डीएनए हिंदीः हिमाचल और उत्तराखंड से लेकर महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों में मूसलाधार बारिश का सिलसिला जारी है. लेह से लेकर लद्दाख और उत्तराखंड में कई जगहों पर बादल फटने (Cloudburst) की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इसमें जानमाल की काफी हानि होती है. तेलंगाना में भी अब इस तरह की घटनाएं सामने आने लगी हैं. सवाल है कि आखिर बादल फटने की घटनाएं कैसे होती हैं और क्या इन्हें रोका जा सकता है. अपनी इस रिपोर्ट में इसे विस्तार से समझते हैं.
क्यों फटते हैं बादल?
किसी भी क्षेत्र विशेष में जब एक सीमा से अधिक मूसलाधार बारिश होती है तो इस घटना को बादल का फटना कहते हैं. सामान्य स्थिति में अगर किसी जगह पर एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश होने लगती है तो यह घटना बादल का फटना कहलाती है. जब बादल फटता है तो एक ही स्थान पर एकसाथ लाखों लीटर पानी गिरता है. बादल फटने की वजह से उस जगह पर बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ी जगहों पर ऐसी घटनाएं जानलेवा साबित होती हैं. मैदानी भागों में बादल के फटने की घटना असामान्य है और इसका व्यापक असर नहीं पड़ता है. जब ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह स्थिर हो जाते हैं और वहां मौजूद पानी की बूंदे आपस में मिलने लगती हैं तब अचानक से भीषण बारिश होने लगती है. बादल की बूंदों के मिलने की वजह से इनका भार बढ़ जाता है और बादल का घनत्व बढ़ जाता है. जिस जगह पर बादल फटते हैं वहां बारिश की रफ्तार बेहद तेज होती है.
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क्या बादल फटने का लग सकता है पूर्वानुमान?
मौसम का पता लगाने के लिए कई सैटेलाइट और मौसम विज्ञान न उपकरण मौजूद हैं. हालांकि बादल के फटने की सटीक भविष्यवाणी करना मुश्किल है. मौसम का पता लगाने के लिए डोपलर रडार (doppler radar) मौजूद हैं. यह किसी एक स्थान पर मौसम को लेकर काफी हद तक सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं. हालांकि मौसम किस तरह बदल सकता है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. हिमालय क्षेत्र के जिन स्थानों पर डोपलर रडार मौजूद हैं वहां भी कई बार बादल फटने की घटनाएं देखी गई है. इनका भी सटीक पूर्वानुमान लगाना मुश्किल था. मौसम विभाग का भी कहना है कि किसी विशेष स्थान पर किसी खास समय में कितनी बारिश होगी इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है.
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हिमालय क्षेत्र में कितने लगे हैं रडार?
केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह के मुताबिक हिमालय क्षेत्र में कुल 7 रडार मौजूद हैं. इनमें से दो जम्मू और कश्मीर (सोनमर्ग और श्रीनगर), दो उत्तराखंड (कुफरी और मुक्तेश्वर) और असम (मोहनबारी), मेघालय (सोहरी) और त्रिपुरा (अगरतला) में मौजूद है. अगर देशभर की बात करें तो मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए 34 रडार मौजूद हैं. इनमें से 6 पिछले 5 साल में ही लगाई गई हैं.
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