Kota Suicide: एंटी सुसाइड फैन भी नहीं बचा पा रहा जान, आखिर कौन है कोटा में 25 मौतों का जिम्मेदार?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 13, 2023, 12:50 PM IST

students committed suicide in Kota

Spring Loaded Fans in Kota: कोटा में पिछले 8 महीने में 25 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे ऐसे थे जो टेस्ट में फेल हुए या फिर घर परिवार की टेंशन थी.

डीएनए हिंदी: Kota Suicide News- राजस्थान का कोटा शहर इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने के लिए कोचिंग सेंटर का हब माना जाता है. यहां से तैयारी करके हजारों बच्चे हर साल देश विदेश के बड़े-बड़े इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाते हैं. लेकिन बीते कुछ समय में यहां बढ़ते सुसाइड के मामलों ने चिंता बढ़ा दी है. परीक्षा में फेल होने या अन्य परेशानियों की वजह से छात्र यहां मौत को लगे लगा रहे हैं. पिछले 8 महीने में कोटा में 25 स्टूडेंट्स आत्महत्या कर चुके हैं. इस बीच सवाल ये उठ रहा है कि आखिर इन मौतों का जिम्मोदार कौन है?

झारखंड के रांची की रहने वाली 16 साल की छात्रा ने मंगलवार को फंखे से लटकर खुदकुशी कर ली. छात्रा का नाम रिचा सिन्हा था. रिचा 5 महीने पहले ही NEET की तैयारी करने राजस्थान के कोटा आई थी. यहां उसने इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स स्थित हॉस्टल में रूम ले रखा था. छात्रा ने आत्महत्या क्यों की कि इसके लेकर फिलहाल पता नहीं चल सका है. लेकिन रिचा के पड़ोस में रहने वाले अन्य छात्राओं का कहना है कि वह पढ़ाई को लेकर कुछ समय से टेंशन में थी.

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एंटी सुसाइड फैन भी नहीं बचा सके जान?
इससे पहले 28 अगस्त 2023 को दो छात्रों ने आत्महत्या की थी. जांच में पता चला दोनों छात्र पढ़ाई में औसत थे. कोचिंग संस्थान में टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके उन्होंने दबाब में आकर मौत को गले लगाना बेहतर समझा. इसके बाद कोटा प्रशासन ने हर हॉस्टल और कोचिंग संस्थान में एंटी सुसाइड फैन लगाने का आदेश दिया था. तब इसे बेहद क्रांतिकारी फैसला बताया गया था. दावा किया गया था कि इससे आत्महत्या के मामलों में कमी आएगी और छात्रों की जान बचाई जा सकेगी. लेकिन रिचा सिन्हा की खुदकुशी ने इस दावे को भी फेल कर दिया है. रिचा ने खुदकुशी पंखे से लटककर ही की.

कोटा में हो रही इन मौतों का जिम्मेदार कौन?
एंटी सुसाइड फैन लगाने के बावजूद भी कोटा में छात्रों की आत्महत्या के मामले थम नहीं रहे हैं. इसलिए कोटा में पंखे बदलने से ज्यादा कोचिंग सेंटर के हालात बदलना है. छात्रों के लिए ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए, जहां कामयाबी के साथ असफलता बर्दाश्त करने की भी क्षमता हो. जहां परीक्षा में फेल होने पर सब कुछ खत्म हो गया छात्रा ऐसा नहीं समझें. छात्रों के लिए परिजनों का सपोर्ट भी मिलना जरूरी है. क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर हम सफल नहीं हुए तो हमारी घर की आर्थिक स्थिति कैसे बदलेगी या परिवार, समाज के लोग यह कहकर ताना मारेंगे कि इतना पैसा खर्च किया फिर भी कामयाब नहीं हुआ.

जाहिर है कि सरकारी फाइलों में इस छात्रा की आत्महत्या भी आंकड़ों के रूप में दर्ज हो जाएगी. लेकिन सोचिए क्या यह सही हो रहा है? क्या हम बच्चों की जिम्मेदारी लेने से भाग रहें हैं? सिर्फ 15 या 16 वर्ष के बच्चों का इस तरह मौत को गले लगाना, सिर्फ आत्महत्या तो नहीं है. यह क्रूर तरीके से की गई हत्याएं हैं. ऐसी हत्याएं जिसका जवाबदेह कोई नहीं और न ही कोई ये जानता है कि इन बेवजह मौतों का सिलसिला कब रुकेगा. 

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