Gay Marriage Bill: अब अमेरिका में शादी कर सकेंगे समलैंगिक, भारत में क्यों नहीं है ऐसा मुमकिन

अभिषेक शुक्ल | Updated:Dec 14, 2022, 11:28 AM IST

अमेरिकी गे मैरिज बिल पर जो बाइडेन ने हस्ताक्षर कर दिए हैं. (तस्वीर- twitter.com/JoeBiden)

अमेरिका में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिल गई है. जो बाइडेन ने गे मैरिज बिल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. LGBTQ समुदाय इस फैसले से उत्साहित है.

डीएनए हिंदी: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 'द रिस्पेक्ट फॉर मैरिज एक्ट' पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यह कानून इंटररेशियल और समलैंगिक शादियों के लिए क्रांतिकारी फैसला साबित होने जा रहा है. डेमोक्रेट्स के इस फैसले के बाद अमेरिका में लेस्बियन-गे-बाइसेक्सुअल-ट्रांसजेंडर क्वीर (LGBTQ) कम्युनिटी के लोग बेहद खुश नजर आ रहे हैं. एक अरसे से अमेरिका में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग उठाई जा रही है. अब क्वीर कम्युनिटी को उसका सही हक मिल गया है.

द रिस्पेक्ट फॉर मैरिज एक्ट, समलैंगिक दंपतियों और उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों को बढ़ावा देगा. अब उनका परिवार होगा, उन्हें अपने तरीके से वे पढ़ा-लिखा सकेंगे. उन्हें पारिवारिक जिंदगी जीने का हक मिलेगा. जब जो बाइडेन ने गे मैरिज बिल पर हस्ताक्षर किए तब इस समुदाय के प्रमुख सदस्य व्हाइट हाउस में मौजूद थे. अब अमेरिका का LGBTQ समुदाय बेहद खुश नजर आ रहा है.

जो बाइडेन ने व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में कहा,'आज का दिन अच्छा है. यह दिन अमेरिका की ओर से समानता के लिए उठाया गया बड़ा कदम है. शादी एक महत्वपूर्ण निर्णया है, जिसे लेना का हक सबके लिए एक जैसा होना चाहिए.' 

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जो बाइडेन ने कहा, 'कानून के मुताबिक हर किसी को उन सवालों का जवाब देने का हक है जो वे खुद से करते हैं. कानून का इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. अब जरूरत है कि कानून इंटररेशियल मैरिज और समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता दे. यह पूरे देश और हर राज्य में लागू हो.'

धूमधाम से मनाया गया जो बाइडेन का यह फैसला

जब व्हाइट हाउस में जो बाइडेन ने इस ऐतिहासिक बिल पर मुहर लगाई तब इस फैसले का जश्न मनाया गया. इस दौरान क्वीर कम्युनिटी के लोगों ने म्युजिकल फरफॉर्मेंस दी और खुशी जताई. इस सेलिब्रेशन में सिंडी लॉपर जैसे दिग्गज मौजूद रहे.

डेमोक्रेट्स इस कानून को साल के अंत तक लाना चाहते थे. संसद के दोनों सदमों में डेमोक्रेट्स के पास ही बहुमत है. डेमोक्रेट्स का डर था कि कहीं अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक कपल्स के अधिकारों पर विपरीत फैसला न दे दे.  
 
भारत में ऐसा क्यों नहीं है मुमकिन?

भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया था. हालांकि समलैंगिक शादियों को अभी कानूनी मान्यता नहीं मिली है लेकिन अब समलैंगिक लोग खुलकर समाज के सामने आ रहे हैं और शादियां कर रहे हैं. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलनी बाकी है. संसद में समलैंगिक विवाहों को लेकर अभी तक कोई कानून पेश नहीं हुआ है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर छोड़ रखा है. भारत में समलैंगिकता साल 2018 से ही अपराध नहीं है. 

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भारत में क्यों समलैंगिक विवाह की आसान नहीं है राह

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उज्ज्जव भरद्वाज कहते हैं कि भारत में भी समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता मिल सकती है लेकिन अभी तक संसद की ओर से कोई कानून नहीं बनाया गया है. कानून बनाने का अधिकार संसद को है, सुप्रीम कोर्ट को नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने केवल समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है. पारंपरिक लोग ऐसी शादियों का विरोध करते हैं हालांकि अब ऐसे रिश्तों को सामाजिक स्वीकृति मिल रही है. 

सुप्रीम कोर्ट की एक अधिवक्ता हर्षिता निगम कहती हैं कि LGBTQ अब अपने अधिकारों को लेकर मुखर हो रहा है. हाल के दिनों में हुई कई शादियां चर्चा में रही हैं. LGBTQ समुदाय चाहता है कि समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत कानूनी मान्यता दे दी जाए. सरकार का रुख समलैंगिक विवाहों को लेकर पारंपरिक ही है. अगर समलैंगिक विवाहों को इजाजत मिलती है तो कई कानूनों में बदलाव करने होंगे. 

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सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य अधिवक्ता  विशाल अरुण मिश्रा ने कहा है कि मान्यताएं समय के साथ बदलती हैं. अभी तक अमेरिका में ऐसी शादियों को कानूनी मान्यता नहीं मिली थी. भारत में भी आने वाले दिनों में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं. अभी भारत का रुख ऐसी शादियों को लेकर पैसिव है. अगर लोग मुखर होंगे, LGBTQ अपने अधिकारों के लिए लड़ेगा तो जाहिर सी बात है कि उन्हें भी उनका हक मिलेगा. हो सकता है कि यह लड़ाई लंबी चले. सरकार को चाहिए कि गे मैरिज को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करे और लोगों को उनका सही हक मिले.

...एक मुश्किल यह भी
सुप्रीम कोर्ट के ही एक अधिवक्ता पवन कुमार गे मैरिज पर अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि गे मैरिज को भारत में कानूनी मान्यता देना बेहद मुश्किल है. भारत में इसकी राह इसलिए जटिल है क्योंकि अगर गै मैरिज को वैध ठहराया जाता है तो हिंन्दू उत्तराधिकार अधिनियम (1955), हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, (HMGA) 1956, और हिन्दू एडॉप्शन और भरणपोषण अधिनियम (1956) और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में कई अहम बदलाव करने पड़ेंगे. कुछ ऐसे ही परिवर्तन दूसरे धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में करने पड़ेंगे. मुस्लिम लॉ में समलैंगिकता की कोई जगह नहीं है. ऐसे में इस फैसले से धार्मिक टकराव भी हो सकते हैं. सरकार इस दिशा में इसी वजह से कोई पहल नहीं कर रही है. समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलती है तो सबसे पहले संपत्ति, एडॉप्टेशन, भरण-पोषण से लेकर वसीयत संबंधी कानूनों में भी बदलाव करना पड़ेगा.

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