Sutlej Yamuna Link: सतलज-यमुना लिंक नहर विवाद क्या है? पंजाब और हरियाणा के बीच क्यों हल नहीं हो पा रहा मामला

कुलदीप सिंह | Updated:Oct 17, 2022, 11:43 AM IST

SYL: सतलज यमुना लिंक नहर का मामला इंदिरा गांधी के कार्यकाल से चला आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी मामले का हल नहीं निकल सका है.

डीएनए हिंदीः पंजाब-हरियाणा में सतलज-यमुना लिंक नहर (SYL) को लेकर पंजाब के सीएम भगवंत मान (CM Bhagwant Mann) और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर (CM Manohar Lal Khattar) आमने-सामने हैं. पिछले दिनों दोनों के बीच इसे लेकर बैठक की गई लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है लेकिन दोनों ही राज्य इस मामले में कोर्ट के आदेश के बाद भी झुकने को तैयार नहीं हैं. आखिर दोनों राज्यों के बीच विवाद की क्या वजह है और इसका हल निकलने में क्या समस्या है. विस्तार से समझते हैं.  
 
दोनों राज्यों के बीच क्या है विवाद?
1 नवंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन एक्ट के बाद से पंजाब और हरियाणा अस्तित्व में आए. दोनों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद तभी से शुरू हो गया. इन दोनों के बीच रावी और ब्यास नदी बहती है. दोनों राज्यों की अधिकांश आबादी इन्हीं राज्यों पर निर्भर है. पहले इन राज्यों के लिए पानी का आकलन 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) किया गया था. हालांकि 1971 में इसे बढ़ाकर 17.17 MAF कर दिया गया. इस पानी में से पंजाब को 4.22 MAF, हरियाणा को 3.5 MAF और राजस्थान को 8.6 MAF मिला. 

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सतलज-यमुना लिंक नहर क्या है?
पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद को लेकर  24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पानी के बंटवारे को लेकर अधिसूचना जारी की. हालांकि दोनों राज्यों के बीच विवाद के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका. करीब 5 साल तक दोनों राज्यों के बीच बातचीत चली लेकिन कोई हल नहीं निकल सकता. इसके बाद 1981 में एक बार फिर समझौता किया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल 1982 को पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में सतलज-यमुना लिंक नहर का उद्घाटन किया. यह नगर करीब 214 किमी लंबी है. इसका 122 किमी हिस्सा पंजाब और 92 किमी हिस्सा हरियाणा में पड़ता है.  

1985 में हुआ समझौता  
जैसे ही इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ इसका अकाली दन ने विरोध शुरू कर दिया. जुलाई 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद इस समस्या को हल करने के लिए एक न्यायाधिकरण बनाने पर सहमति बनी. इस ट्राइब्यून के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी (V Balakrishna Eradi) थे. उनकी ओर से 1987 में एक रिपोर्ट दी गई जिसमें पंजाब में 5 एमएएफ और हरियाणा को 3.83 एमएएफ तक की वृद्धि की सिफारिश की गई. 

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विवाद के कारण अटका नहर का निर्माण कार्य
राजीव गांधी के कार्यकाल में इस मामले का हल निकालने के लिए कई बार कोशिश की गई लेकिन लगातार विवाद जारी रहा. दोनों ही राज्य पानी के बंटवारे को लेकर समझौता करने को तैयार नहीं हुए. इस प्रोजेक्ट के उद्घाटन के 40 साल बीच जाने के बाद भी इसका निर्माण नहीं हो सका. 

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
1996 में हरियाणा ने इस प्रोजेक्ट का काम पूरा करने के लिए पंजाब को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को अपने क्षेत्र का काम पूरा करने का निर्देश दिया. इसके बाद पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित किया. इसमें जल-साझाकरण समझौतों को समाप्त कर दिया गया और इस तरह पंजाब में SYL का निर्माण अधर में रह गया. 2020 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को केंद्र सरकार की मध्यस्थता के माध्यम से इस विवाद का निपटारा करने का निर्देश दिया.  

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दोनों राज्यों के क्या है तर्क
पंजाब का तर्क है कि दोनों राज्यों के बीच 60 और 40 फीसदी के आधार पर विभाजन के समय संपत्तियों का बंटवारा किया गया था. 2029 में उसके कई क्षेत्रों में पानी खत्म हो सकता है. गेहूं और धान की फसलों के लिए उसके पास सिंचाई के लिए संकट खड़ा हो सकता है. ऐसे में किसी और राज्य के साथ वह पानी साझा नहीं कर सकता है. नहीं हरियाणा का कहना है कि वह केंद्रीय खाद्य पूल को भारी मात्रा में खाद्यान उपलब्ध कराता है. वहीं न्यायाधिकरण के फैसले के बाद भी उसे उसके हल के पानी से वंचित रखा जा रहा है. पंजाब के पानी ना देने से उसके दक्षिणी इलाके में जलसंकट पैदा हो गया है. 

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