क्या है INSACOG नेटवर्क, जो चीन के जैसे भारत में नहीं फैलने देगा कोरोना महामारी

Written By नीलेश मिश्र | Updated: Dec 20, 2022, 10:01 PM IST

INSACOG Network

What is INSACOG Network in Hindi: चीन में कोरोना का तेज प्रसार देखकर भारत भी अलर्ट हो गया है. इस बार INSACOG नेटवर्क अहम भूमिका निभाएगा.

डीएनए हिंदी: कोरोना महामारी (Covid-19 Pandemic) ने एक बार फिर से जोरदार दस्तक दे दी है. चीन में हर दिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. आशंका जताई जा रही है अगले तीन महीनों में चीन की 60 प्रतिशत जनसंख्या कोरोना संक्रमित (Corona) हो जाएगी. चीन में प्रसार को देखकर दुनिया के दूसरे देशों पर भी खतरा मंडराने लगा है. पिछली बार भी कोरोना की शुरुआत चीन से ही हुई थी. भारत में भी चीन से ही आए एक छात्र में सबसे पहले कोरोना पाया गया था. इस बार आशंका जताई जा रही है कि अगर ऐसे ही कोरोना फैलता रहा तो भारत में फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ सकता है. हालांकि, इसी बीच INSACOG नेटवर्क काफी चर्चा में है. कहा जा रहा है कि इसकी मदद से भारत में कोरोना की रफ्तार को कम किया जा सकेगा और चीन की तरह भारत में कोरोना नहीं फैल पाएगा.

INSACOG का फुल फॉर्म है इंडियन SARS-CoV-2 जिनोमिक्स कंसोर्टियम. यह एक मल्टी-लैब एजेंसी है जिसे भारत सरकार की ओर से बनाया गया है. इसका लक्ष्य है कि कोरोना वायरस से जुड़े जितने भी जीनोम का डेटा सामने आए उसकी सीक्वेंसिंग करके तुरंत उसका विश्लेषण किया जाए. इस एजेंसी का मुख्य काम है कि कोरोना के जितने भी तरह के वैरिएंट सामने आए, उनके लक्षणों को तुरंत पहचाना जाए और रोकथाम के उपाय किए जाएं.

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INSACOG नेटवर्क क्या है?
दिसंबर 2020 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के संयुक्त प्रयासों से INSACOG का गठन किया गया. इसमें फिलहाल देश के 28 लैब जुड़े हुए हैं जो कोरोना के अलग-अलग वैरिएंट की जीनोम सीक्वेसिंग करते हैं. इसके तहत रीजनल जीनोम सीक्वेंसिंग लैब (RGSL) को नेटवर्क से जोड़ा गया है. इस एजेंसी का मुख्य मकसद है कि जैसे ही कोरोना का कोई नया वैरिएंट आए, सभी लैब एकसाथ उसका परीक्षण करें और पता लगाएं कि वह कैसे फैलता है.

कोरोना की पहली लहर में सबसे बड़ी समस्या यही थी कि लोगों के इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जब तक मेडिकल फील्ड के जानकार इसे समझ पाते तब तक दुनियाभर के लाखों लोग कोरोना का शिकार हो चुके थे. जब दुनिया में कोरोना के कई नए वैरिएंट आए तब भी इसी एजेंसी ने फटाफट जीनोम सीक्वेंसिंग करके उनका पता लगाया और देश की रक्षा की.

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नेटवर्क में कौन-कौन करता है काम
यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन चुका है जहां देश की सभी बड़ी संस्थाएं एक साथ काम करती हैं. इसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, बायोडेक्नोलॉजी विभाग, काउंसिल ऑफ साइंटिफिकि ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी शामिल हैं. ये सभी संस्थाएं मिलकर कोशिश करती हैं कि कोरोना के किसी भी प्रकार के खतरे का शुरुआत में ही पता लगाकर उससे निपटने के उपाय ढूंढे जाएं.

कैसे काम करता है INCASOG?
INCASOG नेटवर्क ही यह भी तय करता है कि किस प्रकार के कोरोना संक्रमण के दौरान क्या गाइडलाइन होनी चाहिए. सबसे पहले मरीजों के शरीर से सैंपल कलेक्ट किए जाते हैं और उन्हें क्षेत्रीय लैबों में भेजा जाता है. इन लैबों में जीनोम सीक्वेंसिंग की जाती है और यह पहचानने की कोशिश की जाती है कि ये वैरिएंट कितने खतरनाक हैं. यह जानकारी सेंट्रल सर्विलांस यूनिट को दी जाती है ताकि इसका क्लिनिको एपिडेमियोलॉजिकल कोरिलेशन देखा जा सके.

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तैयारियों के हिसाब से उम्मीद जताई जा रही है कि अगर कोरोना का संक्रमण फैलता है तो भारत का INCASOG तेजी से उसके उपाय ढूंढ लेगा और लोगों को खतरे के प्रति आगाह किया जा सकेगा. साथ ही, यह भी तय किया जा सकेगा कि कोरोना का सामना किस तरह किया जाए. संपूर्ण लॉकडाउन से आम जनता को पहले भी कई तरह की समस्याएं हुई हैं, ऐसे में कोशिश यही की जाएगी बिना लॉकडाउन लगाए ही कोरोना से लड़ा जाए.

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