Talaq-E-Hasan: क्या 'खुला' से मुस्लिम महिलाएं भी ले सकती हैं तलाक? क्या होता है यह और क्या है प्रक्रिया

कुलदीप सिंह | Updated:Aug 18, 2022, 12:39 PM IST

Talaq-e Hasan: तलाक-ए-हसन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. कोर्ट ने कहा कि इसमें खुला के रूप में मुस्लिम महिलाओं के पास भी तलाक का अधिकार है. जानते हैं कि खुला क्या होता है.  

डीएनए हिंदीः तीन तलाक खत्म होने के बाद अब मुस्लिमों में 'तलाक-ए-हसन' के जरिए तलाक देने की प्रथा का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की जा रही है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान 'खुला' का भी जिक्र किया है. इससे मुस्लिम महिलाएं भी शौहर से अलग हो सकती है. जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की बेंच ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रहना चाहते तो संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है. आखिर खुला होता क्या है इसके बारे में जानते हैं. 

क्या है 'खुला'
खुला इस्लाम में तलाक की एक प्रक्रिया है. इसमें महिला भी अपने शौहर से तलाक ले सकती है. तलाक की तरह खुला का विवरण भी कुरान और हदीस में मिलता है. खुला में पत्नी तलाक लेती है. हालांकि अगर पत्नी अपने पति से तलाक लेती है तो उसे कुछ संपत्ति पति को वापस करनी पड़ती है. इसमें दोनों की सहमति होनी चाहिए. मुस्लिमों में 'मुबारत' से भी दोनों पक्षों की सहमति से ही मुबारत तलाक होता है. हालांकि खुला का प्रस्ताव केवल पत्नी ही रख सकती है.

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क्या है तलाक-ए-हसन?
तीन तलाक की तरह तलाक-ए-हसन भी तलाक देने का एक तरीका है. इसमें शादीशुदा मर्द तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता तोड़ सकता है. तलाक का यह तरीक भी तीन तलाक की तरह एकतरफा ही है. खास बात यह है कि इसमें एक ही बार में तीन बार तलाक नहीं बोला जाता है. तलाक-ए-हसन में शौहर अपनी बीवी को तीन महीने में एक-एक कर तीन बार तलाक बोलता है. तीन महीने पूरे होने और आखिरी बार तलाक बोलने पर दोनों के बीच रिश्ता खत्म हो जाता है. 

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क्या है तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया
तलाक-ए-हसन में तलाक तो तीन बार बोला जाता है लेकिन इनके बीच एक-एक महीने का फासला होता है. यानी एक बाद तलाक बोलने के एक महीने बाद दूसरी बार तलाक बोला जाता है और उसके एक महीने बाद तीसरी बार तलाक बोला जाता है. तीसरी बार तलाक बोलने के बाद तीन तलाक की तरह इसमें भी शादी खत्म हो जाती है. अगर इस बीच शौहर और बीवी में सुलह हो गई या अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है. तलाक-ए-हसन का एक नियम यह भी है कि इसे तब प्रयोग किया जाना चाहिए जब बीवी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो. इसमें संयम, या ‘इद्दत’ 90 दिनों यानी तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए तय है.  

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