What is Time Capsule: टाइम कैप्सूल क्या होता है ? इंदिरा से लेकर PM मोदी के क्यों दफन हैं राज

कुलदीप सिंह | Updated:Jul 05, 2022, 10:51 AM IST

What is Time Capsule: अयोध्या में भी राम मंदिर निर्माण के साथ ही जमीन में करीब 2 हजार फीट नीचे टाइम कैप्सूल (Time Capsule) की बात सामने आई थी.  

डीएनए हिंदीः वक्त से साथ पुरानी यादें गुम होती जाती है. एक सदी के साथ ही उससे जुड़ा इतिहास भी धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. इतिहास और किसी खास युग की चीजों को ताजा रखने के लिए टाइम कैप्सूल (Time Capsule) के किस्से आपने कई बार सुने होंगे. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) तक का नाम इससे जुड़ा है. कुछ दिनों पहले अयोध्या (Ayodhya) में राममंदिर निर्माण के दौरान भी टाइम कैप्सूल की चर्चा सामने आई थी. आखिर ये टाइम कैप्सूल होता क्या है और इसे क्यों सहेज कर रखा जाता है. इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं. 

क्या होता है टाइम कैप्सूल? What is time capsule
दरअसल टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है. इसे एक खास किस्म की सामग्री से बनाया जाता है. इसकी तुलना कहीं हद तक प्लेन में लगने वाले ब्लैक बॉक्स से कर सकते हैं. हालांकि ब्लैक बॉक्स की तुलना में टाइम कैप्सूल को सदियों तक के लिए सुरक्षित रखा जाता है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है. टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह दिखता है जिसे विशेष प्रकार के तांबे (कॉपर) से बनाया जाता है और इसकी लंबाई करीब तीन फुट होती है. इस तांबे की विशेषता यह होती है कि यह सालों साल खराब नही होता है और सैकड़ों हजारों साल बाद भी इसे जब जमीन से निकाला जाएगा तो इसमें मौजूद सभी दस्तावेज पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं. टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है. यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है. इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है.

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लाल किले में इंदिरा गांधी ने रखवाया टाइम कैप्सूल
देश की पूर्व प्रधानमंत्री (Indira Gandhi) का भी नाम टाइम कैप्सूल से जुड़ चुका है. बात 1970 के शुरूआती दिनों की है. उस दौरान इंदिरा की सफलता चरम पर थी. उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था. सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए. आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उसमें उल्लेख किया जाना था. इंदिरा गांधी की सरकार ने 280 पाउंड के उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था. इस टाइम कैप्सूल को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त, 1973 को लाल किले के परिसर में दफन किया था. इस कालपात्र को लेकर उस समय काफी हंगामा मचा था. विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है. 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया था कि पार्टी कालपात्र को खोदकर निकालेगी और देखेगी कि इसमें क्या है. सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था. अभी तक उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका.

महात्मा गांधी की इतिहास भी टाइम कैप्सूल में मौजूद
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के जीवन से जुड़ी उपलब्धियां और उनके काम को भी टाइम कैप्सूल में रखा गया है. पूर्व उपराष्ट्रपति जी.एस पाठक (Vice President G. S. Pathak) ने नई दिल्ली में महात्मा गांधी से जुड़ी उपलब्धियां टाइम कैप्सूल में कैद कराई थीं. 

पीएम मोदी पर भी लगा था आरोप
नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) पर भी टाइम कैप्सूल को लेकर आरोप लग चुके हैं. बात 2011 की है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है. तीन फुट लंबे और ढाई फुट चौड़े इस स्टील सिलेंडर में कुछ लिखित सामग्री और डिजिटल कंटेट रखा गया था. सरकार के मुताबिक कैप्सूल में गुजरात के पचास साल का इतिहास संजोया गया था. हालांकि तब कांग्रेस की ओर से इसका काफी विरोध किया. पार्टी ने आरोप लगाया कि टाइम कैप्सूल के माध्यम से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास में अपना महिमामंडन करना चाहते हैं. कांग्रेस ने धमकी भी दी कि वह सत्ता में आई तो कैप्सूल निकलवा देगी.

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बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर भी आरोप
टाइम कैप्सूल को लेकर बीएसपी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) पर भी आरोप लग चुके हैं. बात 2009 की है जब वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं. तब यह चर्चा आम थी कि मायावती ने अपनी पार्टी और खुद की उपलब्धियों से जुड़ी हुई जानकारी के दस्तावेज एक टाइम कैप्सूल में रखवाकर कहीं दफन करवाए हैं. हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई.  

2019 में एलपीयू में दफनाया गया टाइम कैप्सूल
जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में जनवरी 2019 में भी एक टाइम कैप्सूल दफनाया गया था. 10 फुट की गहराई में एक टाइम कैप्सूल को गाड़ा गया. इसे 100 साल बाद निकाला जाएगा और 22वीं सदी के लोग देख सकेंगे कि आज के जमाने में किस तरह के सामान, गैजेट और उपकरण इस्तेमाल किए जाते थे. इस कैप्सूल में 100 सामान रखे गए हैं. इनमें लैपटॉप, स्मार्टफोन, ड्रोन, वर्चुअल रियलिटी वाले चश्मे, अमेजन एलेक्सा, एयर फिल्टर, इंडक्शन कुक टॉप, एयर फ्रायर, सीएफएल, टेप रिकॉर्डर, ट्रांजिस्टर, सोलर पैनल, हार्ड डिस्क आदि हैं.  

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अंतरिक्ष में भी भेजे गए हैं टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल के इतिहास की बाद करें तो यह सदियों पुरानी बात है. सदियों पहले भी टाइम कैप्सूल रखे जाते थे. दुनिया में कई जगहों पर टाइम कैप्सूल मिल चुके हैं. अगर बात अंतरिक्ष की करें तो इस मामले में अमेरिका सबसे आगे हैं. अमेरिका अब तब 50 से अधिक टाइम कैप्सूल को भविष्य के लिए संरक्षित रख चुका है. इनमें अंतरिक्ष में भेजे गए टाइम कैप्सूल भी शामिल हैं. अमेरिका ने अपने अपोलो-11 (Apollo-11) मिशन के दौरान चंद्रमा पर टाइम कैप्सूल भेजा. इसमें पृथ्वी से जुड़ी विभिन्न जानकारी भेजी गई थी.  

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