डीएनए हिंदीः शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की समरकंद में हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के लिए तुर्की (Turkey) के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन बेताब दिखे थे. हालांकि संयुक्त राष्ट्र की बैठक में तुर्की ने अपना असली रंग दिखा दिया. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में एक बार फिर तुर्की ने कश्मीर का मसला उठा दिया है. इसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साइप्रस (Cyprus) का मुद्दा उठा दिया. तुर्की हमेशा से इस मुद्दे पर जवाब देने से बचता रहा है. जयशंकर ने इसे ट्वीट कर कहा कि तुर्की संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के हिसाब से साइप्रस मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकाले. सवाल है कि आखिर साइप्रस मुद्द क्या हो और इसका नाम लेने से ही तुर्की क्यों तिलमिला जाता है.
साइप्रस क्यों है खास?
दरअसल भूमध्यसागरीय द्वीप साइप्रस तुर्की के दक्षिण में है. इसके पश्चिम में सीरिया और उत्तर पश्चिम में इजराइल स्थित है. यह एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाका है. यहां जिसका भी कब्जा होगा वह भूमध्य सागर के पूर्वी भाग को कंट्रोल कर सकता है. यही कारण है कि हर कोई इस द्वीप पर नियंत्रण स्थापित करता चाहता है. साइप्रस को चार भागों में बांटा जाता है. इसके उत्तर तुर्की का दावा है. वहीं दक्षिणी भाग पर यूरोपियन यूनियन का सदस्य है. इसी को साइप्रस का मुख्य भाद माना जाता है. साइप्रस की राजभाषा ग्रीक और तुर्की है. यह भूमध्य सागर का तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है.
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साइप्रस को लेकर क्या है विवाद?
साइप्रस में मुख्य रूप से ग्रीस और तुर्की समुदाय के लोग रहते हैं. इनके बीच काफी समय से नस्ली विवाद चल रहा है. यहां फिलहाल कोई नहीं रहता है. 1974 में तुर्की की सेना ने इस द्वीप पर आक्रमण किया और साइप्रस के मशहूर शहर वरोशा को अपने नियंत्रण में ले लिया. 1974 में तब हुई जब तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर हमला करते हुए अवैध कब्जा कर लिया तब साइप्रस में सैन्य विद्रोह हुआ था जिसे ग्रीस का समर्थन था. उसी से तुर्की बौखलाया था जिसका ग्रीस के साथ समुद्र क्षेत्र को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा था. उत्तरी साइप्रस पर कब्जे के बाद तुर्की ने उसे टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दर्न साइप्रस का नाम दे रखा है. किसी समय यह इलाका पर्यटकों से घिरा रहता था. यहां कई बहुमंजिला इमारतें भी थीं लेकिन आज यह इलाका वीरान हो चुका है तुर्की ने अपनी सेना में से 35 हज़ार सैनिकों को इस क्षेत्र में तैनात कर रखा है.
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डेढ़ लाख लोग हुए शरणार्थी
साइप्रस पर तुक्री के हमलों के कारण 162000 ग्रीक-साइप्रियोट अपने ही मुल्क में शरणार्थी बनकर रह गए. 20 हजार के करीब ग्रीक-साइप्रियोट अपना घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. इनमें से ज्यादातर करपासिया प्रायद्वीप के थे. तुर्की ने इन पर भी अत्याचार शुरू कर दिया. इसके बाद इन लोगों ने भी घर छोड़ दिया. 2000 से ज्यादा युद्धबंदियों को तुर्की की जेलों में रखा गया. सैकड़ों सैनिक और आम नागरिक लापता हो गए, जिनका आजतक पता नहीं चला कि वे जिंदा भी हैं या मर चुके हैं.
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