Joshimath Sinking: क्या पूरा जोशीमठ ढह रहा है? समझें कहां है खतरा और कौन है सेफ

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 10, 2023, 01:45 PM IST

Joshimath

Joshimath Sinking Update and Facts: जोशीमठ के बारे में हर दिन डराने वाली खबरें सामने आ रही हैं. कहा जा रहा है कि ज्यादातर इलाके 'डूबने' वाले हैं.

डीएनए हिंदी: उत्तराखंड का जोशीमठ शहर (Joshimath Town) इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है. जमीन, घर, दुकान और होटलों में आई दरारों की वजह से 'जोशीमठ डूब रहा है', 'जोशीमठ धंस रहा है' (Joshimath Sinking) जैसी बातें कही जा रही हैं. अब प्रशासन ने सैकड़ों इमारतों की पहचान भी कर ली है जिनमें दरारें आई हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि कई निर्माणाधीन प्रोजेक्ट और शहर में सीवर सिस्टम की कमी इस घटना का सबसे बड़ा कारण हैं. इस बीच जानकारी सामने आई है कि पूरा जोशीमठ खतरे में नहीं है. थोड़ी-बहुत दरारें भले ही दिख रही हों लेकिन चार वॉर्ड को छोड़कर बाकी के इलाके फिलहाल खतरें में नहीं हैं.

जोशीमठ नगर पालिका परिषद में कुल 9 वार्ड हैं. इसमें से चार वार्ड ऐसे हैं जिनमें सबसे ज्यादा दरारे हैं. ये वॉर्ड मारवाड़ी वॉर्ड, सुनील वॉर्ड (औली की तरफ जाने वाला रास्ता), मनोहर बाग वॉर्ड और सिंहधार वॉर्ड हैं. इसके अलावा, मारवाड़ी वॉर्ड में जेपी पावर कॉलोनी की कुछ इमारतों और जमीन पर भी दरारें देखी गई हैं. कुछ इलाकों में ये दरारें बहुत कम हैं तो कहीं-कहां ये भयावह रूप ले चुकी हैं.

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तपोवन टनल कर रही है नुकसान?
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े वैज्ञानिक इसे एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाद परियोजना के कारण हुआ धंसाव बताते हैं. इस परियोजना की टनल जोशीमठ के नीचे से होकर बन रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टनल के कारण भू जल स्रोत छेड़े गए हैं, जिससे पानी का अंदरूनी रिसाव होने लगा है और यही कारण है कि पहाड़ बैठ रहा है. अगर आप जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति देखें तो समझ आएगा यह पूरा इलाका पहाड़ पर बसा हुआ है. 

जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं वे नदी के पास हैं. इसी इलाके में अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम है. यहीं से ये नदियां बद्रीनाथ की तरफ मुड़ती हैं. पिछले साल आई बाढ़ को लेकर भी लोगों को शक है कि उसकी वजह से भी इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं. वहीं, IIT रुड़की के वैज्ञानिकों का मानना है कि जोशीमठ में कोई सीवर सिस्टम नहीं है, सारा का सारा पानी पहाड़ में जाता है. इस वजह से भी पहाड़ बैठ सकता है.

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वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और IIT रुड़की के वैज्ञानिकों का मानना है कि दोनों नदियों (अलकनंदा और धौलीगंगा) की तेज धार जोशीमठ के नीचे पहाड़ी में कटाव कर रही हैं. यह कटाव इसलिए भी आसानी से हो रहा है, क्योंकि जोशीमठ का पहाड़ मजबूत ना होकर ग्लेशियर मोरन (पहले कभी ग्लेशियर रहा, फिर बर्फ खत्म होने के कारण बची मिट्टी-कंकड़ का ढेर) है.

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