Azerbaijan-Armenian Conflict: अजरबैजान-आर्मेनिया के बीच विवाद की वजह क्या है? क्या तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही दुनिया

कुलदीप सिंह | Updated:Aug 04, 2022, 12:11 PM IST

Azerbaijan-Armenian Conflict: अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच 1991 टकराव जारी है. यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुंच चुका है लेकिन इसका हल नहीं निकल सका है.  

डीएनए हिंदीः चीन और ताइवान के बीच युद्ध की आहट से पहले अजरबैजान (Azerbaijan) और आर्मेनिया (Armenian Attack) के बीच जंग शुरू हो गई है. दोनों देशों एक दूसरे के सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहे हैं. इस हमले में अब तक तीन सैनिकों की मौत की भी खबर सामने आ चुकी है. दोनों के बीच काराबाख इलाके को लेकर विवाद है. नागोर्नो-कारबाख (Nagorno Karabakh) के सैन्य अधिकारियों ने दावा किया है कि अजरबैजान की आर्मी ने ड्रोन हमले किए हैं. आइये समझते हैं कि दोनों देशों के बीच झगड़ा किस बात का है.  

अजरबैजान-आर्मेनिया के बीच क्यों छिड़ी है जंग?
आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच विवाद नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर है. नागोर्नो-काराबाख का इलाका दोनों देशों की सीमा के पास का है. यह इलाका अजरबैजान में है लेकिन फिलहाल इस पर अर्मेनिया की सेना का कब्जा है. करीब 4,000 हजार वर्ग किमी का ये पूरा इलाका पहाड़ी है, जहां तनाव की स्थिति बनी रहती है. यह क्षेत्र ईरान और तुर्की के भी करीब है. बता दें कि दोनों ही देश किसी समय सोवियत संघ (USSR) के हिस्सा थे. जब सोवियत संघ का पतन शुरू हुआ तो दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ता गया. 1991 में भी दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनी थी. 

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कई बार हो चुका है युद्ध 
आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच तनाव 1991 से ही शुरू हो गया. तीन साल तक टकराव के बाद रूस ने दखल दिया. रूस की पहल के बाद 1994 में दोनों देशों के बीच सीजफायर करा दिया गया. हालांकि इसके बाद भी टकराव की स्थिति हमेशा बनी रही. इसके बाद 2018 में एक बार फिर दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई. दोनों ही देशों ने अपनी सीमा पर सैनिकों को बढ़ाना शुरू कर दिया. बाद में आर्मेनिया के जिस क्षेत्र पर अजरबैजान ने हमला किया उस क्षेत्र में रूस की शांति सेना तैनात होती है. 

UN में उठ चुका है मामला 
दोनों देशों के बीच टकराव का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी उठ चुका है. पहली बार यह मामला 1993 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गया. तब इस मामले में चार प्रस्ताव भी पास किए गए. हालांकि उनमें से अभी तक एक भी प्रस्ताव लागू नहीं किया जा सकता है. 

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2020 में हुआ था भीषण टकराव
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच अक्तूबर-नवंबर 2020 में केवल छह सप्ताह तक युद्ध चला था. हालांकि इसके बाद पूरी दुनिया में हलचल पैदा हो गई थी. शुरुआत में तो इस युद्ध को अमेरिका और यूरोप ने गंभीरता से नहीं लिया. इस युद्ध को भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली तनातनी के तौर पर ही देखा गया हालांकि बाद में इसके परिणाम से पूरी दुनिया दंग रह गई. अर्मेनिया की सेना एक ऐसी अनुशासित और सुगठित सेना मानी जाती थी, जिसके पास बड़ी संख्या में बहुत अच्छे टैंक और वाहन थे. हालांकि तेल की आय से अजरबैजान ने इस बीच तुर्की और इस्राइल से कई प्रकार के बहुत सारे ड्रोन खरीदे हैं. इन्हीं ड्रोन से अपने हवाई हमलों द्वारा आर्मेनियाई तोपों, टैंकों और सैन्य वाहनों की धज्जियां उड़ा दीं. बताया जाता है कि तब युद्ध में अजरबैजान ने आर्मेनिया के 175 टैंक ध्वस्त कर किए थे. तुर्की ने अपने कई एफ-16 युद्धक विमान अजरबैजान में तैनात कर रखे थे. वहीं रूस ने आर्मेनिया को 8 सुखोई-30  युद्धक विमान दे दिए. 

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