क्या उत्तराखंड के बाद अब असम में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू होने का समय आ गया है. ये सवाल इसलिए उठा रहा है, क्योंकि असम सरकार ने नव्वासी साल पुराने मुस्लिम विवाह और तलाक अधिनियम को खत्म कर दिया है. असम सरकार के इस कदम से अब असम में मुस्लिम विवाह, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर होंगे और मुस्लिम मैरिज एक्ट समाप्त हो जाएगा. आज हम आपको असम के स्पेशल मैरिज एक्ट की पूरी डिटेल बताएंगे.
हिमंत बिस्व सरमा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, 'असम के मुस्लिम समुदाय की बेटियों की रक्षा के लिए हमारे मंत्रिमंडल ने एक निर्णायक फैसला लिया है. नव्वासी वर्ष पुराने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त किया जाएगा.' इस अधिनियम में बाल विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले जैसे प्रावधान शामिल थे.
इसे आसान भाषा में समझें तो अब असम में मुस्लिम मैरिज एक्ट के तहत कोई भी मुस्लिम विवाह रजिस्टर नहीं होगा और शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगी. असम सरकार के इस फैसले को लेकर राजनीति गर्मा गई है. सरकार कह रही है कि इससे बाल विवाह पर रोक लगेगी. जबकि मुस्लिम नेता इसे अपने और धर्म के खिलाफ अन्याय बता रहे हैं. इस पूरे मामले को समझने के लिए सबसे पहले हम मुस्लिम मैरिज एक्ट को DECODE करते हैं.
असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 एक्ट को खत्म करते हुए सबसे बड़ा तर्क यही दिया है कि इससे बाल विवाह को बढ़ावा मिल रहा था. क्योंकि इसमें लड़के और लड़की की शादी के लिए उम्र तय ही नहीं थी. यानि नाबालिकों की शादी हो रही थी. एक तरह से देखा जाए तो छोटी-छोटी बच्चियों की शादी पर अगर रोक लगती है तो ये अच्छा फैसला है. लेकिन मामला मुसलमानों से जुड़ा है तो इसके विरोध में आवाज भी उठ रही है. सवाल ये है कि मुस्लिम मैरिज एक्ट को समाप्त करके, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मुस्लिमों की शादी होगी तो इससे क्या बदलेगा?
क्या होगा बदलाव?
जो 94 मुस्लिम रजिस्ट्रार यानि सरकारी काज़ी, मुस्लिम निकाह के मामलों में रजिस्ट्रेशन के लिए इस एक्ट के तहत काम कर रहे थे, उन सभी को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने के बाद हटा दिया गया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने विधानसभा में कहा कि उन लोगों को ही कटघरे में खड़ा किया जो सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहे है. मुख्यमंत्री ने अपने विरोधियों को ललकारते हुए कहा कि जब तक मैं जिंदा हूं बाल विवाह नहीं होने दूंगा. असम में अब मुसलमानों की शादी भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगी. यानि असम में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए शादी के नियम एक जैसे होंगे. दोनों की शादी एक ही एक्ट के तहत होगी.
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क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट?
इस कानून के जरिए भारत के हर नागरिक को ये संवैधानिक अधिकार दिया गया है कि वो जिस धर्म या जाति में चाहे, वहां शादी कर सकता है. इसके लिए लड़की की उम्र 18 या उससे ज्यादा और लड़के की उम्र 21 या उससे ज्यादा होनी चाहिए. अगर शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुई है, तो तलाक भी जिला कोर्ट से होता है.
भारत के हर व्यक्ति का ये संवैधानिक अधिकार है कि वो जिस धर्म और जाति में चाहे शादी कर सकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए देश की आजादी के बाद 1954 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय एक कानून बनाया गया. इसी कानून को स्पेशल मैरिज एक्ट के तौर पर जाना जाता है. इसे सिविल मैरिज एक्ट भी कहते हैं. इस एक्ट के अनुसार दो अलग-अलग जाति या धर्म के लोग आपस में शादी कर सकते हैं.