डीएनए हिंदी: भारतीय सेना के जवान अमृतपाल सिंह की मौत के बाद हंगामा मच गया है. पंजाब स्थित उनके गांव में जब उनका शव पहुंचा और सेना की ओर से अमृतपाल को कोई सम्मान नहीं दिया गया तो मामला राजनीतिक हो गया. विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाए कि 'शहीद' होने के बावजूद अमृतपाल सिंह को न तो सलामी दी गई और न ही उनका शव लाने के लिए सरकारी गाड़ी ही भेजी गई. अब इस पर भारतीय सेना ने एक विस्तृत जवाब दिया है और बताया है कि अग्निवीर योजना के तहत सेना में भर्ती हुए अमृतपाल सिंह को पारंपरिक तरीके सम्मान क्यों नहीं दिया गया था.
सेना ने अपने आधिकारिक बयान में इस बात पर जोर दिया है कि वह सैनिकों के बीच इस आधार पर भेदभाव नहीं करती कि वे 'अग्निपथ योजना' के लागू होने से पहले या बाद में सेना में शामिल हुए थे. ऐसे आरोप थे कि अमृतपाल सिंह के अंतिम संस्कार में सैन्य सम्मान नहीं दिया गया क्योंकि वह एक अग्निवीर सैनिक थे. जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल सिंह, अकाली दल नेता सुखबीर बादल और कांग्रेस के नेताओं ने भी कहा था कि इसीलिए सम्मान नहीं दिया गया क्योंकि अमृतपाल सिंह अग्निवीर योजना के तहत सेना में भर्ती हुए थे.
'शहीद नहीं आत्महत्या का केस'
भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि अमृतपाल सिंह ने राजौरी सेक्टर में संतरी की ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी. रविवार रात एक बयान में सेना ने कहा कि अमृतपाल सिंह की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से संबंधित तथ्यों की कुछ गलतफहमी और गलत बयानी हुई है. दरअसल, दावा किया गया था कि अमृतपाल सिंह सीमा पर एक एनकाउंटर के दौरान शहीद हुए थे. सेना ने इस दावे को गलत बताया है.
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सेना ने बताया है कि 11 अक्टूबर को अमृतपाल सिंह ने गोली मारकर खुद की जान ले ली थी. इसके बाद, पहले से तय प्रक्रिया के मुताबिक, उनके पार्थिक शरीर का मेडिकल करवाया गया, कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई और आर्मी के इंतजाम के मुताबिक, एस्कॉर्ट पार्टी भी भेजी गई थी. उनके गांव में उनका अंतिम संस्कार करवाया गया. सेना अपने जवानों के बीच इस आधार पर कोई भेदभाव नहीं करती है कि वे अग्निपथ योजना के तहत भर्ती हुए हैं या नहीं.
सेना ने सामने रखा पूरा रिकॉर्ड
सेना ने यह भी बताया है कि यह ऐसा पहला मामला नहीं है. इसके अलावा, आर्मी ऑर्डर 1967 के मुताबिक, आत्महत्या या खुद को चोट पहुंचाने की वजह से हुई मौत के मामलों में सेना की ओर से ससम्मान अंतिम संस्कार का प्रावधान नहीं हैं. सेना ने यह भी साफ किया है कि शुरू से ही इसी नीति का पालन किया जा रहा है और इसमें कोई भेदभाव नहीं किया गया है.
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सेना की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2001 से अभी तक 100 से 140 मामले ऐसे हैं जिनमें सेना के जवानों की मौत आत्महत्या या खुद को पहुंचाई गई चोट की वजह से हुई है. इन सभी मामलों में सेना की ओर से जवानों का अंतिम संस्कार पारंपरिक रूप से नहीं किया गया. सेना ने ऐसे मामलों पर दुख जताया है और कहा है कि भारतीय सेना अपने जवानों के परिवार के साथ सहानुभूति रखती है और तय प्रोटोकॉल के हिसाब से ही काम करती है.
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