दोनों लगभग 10 साल से एकसाथ हैं लेकिन उनकी शादी को कानूनी मान्यता नहीं मिली है. दिसंबर 2021 में दोनों ने शादी की थी लेकिन उनकी मांग है कि इस शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत इसे कानूनी मान्यता दी जाए.

एक याचिका में पार्थ फिरोज मेहरोत्रा ​​और उदय राज आनंद की भी है. दोनों बीते 17 साल से एकसाथ हैं. दोनों ने कहा है कि वे एकसाथ 2 बच्चों की परवरिश भी कर रहे हैं लेकिन उनकी शादी को कानूनी मान्यता नहीं मिली है. मुश्किल यह है कि दोनों अपने बच्चों के विधिक माता-पिता नहीं बन सकते हैं.

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तीसरा केस एक विदेशी नागरिक और भारतीय नागरिक का है. दोनों ने साल 2014 में अमेरिका में शादी रचाई थी लेकिन अब स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 इसका रजिस्ट्रेशन चाहते हैं. केंद्र सरकार के जवाब के बाद अब सुप्रीम कोर्ट कोई अगला फैसला ले सकता है. 

भारत में आसान नहीं है समलैंगिक शादियों की राह

भारत में अब समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया था. हालांकि समलैंगिक शादियों को अभी कानूनी मान्यता नहीं मिली है लेकिन अब समलैंगिक लोग खुलकर समाज के सामने आ रहे हैं और शादियां कर रहे हैं. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलनी बाकी है. संसद में समलैंगिक विवाहों को लेकर अभी तक कोई कानून पेश नहीं हुआ है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर छोड़ रखा है. भारत में समलैंगिकता साल 2018 से ही अपराध नहीं है. भारत में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार है. आमतौर पर ऐसे आरोप लगते हैं कि यह सरकार परंपरावादी सरकार है और समलैंगिकों के हित में नहीं है. जानकार कहते हैं कि यह उम्मीद करना कि संसद से इसकी राह निकलेगी, बेमानी होगी. 

भारत में क्यों समलैंगिक शादियों की राह में कितने रोड़े?

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उज्ज्जव भरद्वाज कहते हैं कि भारत में भी समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता मिल सकती है लेकिन अभी तक संसद की ओर से कोई कानून नहीं बनाया गया है. कानून बनाने का अधिकार संसद को है, सुप्रीम कोर्ट को नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने केवल समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है. पारंपरिक लोग ऐसी शादियों का विरोध करते हैं हालांकि अब ऐसे रिश्तों को सामाजिक स्वीकृति मिल रही है. 

सुप्रीम कोर्ट की एक अधिवक्ता हर्षिता निगम कहती हैं कि LGBTQ अब अपने अधिकारों को लेकर मुखर हो रहा है. हाल के दिनों में हुई कई शादियां चर्चा में रही हैं. LGBTQ समुदाय चाहता है कि समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत कानूनी मान्यता दे दी जाए. सरकार का रुख समलैंगिक विवाहों को लेकर पारंपरिक ही है. अगर समलैंगिक विवाहों को इजाजत मिलती है तो कई कानूनों में बदलाव करने होंगे. 

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सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य अधिवक्ता  विशाल अरुण मिश्रा ने कहा है कि मान्यताएं समय के साथ बदलती हैं. अभी तक अमेरिका में ऐसी शादियों को कानूनी मान्यता नहीं मिली थी. भारत में भी आने वाले दिनों में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं. अभी भारत का रुख ऐसी शादियों को लेकर पैसिव है. अगर लोग मुखर होंगे, LGBTQ अपने अधिकारों के लिए लड़ेगा तो जाहिर सी बात है कि उन्हें भी उनका हक मिलेगा. हो सकता है कि यह लड़ाई लंबी चले. सरकार को चाहिए कि गे मैरिज को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करे और लोगों को उनका सही हक मिले.

अगर समलैंगिक शादियों को मिले कानूनी मान्यता तो होगी सरकार के सामने चुनौती?

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता पवन कुमार गे मैरिज पर कहते हैं कि समलैंगिक विवाहों को भारत में कानूनी मान्यता देना बेहद मुश्किल है. भारत में इसकी राह इसलिए जटिल है क्योंकि अगर गै मैरिज को वैध ठहराया जाता है तो हिंन्दू उत्तराधिकार अधिनियम (1955), हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, (HMGA) 1956, और हिन्दू एडॉप्शन और भरणपोषण अधिनियम (1956) और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में कई अहम बदलाव करने पड़ेंगे. कुछ ऐसे ही परिवर्तन दूसरे धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में करने पड़ेंगे. 

एडवोकेट पवन कहते हैं कि मुस्लिम लॉ में समलैंगिकता की कोई जगह नहीं है. ऐसे में इस फैसले से धार्मिक टकराव भी हो सकते हैं. सरकार इस दिशा में इसी वजह से कोई पहल नहीं कर रही है. समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलती है तो सबसे पहले संपत्ति, एडॉप्टेशन, भरण-पोषण से लेकर वसीयत संबंधी कानूनों में भी बदलाव करना पड़ेगा. अचानक से इतने बड़े बदलाव के लिए तैयार हो पाना,मुश्किल काम है. 

तलाक, मेंटिनेंस, पति-पत्नी की परिभाषा और संतान, समलैंगिक शादियों की राह में रोड़े 

यूपी के सिद्धार्थनगर में फैमिली लॉ से जुड़े मामलों को देखने वाले एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि अगर समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देनी है तो सरकार को पहले संसद में एक के बाद एक कई फैसले लेने पड़ेंगे. पति, पत्नी और संतान को लेकर स्पष्ट परिभाषाओं की जरूरत पड़ेगी. समलैंगिक शादियों में कौन पति है, कौन पत्नी, इसे तय कर पाना भी मुश्किल होगा. सेक्सुअल ओरिएंटेशन पर विस्तृत बहस की जरूरत होगी. हिंदू पर्सनल लॉ से लेकर मुस्लिम और क्रिश्चियन लॉ तक पर इसका असर पड़ेगा. ऐसी शादियों को  स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रखा जा सकता है लेकिन इस एक्ट में भी बदलाव की जरूरत पड़ेगी.

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ऐसी शादियों में तलाक होता है तो पति के कर्तव्यों को लेकर भी एक विस्तृत बहस की जरूरत पड़ेगी. पत्नी के भरण-पोषण से जुड़े मामलों का निपटारा कैसे होगा, यह भी एक यक्ष प्रश्न बना रहेगा. संपत्ति के अधिकार को लेकर भी बहस छिड़ेगी. समलैंगिक शादियों पर कोई फैसला लेने से पहले लॉ कमीशन के गठन की जरूरत पड़ेगी जो इस संवेदनशील मामले पर विस्तृत बहस कर सके.

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