डीएनए हिंदीः अरुणाचल प्रदेश के तवांग (Tawang Clash) में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद तनाव चरम पर है. डोकलाम और गलवान के बाद यह तीसरी जगह है जहां दोनों देशों के बीच स्थित तनावपूर्ण बन गई है. दोनों देशों के बीच हुई झड़प में दोनों और के सैनिक घायल हुए हैं. हिंसक झड़प के बावजूद दोनों ही देशों की ओर से गोलियां नहीं चलाई गई हैं. आखिर भारत और चीन के बीच गोलियां चलाने पर बैन क्यों लगा है और एसएसी (LAC) और एलओसी (LoC) में क्या फर्क होता है, इसे विस्तार से समझते हैं.
क्या है लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC)
भारत और चीन के बीच जो सीमा दोनों देशों को एक दूसरे से अलग करती है उसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) कहते हैं. यह नाम सबसे पहले 1993 में दोनों देशों के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते के दौरान सामने आया. दोनों देशों के बीच सीमा रेखा को लेकर अभी तक कोई अहम समझौता नहीं हुआ. इसका मतलब किस देश की सीमा कहां तक है, इस पर अभी भी विवाद बना हुआ है. इसी कारण दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है. दोनों देशों के बीच 50 से 100 किमी का ऐसा इलाका है जहां दोनों देशों की सेनाएं निगरानी करती हैं. बता दें कि भारत और चीन के बीच 3,488 किमी लंबा बॉर्डर है. हालांकि चीन इसे सिर्फ करीब लगभग 2,000 किमी मानता है.
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क्या है लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC)
भारत और पाकिस्तान के बीच जो लाइन दोनों देशों को जम्मू कश्मीर में एक-दूसरे से अलग करती है उसे लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) कहा जाता है. इसकी लंबाई लगभग 776 किलोमीटर है. इस लाइन को दोनों देशों के बीच हुए सैन्य समझौते के बाद तय किया गया है. 1947 के बंटवारे के बाद ही यह लाइन अस्तित्व में आ गई थी. हालांकि 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो शिमला समझौते में इस पर औपचारिक मुहर लग गई. बता दें कि एलओसी कोई भी आधिकारिक सीमा नहीं है, लेकिन सैन्य नियंत्रण वाला वह हिस्सा होता है जो विवादित हिस्सों से दूर रहता है.
भारत-चीन बॉर्डर पर क्यों नहीं चलती गोलियां?
भारत और चीन के बीच एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए कई समझौते किए गए हैं. इसमें पहला समझौता 1993 में किया गया था. वहीं इसके बाद 1996, 2005, 2012 और 2013 में भी समझौते हुए. 1962 की जंग के बाद से भारत और चीन से रिश्ते काफी खटास भरे रहे थे. इसके बाद राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए तनाव कम करने के कई प्रयास किए गए. 1988 में उन्होंने चीन का दौरा भी किया. हालांकि उनके निधन के बाद कुछ समय तक चीन के साथ बातचीत बंद हो गई. पीवी नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने तो चीन के साथ बातचीत को एक बार फिर आगे बढ़ाया गया. 1993 में नरसिम्हा राव ने चीन का दौरा किया. इसी दौरान पहली बार दोनों देशों के बीच समझौता किया गया. इसमें शांति बनाए रखने पर जोर दिया गया.
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समझौते में क्या तय हुआ?
इस समझौते में तय किया गया कि दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं करेंगे. समझौते में यह भी तय किया गया कि अगर किसी देश का जवान गलती से भी एलएसी पार कर जाता है तो दूसरा देश उनको बताएगा और जवान फौरन अपनी ओर लौट आएगा. इस समझौते में तय किया गया कि तनाव बढ़ने पर दोनों देश एलएसी पर जाकर हालत का जायजा लेंगे और बातचीत से हल निकालेंगे.
भारत और चीन में हुए 5 बार समझौते
भारत और चीन से बीच एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए अब तक 5 बार समझौते हो चुके हैं. 1993 के बाद 1996 में एचडी देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री रहते दूसरी बार समझौता किया गया. इसमें तय किया गया कि ना तो दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करेंगे और ना ही धमकी देंगे. इसी समझौते के अनुच्छेद 6 में यह भी तय किया गया कि दोनों देशों के बीच सीमा पर गोली नहीं चलाई जाएगी. इस समझौते में तय किया गया कि दोनों देश एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में ना तो गोलीबारी करेंगे और ना ही जैविक हथियार या हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल करेंगे. इसके बाद चार और समझौते हुए जिनमें विवादित जगहों पर पेट्रोलिंग ना किए जाने पर सहमति बनाई गई.
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