Anti Defection Law: दलबदल कानून क्या है? विधायकों पर किन-किन स्थितियों में लगता है बैन

कुलदीप सिंह | Updated:Jun 23, 2022, 07:48 PM IST

Anti Defection Law: अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी.

डीएनए हिंदीः महाराष्ट्र में जारी सियासी हलचल (Maharashtra Political Crisis) में शिवसेना (shiv sena) टूट के कगार पर पहुंच गई है. पार्टी के 40 से अधिक विधायक शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के साथ आ गए हैं. वहीं दर्जन भर से अधिक सांसद भी उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के खिलाफ हो गए हैं. अभी कुछ और विधायकों के भी गुवाहाटी पहुंचने की खबर सामने आ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बगावत पर उतरने के बाद भी इन विधायकों की सदस्यता बनी रहेगी? इसके लिए दलबदल कानून (Anti Defection Law) को विस्तार से समझते हैं. 

दलबदल कानून क्या है (What is the anti defection law) 
1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दलबदल विरोधी कानून’ पारित किया गया और इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में जोड़ा गया. दरअसल विधायकों के एक पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल होने को लेकर राजनीति को लेकर कई सवाल उठने लगे थे. इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में दलबदल की कुप्रथा को समाप्त करना था. इस कानून में कई प्रावधान किए गए. 

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इस कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर:

एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है.
कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के रुख के विपरीत वोट किया जाता है.
कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है.
छह महीने की अवधि के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.

कानून में हैं ये अपवाद 
अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी. 2003 में इस कानून में संशोधन भी किया गया. जब ये कानून बना तो प्रावधान ये था कि अगर किसी भूल पार्टी में बंटवारा होता है और एक तिहाई विधायक एक नया ग्रुप बनाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. लेकिन इसके बाद बड़े पैमाने पर दल-बदल हुए और ऐसा महसूस किया कि पार्टी में टूट के प्रावधान का फ़ायदा उठाया जा रहा है. इसलिए ये प्रावधान खत्म कर दिया गया.

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इन परिस्थितियों में नहीं लागू होता दलबदल कानून 

- जब पूरी की पूरी राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है.

- अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं.

-  अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है.

-  जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं.

‘आया राम गया राम’ बना उदाहरण 
अक्टूबर, 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने 15 दिनों के भीतर तीन बार दल बदलकर इस मुद्दे को राजनीति की मुख्यधारा में ला दिया था. उस दौर में ‘आया राम गया राम’ की राजनीति देश में काफी प्रचलित हो चली थी. अंतत: 1985 में संविधान संशोधन कर यह कानून लाया गया. दलबदल की समस्या कानून बनने के बाद भी जस की तस बनी हुई है. 

किस पार्टी के पास कितने विधायक  

महाविकास आघाड़ी -

शिवसेना - 55

राकांपा - 53

कांग्रेस - 44

(कुल विधायक - 152)

भाजपा - 106

छोटी पार्टियां एवं निर्दलीयः

बहुजन विकास आघाड़ी - 03

समाजवादी पार्टी - 02

प्रहार जनशक्ति पार्टी - 02

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना - 01

जन सुराज्य पार्टी - 01

राष्ट्रीय समाज पक्ष - 01

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) - 01

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शिवसेना विधायक लगातार छोड़ रहे उद्धव का साथ
शिवसेना के ये बागी गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ जुड़ते जा रहे हैं. शिंदे ने दावा किया है कि शिवसेना के 38 विधायक उनके साथ हैं. उन्होंने ये भी दावा किया है कि कई निर्दलीय और अन्य दलों के भी विधायकों उनके साथ है. शिंदे के मुताबिक, उनके पास 46 विधायकों का समर्थन है. शिंदे के बगावती तेवर अपनाने से महाराष्ट्र में पैदा हुए राजनीतिक संकट के बाद बैठकों का दौर चल रहा है. आज गुरुवार को महाविकास अघाडी के तीनों दलों के नेताओं की बैठक होगी. 

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