डीएनए हिंदीः झारखंड की सियासत में आज का दिन काफी अहम है. लाभ का पद (Office of Profit) मामले में चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत सोरेन (Hemant soren) की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल रमेश बैस को भेजी है. राज्यपाल आज इस मामले में फैसला से सकते हैं. अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता जाती है तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा. सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा की है. चुनाव आयोग की इस सिफारिश के बाद राजधानी रांची में सियासी हलचल तेज हो गई है. आखिर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है और इसे लेकर कानून क्या कहता है, इसे विस्तार से समझते हैं.
क्या होता है 'लाभ का पद' What is Office of Profit?
लाभ का पद उसे कहते हैं जब कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा या लाभ उठा रहा हो. ऐसे करते हुए वह सदन का सदस्य नहीं रह सकता है. मतलब एक साथ जगह का लाभ नहीं ले सकता है. ऐसे में उस शख्स को किसी एक पद को छोड़ना पड़ता है.
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क्या कहती है लोक प्रतिनिधियों के आचरण पर है 1951 की धारा 9A
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए लोकसेवकों को भ्रष्टाचार के लिए उन पर कार्रवाई करने का प्रावधान देती है.
इसमें कहा गया है कि 'भ्रष्टाचार या अभक्ति के लिए पदच्युत होने पर निरर्हता-(1) वह व्यक्ति, जो भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण करते हुए भ्रष्टाचार के कारण या राज्य के प्रति अभक्ति के कारण पदच्युत किया गया है, ऐसी पदच्युति की तारीख से पांच वर्ष की कालावधि के लिए निरर्हित होगा. जाहिर है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए के तहत हेमंत सोरेन को उनके पद से हटाया जा सकता है.
क्या कहता है संविधान?
विधायकों के लिए संविधान में लाभ के पद का जिक्र किया है. जिसपर रहते हुए कोई व्यक्ति विधानसभा का सदस्य नहीं हर सकता है. संविधान के अनुच्छेद 191(1)(ए) में इसका जिक्र है. इसके मुताबिक अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है. अगर राज्य सरकार कोई कानून बनाकर किसी पद को 'लाभ के पद' के दायरे से बाहर रखती है. तो विधायकों की सदस्यता अयोग्य नहीं ठहराई जा सकती है.
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संसद में 'लाभ का पद'
'लाभ का पद' का मामला संसद (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्यों की विधानसभा दोनों में आ सकता है. संविधान में राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों के लिए भी लाभ के पद का जिक्र है. संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(ए) में लाभ के पद के बारे में बताया गया. इसमें कहा गया है कि संसद के किसी सदन का सदस्य होने के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह के पद पर ना हो. इसमें कहा गया है कि सांसद या विधायक ऐसे किसी भी पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या दूसरे फायदे मिलते हों. अगर संसद में किसी सदस्य के लाभ के पद का मामले सामने आता है तो उसमें राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा. अनुच्छेद 103 के मुताबिक इस संबंध में राष्ट्रपति चुनाव आयोग से सलाह ले सकते हैं.
यूपीए सरकार लाई थी कानून
यूपीए-1 सरकार को कार्यकाल में लोकसभा में लाभ के पद की व्याख्या के लिए एक बिल पास किया था. 16 मई 2006 को पास किए गए इस बिल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद समेत 45 पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया था.
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सोनिया गांधी की गई थी सदस्यता
साल 2006 में यूपीए सरकार में सोनिया गांधी के खिलाफ 'लाभ का पद' का मामला सामने आया था. सोनिया गांधी तब रायबरेली से सांसद थीं. इसके अलावा वह मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थीं. तब सोनिया गांधी को भी लाभ का पद होने की वजह से लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि सोनिया गांधी दोबारा रायबरेली से चुनकर संसद पहुंची थीं.
जया बच्चन की भी गई थी सदस्यता
लाभ का पद मामले में राज्यसभा सांसद जया बच्चन की भी सदस्यता जा चुकी है. 2006 में उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष भी थीं. इस कारण उनकी सदस्यता चली गई.
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हेमंत सोरेन के पास हैं ये विकल्प?
अगर राज्यपाल रमेश बैस लाभ का पद मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई फैसला लेते हैं तब भी उनके पास कुछ विकल्प होंगे. वह राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अयोग्य करार दिए जाने के बाद वह सीएम पद से इस्तीफा देकर दोबारा शपथ ग्रहण कर सकते हैं. उनके पास छह महीने के भीतर दोबारा चुनाव जीतकर विधानसभा सदस्य बनने का मौका होगा. इसके अलावा वह अपनी मां रूपी सोरेन और पत्नी कल्पना सोरेन में किसी एक को सीएम बना सकते हैं.
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