डीएनए हिंदीः जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control) को लेकर देश में बहस शुरू हो गई है. बीजेपी सांसद और भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन (Ravi Kishan) ने इसे लेकर प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है. भारत की आबादी भी काफी तेजी से बढ़ रही है. आपके मन में सवाल होगा कि आखिर प्राइवेट मेंबर बिल (Private Member Bill) क्या होता है? आखिर सरकार इस बिल को लेकर क्यों नहीं आ रही है. ऐसे ही हर सवाल का जवाब अपनी इस खास रिपोर्ट में बढ़ते हैं.
कितनी तरह के होते हैं बिल?
संसद में दो तरह के बिल पेश किए जाते हैं. पहला पब्लिक बिल और दूसरा प्राइवेट बिल. पब्लिक बिल को सरकारी बिल के नाम से भी जानते हैं. इस बिल को संबंधित मंत्रालय के मंत्री की ओर से संदन में पेश किया जाता है. इस पर सदन में चर्चा होती है. दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह कानून बन जाता है.
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क्या होता है प्राइवेट मेंबर बिल?
संसद में सार्वजनिक बिल (Public Bill) और प्राइवेट मेंबर्स बिल (Private Member Bill) पेश किए जाते हैं. प्राइवेट बिल कोई सांसद पेश कर सकता है. इसके लिए शर्त इतनी है कि वह मंत्री नहीं होना चाहिए. सत्ताधारी दल या विपक्ष किसी का भी सांसद प्राइवेट बिल पेश कर सकता है. अमूमन विपक्ष की ओर से प्राइवेट बिल पेश नहीं जाते हैं. इसके पीछे कोई नियम नहीं है लेकिन सदन में बहुमत न होने पर उसका पास होना आसान नहीं होता है.
क्या होता है नियम
प्राइवेट मेंबर्स के विधेयकों (Bill) को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है और उन पर चर्चा भी इसी दिन की जा सकती है. अगर शुक्रवार को कोई प्राइवेट मेंबर्स बिल चर्चा के लिए नहीं होता तो उस दिन सरकारी विधेयक पर चर्चा की जाती है. जबकि सरकारी या सार्वजनिक विधेयकों (Public Bill) को सरकार के मंत्री पेश करते हैं और ये किसी भी दिन पेश किए जा सकते हैं. ऐसे विधायकों पर कभी भी चर्चा की सकती है. सरकारी या पब्लिक बिलों को सरकार का समर्थन होता है जबकि प्राइवेट मेंबर्स बिल के साथ ऐसा नहीं है.
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सदन में कैसे पेश किया जाता है बिल
प्राइवेट बिल को सदन में पेश करने से पहले लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में उसके सभापति की मंजूरी जरूरी होती है. वही तय कर सकते हैं कि बिल सदन में पेश करने लायक है कि नहीं. नियम के मुताबिक अगर कोई सांसद प्राइवेट मेंबर बिल पेश करना चाहता है तो उसे कम से कम एक महीने का नोटिस देना होता है. बिल से जुड़ा नोटिस सदन सचिवालय को देना होता है. प्राइवेट मेंबर बिल को केवल शुक्रवार को पेश किया जाता है जबकि पब्लिक बिल को किसी भी दिन पेश और चर्चा की जा सकती है. बिल पेश होने की अनुमति मिलने के बाद प्राइवेट मेंबर बिल यह समीक्षा के लिए विभिन्न विभागों में जाते हैं. जब वहां से इन बिलों को अनुमोदन मिल जाता है, तब ही ये सदन के पटल पर रखे जाते हैं.
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अब तक कितने प्राइवेट मेंबर बिल पास
प्राइवेट मेंबर बिल संसद के कम ही पास हो पाते हैं. इतिहास पर नजर डालें तो 1970 के बाद से अब तक कोई भी प्राइवेट मेंबर बिल संसद से पास नहीं हुआ है. देश आखिरी प्राइवेट मेंबर बिल 1970 में पास हुआ था. यह बिल सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार (Enlargement of Criminal Appellate Jurisdiction) बिल 1968 था. देश में अब तक सिर्फ 14 प्राइवेट बिल ही पास हो पाए हैं. 16वीं लोकसभा में 999 प्राइवेट बिल पेश किए गए थे. हालांकि चर्चा सिर्फ 4 फीसदी बिलों पर ही की गई.
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