Doha Agreement: दोहा समझौता क्या है? Al Zawahiri की मौत के बाद तालिबान क्यों लगा रहा अमेरिका पर इसके उल्लंघन का आरोप

Written By कुलदीप सिंह | Updated: Aug 02, 2022, 01:06 PM IST

Doha Agreement: अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच 2020 में दोहा समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस में दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनी थी. 

डीएनए हिंदीः अमेरिका में 9/11 हमले के आरोपी अलकायदा (Al Qaeda) चीफ अयमान अल-जवाहिरी (ayman al zawahiri) को अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) ने ड्रोन हमले में मार गिराया है. अल जवाहिरी ने ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हुए हमले चार विमानों को हाईजैक करने में मदद की थी. अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में जवाहिरी को मार गिराया गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसकी घोषणा कर दी है. उधर तालिबान जवाहिरी के मौत के बाद अमेरिका पर दोहा समझौते के उल्लंघन का आरोप लगा है. आखिर दोहा समझौता है क्या और क्यों अमेरिका पर इसका पालन ना करने का आरोप लग रहा है? आइये इसे विस्तार से समझते हैं. 

दोहा एग्रीमेंट क्या है?
दोहा एग्रीमेंट (Doha Agreement) को दूसरे शब्दों में Agreement for Bringing Peace to Afganistan कहा जाता है. अमेरिका और अफगानिस्तान के आतंकवादी समूहों के बीच 29 फरवरी 2020 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौते का उद्देश्य अफगानिस्तान में विदेशी ताकतों की वापसी और आतंकवादी समूहों को दूर रखना था. समझौते में यह भी निर्देशित किया गया था कि कोई भी आतंकवादी समूह अमेरिका या इसके सहयोगियों के विरूद्ध अपना काम नहीं करेगा. 

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समझौते में क्या कहा गया? 
दरअसल इस समझौते में कहा गया कि अमेरिका अफगानिस्तान से अपने बचे हुए सैनिकों को वापस लेने को सहमत हो गया. तालिबान ने वादा किया कि वह अल-क़ायदा या किसी अन्य चरमपंथी समूह को अपने नियंत्रण वाले इलाकों में काम करने की अनुमति नहीं देगा. इस समझौते में यह भी कहा गया कि 1,000 अफगान सुरक्षा बलों के बदले 5,000 तालिबान कैदियों की जेल से रिहाई की जाएगी. इतना ही नहीं तालिबान के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को हटा दिया जाएगा. खास बात यह भी कि इस समझौते में नाटो देशों का शामिल नहीं किया गया. सिर्फ अमेरिका और अफगानिस्तान ही इस समझौते में शामिल हुए. 

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क्यों पड़ी इस समझौते की जरूरत? 
न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर 2001 में 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. तब तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने वादा किया था कि इस लड़ाई में वक्त जरूर लग सकता है लेकिन जीत की मिलेगी. कई सालों तक लड़ाई के बाद भी अमेरिका इस लड़ाई में कामयाब नहीं हो सका. सैकड़ों सैनिकों की मौत और अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी लड़ाई का कोई नतीजा नहीं निकला था. साल 2004 तक यह संगठन पश्चिमी बलों और नई अफ़ग़ान सरकार के ख़िलाफ़ फिर से विद्रोह करने की स्थिति में आ गया था. बढ़ते हमलों के जवाब में, नए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में फ़ौजों की संख्या में ज़बरदस्त बढ़ोतरी की. इसके बाद, अफ़ग़ानिस्तान में नेटो सैनिकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई. एक समय, फ़ौज की संख्या अपने चरम पर 1,40,000 तक पहुंच गई. अमेरिका अफगानिस्तान के सैनिकों को ट्रेनिंग देने तक सीमित होता गया. 

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45 से हजार से ज्यादा अफगानिस्तान सैनिकों की मौत के बाद अमेरिका को भी अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा. डोनाल्ड ट्रंप ने फरवरी 2020 में एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए तालिबान के साथ गहन बातचीत शुरू की. दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद ही अमेरिका ने ट्रंप के शासनकाल में सबसे पहले अपने सैनिकों की वापसी करनी शुरू की.  

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