Project Zoravar: भारतीय सेना का क्या है प्रोजेक्ट जोरावर? चीन के खिलाफ क्या बनाई रणनीति और क्यों है खास

Written By कुलदीप सिंह | Updated: Aug 29, 2022, 10:15 AM IST

Project Zoravar: प्रोजेक्ट जोरावर के तहत भारतीय सेना चीन से सटी सीमा और खतरे वाले इलाकों में हल्के टैंक तैनात करेगा.

डीएनए हिंदीः चीन मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना खास तैयारी कर रही है. चीन पूर्वी लद्दाख और तनावग्रस्त इलाकों में दुश्मन को करारा जवाब देने के लिए सेना ने चक्रव्यूह तैयार किया है. प्रोजेक्ट जोरावर (Project Zorawar) के जरिए सेना की खतरों वाले इलाके में तैनात करने के लिए हल्के टैंकों (Light Tanks) का निर्माण किया जाएगा. समंदर से लेकर अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में सुरक्षा को और मजबूत बनाने की दिशा में भारत लगातार काम कर रहा है. आधुनिक मिसाइलों से लेकर टैंक, ड्रोन, हेलीकॉप्टर और पोत तैनात किए जा रहे हैं. 

क्या है प्रोजेक्ट जोरावर? 
प्रोजेक्ट जोरावर के तहत भारतीय सेना स्वदेशी लाइटवेट टैंक खरीदने की तैयारी कर रही है. इन टैंकों को पूर्वी लद्दाख में खतरों वाले इलाके में हल्के टैंकों को तैनात करने की योजना है. खास बात ये है कि लाइट टैंक के प्रोजेक्ट का नाम जम्मू कश्मीर रियासत के पूर्व कमांडर, जोरावर सिंह (Zorawar Singh) के नाम रखा गया है. जोरावर सिंह ने 19वीं सदी में चीनी सेना को हराकर तिब्बत में अपना परचम लहराया था. प्रोजेक्ट जोरावर के तहत भारतीय सेना में 350 लाइट टैंक शामिल किए जाएंगे. ये हल्के टैंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रोन सिस्टम से लैस होंगे. इन टैंकों को चीन से सटी सीमा और तनावग्रस्त इलाकों में तैनात किया जाएगा. 

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क्यों पड़ी इस प्रोजेक्ट की जरूरत?
दरअसल भारतीय टैंको का वजन 40 से 70 टन तक है. इनमें सेना से सबसे सफल टैंकों में से एक टी-72 भी शामिल हैं. अब तक बड़ी मशक्कत से इन टैंकों को LAC तक पहुंचाया गया है. लेकिन अभी इन्हें बार बार मूव करना बेहद मुश्किल होता है. ड्रैगन की सेना इस तरह के हल्के टैंकों से पहले से लैस है, जिन्हें पहाड़ों पर आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा सकता है. चीन के साथ उत्तरी सीमा पर सैन्य गतिरोध और चुनौतियों को देखते हुए हल्के टैंक तैनात करने को लेकर कदम उठाया गया है. इसी कारण भारतीय सेना हल्के टैंकों की तैयारी कर रही है.  

क्यों खास है हल्के टैंक?
भारतीय सेना जिन टैंकों का इस्तेमाल कर रही है वह काफी भारी हैं. इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाना काफी मुश्किल भरा काम होता है. T-90S और T-72 टैंक मुख्य रूप से मैदानी और रेगिस्तान में संचालन के लिए डिज़ाइन किए गए थे. इनका वजन भी 45-70 टन के बीच है. दूसरी तरह भारतीय सेनाप्रोजेक्ट जोरावर के तहत जिन टैंकों का निर्माण कराने जा रही है उनका वजन करीब 25 टन होगा. हल्के टैंकों को चिनूक हेलिकॉप्टर से भी LAC तक पहुंचाना आसान हो जाएगा. C-17 ग्लोबमास्टर से भी एक साथ कई टैंक LAC तक पहुंचाए जा सकते हैं. इन टैंकों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया जाएगा. 

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कौन थे जनरल जोरावर?
उन्नीसवीं शताब्दी में बर्फ से जमे तिब्बत को जम्मू कश्मीर का हिस्सा बनने वाले माउंटेन वारफेयर के कुशल रणनीतिकार जनरल जोरावर सिंह की बहादुरी की तारीफ दुश्मन भी करता है. हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 1786 में जन्मे जनरल जोरावर सिंह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया. सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने. डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह की फौज के सबसे काबिल जनरल जोरावर सिंह ने करीब 180 साल पहले खून जमाने वाली ठंड में लद्दाख व तिब्बत को जीता था। तिब्बत जीतने के बाद वापसी के दौरान 12 दिसंबर 1841 में बर्फ में तिब्बती सैनिकों के अचानक हमले में गोली लगने से उन्होंने शहादत पाई थी. तिब्बत के छोरतन में जनरल जोरावर सिंह की समाधि पर तिब्बती भाषा में लिखे शब्द शेरों का राजा इसका सबूत है. रियासी में जनरल का किला उनकी बहादुरी की याद दिलाता है. वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था. वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान, तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था.

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