Enemy Property: शत्रु संपत्ति क्या होती है? मोदी सरकार कैसे इससे भरने जा रही अपनी तिजोरी

कुलदीप सिंह | Updated:Nov 14, 2022, 02:16 PM IST

Enemy Property: मोदी सरकार ने 2017 में इस कानून में संशोधन किया था. भारत में करीब एक लाख करोड़ रुपये की शत्रु संपत्ति मौजूद है.

डीएनए हिंदीः मोदी सरकार शत्रु संपत्ति (Enemy Property) को बेचकर अपनी तिजोरी भरने की तैयारी कर रही है. केंद्र सरकार करीब 10 हजार ऐसी संपत्तियों को बेचने की तैयारी कर रही है. ऐसी नहीं है कि सरकार पहली बार यह काम कर रही है. 2018 में भी केंद्र सरकार ने ऐसी संपत्तियों को बेचकर करीब 3 हजार करोड़ रुपये कमा चुकी है. आखिर शत्रु संपत्ति क्या होती है और क्यों केंद्र सरकार की इन संपत्तियों पर नजर बनी हुई है. विस्तार से समझते हैं. 

क्या होती है शत्रु संपत्ति?
आजादी के बाद जो लोग भारत से पाक जाकर बस गए उनकी संपत्तियों को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया. भारत सरकार ने इस संबंध में 10 सितंबर 1959 को एक आदेश जारी किया. शत्रु संपत्ति के संबंध में दूसरा आदेश 18 दिसंबर 1971 को जारी किया गया था. देश भर में ऐसी सभी संपत्तियां शत्रु संपत्ति स्वत: घोषित हो गईं. आसान भाषा में समझे को शत्रु संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसमें संपत्ति का दुश्मन कोई व्यक्ति ना होकर देश होता है. बंटवारे के समय करोड़ों लोग पाकिस्तान चले गए लेकिन वह अपनी संपत्ति यहीं छोड़ गए. ऐसी संपत्ति शत्रु संपत्ति कहलाई गई. भारत सरकार ने पाकिस्तानी राष्ट्रीयता लेने वालों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने कब्जे में ले लिया.  

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एक लाख करोड़ है कीमत
जानकारी के मुताबिक पिछले दिनों केंद्र सरकार ने ऐसी 9,400 संपत्तियों की पहचान की थी. इसकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है. ऐसे मामलों के लिए केंद्र सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम भी पारित कराया था. बाद में मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भी इसमें संशोधन किए गए. इस अधिनियम के तहत ऐसी तमाम संपत्तियों के मालिकान को अपनी जायदाद के रख-रखाव के लिए कुछ अधिकार भी हासिल हैं. 

जब कोर्ट तक पहुंचा मामला 
शत्रु संपत्ति को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान को राजा महमूदाबाद के नाम से जाना जाता था. यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रहने वाले थे. भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उनके पिता आमिर अहमद खान ईराक चले गए थे. कई सालों तक वह ईरान में रहे बाद में 1957 में उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली. हालांकि उनके बेटे यानी मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान भारत में ही रह गए. कुछ सालों बाद 1965 में भारत और पाकिस्तान में युद्ध हो गया. तब सरकार ने राजा महमूदाबाद की लखनऊ, नैनीताल और सीतापुर स्थित तमाम संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया. इसके बाद उन्होंने इंदिरा गांधी से इसे लेकर गुहार लगाई लेकिन कोई हल नहीं निकला. बाद में मोरारजी देसाई के पास भी यह मामला पहुंचा लेकिन इसका कोई हल नहीं निकल सका. इसके बाद मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान ने कोर्ट का रुख किया. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने उनके हल में फैसला दिया.  

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सरकार ने किया कानून में संशोधन 
इस फैसले से भारत सरकार को बड़ा झटका लगा. सरकार को डर था कि कहीं यह मामला शत्रु संपत्ति के अन्य मामलों में भी नजीर ना बन गए. इसके बाद सरकार इसमें संशोधन लेकर आई. 17 मार्च 2017 को मोदी सरकार के कार्यकाल में इस कानून में संशोधन कर शत्रु संपत्ति की व्याख्या बदल दी गई. संशोधन के बाद अब ऐसे लोग भी शत्रु माने गए जो भले ही भारत के नागरिक हैं लेकिन जिन्हें विरासत में ऐसी संपत्ति मिली है जो किसी पाकिस्तानी नागरिक के नाम है. इतना ही नहीं इसी संशोधन में सरकार को ऐसी संपत्ति बेचने का भी अधिकार दे दिया गया. राजा महमूदाबाद की थी सारी संपत्ति सरकार के पास आ गई. अब सरकार ऐसी सभी संपत्तियों को बेचकर अपनी तिजोरी भर रही है.  

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