डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव इस बार काफी चर्चा का विषय हैं. साल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे इन चुनावों पर पूरे देश की नजर है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की चुनौती यह है कि वह राज्य के साथ-साथ निकायों में भी अपनी सत्ता बरकरार रखे. वहीं, विपक्ष के लिए यह मौका है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद की तैयारियों को अच्छे से आंके, ताकि उसे सही दिशा मिल सके. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव खुद अलग-अलग जिलों में जाकर निकाय चुनाव के लिए वोट मांग रहे हैं.
निकाय चुनाव वैसे तो पूरे राज्य में नहीं होते हैं लेकिन इस बार के चुनाव की टाइमिंग काफी अहम है. ठीक एक साल बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं. इसमें से शहरी इलाकों की लगभग 50 सीटें प्रभावित सीधे तौर पर प्रभावित होती हैं. ऐसे में इन चुनावों को लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है.
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लोकसभा सीट के दावेदारों की परीक्षा
जिन जिलों में नगर निगमों का चुनाव होना है, वहां स्पष्ट रूप से लोकसभा सीट के दावेदारों की परीक्षा होनी है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों तरफ से मौजूदा और पूर्व विधायक, मौजूदा और पूर्व सांसद अपनी दावेदारी मजबूत रखने के लिए जोर लगा रहे हैं. कुछ सीटों पर मौजूदा सांसद अपने करीबियों को चुनाव में उतारने में कामयाब हुए हैं. ऐसे में अगर वे जीत दर्ज हासिल करते हैं तो सांसदी के चुनाव में इन उम्मीदवारों की दावेदारी साबित होगी.
सत्ता पक्ष के विधायकों और सांसदों के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा जैसा है. निकाय चुनाव में यूपी सरकार के विधायक, मंत्री और खुद सीएम योगी तक प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में चुनाव नतीजे उसकी छवि को भी प्रभावित करेंगे. यूपी के निकाय चुनाव ही वह दिशा भी दिखाएंगे कि आगे विपक्ष की तस्वीर क्या होगी. अखिलेश यादव लगातार कह रहे हैं कि विपक्ष को मिलकर लड़ना होगा और कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वह क्षेत्रीय दलों को भी अहमियत दे.
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यूपी निकाय चुनाव का गुणा गणित
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