Black cocaine in India: क्या होता है ब्लैक कोकीन, क्यों कुत्ते भी नहीं पहचान पाते गंध, जानिए इसके बारे में सबकुछ

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Oct 02, 2022, 03:24 PM IST

ब्लैक कोकीन को लेकर विशेषज्ञों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. इसे पकड़ पाना जांच एजेंसियों के लिए भी बेहद मुश्किल है. आइए जानेत हैं क्यों.

डीएनए हिंदी: हाल ही में देश का पहला ऐसा मामला सामने आया है, जहां नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने बोलीविया से मुंबई आई एक महिला को गिरफ्तार कर करीब 3.2 किलो ब्लैक कोकीन जब्त किया है. इसकी कीमत करीब 13 करोड़ आंकी गई है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर क्या है ब्लैक कोकीन और क्यों एजेंसियों के लिए इसे पकड़ना चुनौती होता है? 

क्या होता है ब्लैक कोकीन?

ब्लैक कोकीन एक खतरनाक नशीला पदार्थ है. इसे सामान्य कोकीन और कई तरह के केमिकल को मिलाकर बनाया जाता है. इसे कोकीन हाइड्रोक्लोराइड या कोकीन बेस भी कहा जाता है. जानकारी के मुताबिक इसे कोयला, कोबाल्ट, एक्टिवेटेड कार्बन और आयरन सॉल्ट जैसी चीजें मिलाकर तैयार किया जाता है. ऐसा करने से इसका रंग पूरी तरह काला हो जाता है. ब्लैक कोकीन को दुर्लभ और अवैध ड्रग्स की कैटेगरी में रखा गया है. 

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पहचानने में आती हैं बहुत मुश्किलें

जानकारों के मुताबिक ब्लैक कोकीन को पकड़ना बेहद मुश्किल होता है. इसकी मुख्य वजह है कि इसमें से किसी तरफ की गंध नहीं आती है. इसे ऐसे केमिकल में मिलाकर तैयार किया जाता है जिससे इसकी गंध बेहद कम हो जाए. वहीं काला रंग होने की वजह से ये कोयला जैसा नजर आता है जिसके चलते इसे पहचानना काफी मुश्किल हो जाता है. 

स्निफर डॉग को भी देता है चकमा

जब भी कोई तस्कर ब्लैक कोकीन लेकर गुजरता है तो जांच एजेंसियां बिना गंध और काले रंग की वजह से इसे नहीं पकड़ पाती. एनसीबी मुंबई के जोनल डायरेक्टर अमित घवाटे ने बताया कि नए तरह का ड्रग्स होने के चलते ब्लैक कोकीन को बाजार में बेचने में आसानी होती है. वहीं गंध ना होने की वजह से इसे स्निफर डॉग भी नहीं पकड़ पाते है. स्निफर डॉग को अलग अलग ड्रग्स की गंध से उन्हें पकड़ने के लिए तैयार किया जाता है. यही वजह है कि गंध ना होने से कई बार तस्कर ब्लैक कोकीन को आसानी से भारत में प्रवेश करा देते हैं.

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ग्राहकों को लुभाने की कोशिश

जानकारी के मुताबिक तस्करों द्वारा त्योहारों और पार्टियों के सीजन में नए ग्राहकों को लुभाने के लिए भी ब्लैक कोकीन का इस्तेमाल किया जा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार और कई किताबों के लेखक विवेक अग्रवाल ने इस नई तरह के कोकीन को लेकर बताया कि कोकीन का सबसे ज्यादा उत्पादन दक्षिण अमेरिकी देशों में होता है. यहीं से अंतरराष्ट्रीय ड्रग सिंडीकेट चलाया जाता है. इनमें कोलंबिया, पेरू, ब्राजील और बोलिविया जैसे देश कोकीन के सबसे बड़े स्रोत हैं.  इन देशों में ब्लैक कोकीन का निर्माण होता है और फिर इथोपिया और केन्या समेत कई देशों के अलग अलग रुट के जरिए इसे भारत में भेजा जाता है. 

इसके साथ विवेक अग्रवाल ने बताया है कि आजकल कोकीन कई रास्तों से भारत में आ रहा है लेकिन मुख्य तौर पर इसे सी रुट और हवाई रुट के माध्यम से ही लाया जाता है. जानकारी के मुताबिक एक बार जब ब्लैक कोकीन आ जाती है फिर केमिकल ट्रीटमेंट के जरिए इसमें से कोकीन बेस अलग कर दिया जाता है और फिर मुंबई, गोवा, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इसे सप्लाई किया जाता है. आजकल इसका चलन मेट्रो सिटीज के अलावा दूसरी श्रेणी के शहरों में भी बढ़ रहा है. 

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पैसे वाले लोगों का ड्रग्स है कोकीन

आमतौर पर कोकीन को पैसे वाले लोगों का ड्रग्स भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी कीमत बाकी नशीले पदार्थों से काफी ज्यादा होती है. वहीं दिल्ली के फिजिशियन और वरिष्ठ डॉक्टर अमित कुमार ने बताया कि कोकीन को इंसानी शरीर के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है. ये बाकी ड्रग्स के मुकाबले ज्यादा खतरनाक होता है. कोकीन लेने से व्यक्ति का खून का बहाव तेज हो जाता है और इसका असर सीधा दिल और दिमाग पर होता है. इससे हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है. ये ऐसा ड्रग्स है कि इसके ओवरडोज से किसी भी व्यक्ति की मौत तक हो सकती है.

इनपुट-IANS

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