Curative Petition: क्यूरेटिव पिटीशन क्या होती है? कश्मीरी पंडितों के नरसंहार मामले में क्यों है अहम

कुलदीप सिंह | Updated:Nov 22, 2022, 02:06 PM IST

What is Curative Petition: जम्मू कश्मीर में 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार में सैकड़ों लोगों को मौत हुई वहीं हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा

डीएनए हिंदीः जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार (Kashmiri Pandit Exodus) की सीबीआई/एनआईए या कोर्ट द्वारा नियुक्त एजेंसी से कराए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दाखिल की गई है. एनजीओ रूट्स इन कश्मीर की ओर से दायर याचिका को देरी का आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में  खारिज कर दिया था. अब क्यूरेटिव याचिका (Curative Petition) में सिख विरोधी दंगों की फिर से हो रही जांच का हवाला देते हुए कहा गया है कि इंसानियत के खिलाफ, नरसंहार जैसे मामलों में कोई समयसीमा का नियम लागू नहीं होता है. आखिर क्यूरेटिव याचिका क्या होती है और इससे कैसे कश्मीरी पंडितों को इंसाफ की आस लगी है? विस्तार से समझते हैं.  

क्या है क्यूरेटिव पिटीशन? 
क्यूरेटिव पिटीशन (उपचार याचिका) पुनर्विचार (रिव्यू) याचिका से थोड़ा अलग होता है. इसमें फैसले की जगह पूरे केस में उन मुद्दों या विषयों को चिन्हित किया जाता है जिसमें उन्हें लगता है कि इन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. क्यूरेटिव पिटीशन में ये बताना ज़रूरी होता है कि आख़िर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है. इसे तब दाखिल किया जाता है जब किसी दोषी की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाती है. ऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन दोषी के पास मौजूद अंतिम मौका होता है जिसके द्वारा वह अपने लिए निर्धारित की गई सजा में नरमी की गुहार लगा सकता या सकती है. अगर किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला नहीं दिया हो तो भी वह मामले में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल कर सकता है. क्यूरेटिव पिटीशन किसी भी मामले में कोर्ट में सुनवाई का अंतिम चरण होता है. इसमें फैसला आने के बाद दोषी किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता नहीं ले सकता है. 

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क्या है क्यूरेटिव पिटीशन का नियम 
किसी भी क्यूरेटिव पिटीशन के लिए उसका सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है. इसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था, उनके पास भी भेजा जाना ज़रूरी होता है. अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से इत्तेफाक़ रखते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को वापस उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है. 

कब हुई इसकी शुरुआत 
क्यूरेटिव पिटीशन सबसे पहले 2002 में रूपा अशोक हुरा बनाम अशोक हुरा और अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सामने आई. तब कोर्ट से सवाल किया गया है कि अगर कोर्ट किसी को दोषी ठहरा दे तो क्या उसे किसी तरह राहत मिल सकती है. नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति रिव्यू पिटीशन डाल सकता है लेकिन सवाल ये पूछा गया कि अगर रिव्यू पिटीशन भी खारिज कर दिया जाता है तो क्या किया जाए. तब सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गए न्याय के आदेश को फिर से उसे दुरुस्त करने लिए क्यूरेटिव पिटीशन की धारणा लेकर सामने आई. तब पहली क्यूरेटिव पिटीशन की अवधारणा सामने आई.  

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किन मामलों में डाली गई क्यूरेटिव पिटीशन
सुप्रीम कोर्ट में कई मामलों को लेकर क्यूरेटिव याचिका डाली जा चुकी है. 1993 के मुंबई ब्लास्ट में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार की थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी से पहले आधी रात को सुनवाई की. हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले को बरकरार रखा था. वहीं दिल्ली के निर्भया केस के आरोपियों ने भी फांसी की सजा से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी. हालांकि उसे मामले में भी कोर्ट से राहत नहीं मिली थी.

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