डीएनए हिंदी: ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. एक के बाद एक तीन ट्रेनों की टक्कर में लगभग तीन सौ लोगों की मौत हो गई और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. अब सरकार इस हादसे की सीबीआई जांच करवाना चाहती है. आशंका जताई जा रही है कि जानबूझकर सिस्टम से छेड़छाड़ की गई और ट्रेन सीधे जाने के बजाय दूसरे ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी से जा टकराई. इसमें ट्रेन के उस ड्राइवर की बात भी अहम मानी जा रही है जिसने मरने से पहले कहा था कि उसे ग्रीन सिग्नल मिला था.
आम समझ यह है कि एक ट्रेन 'गलती' से मालगाड़ी से टकरा गई और पलटने के बाद दूसरी ट्रेन भी उसी में जा टकराई. हालांकि, रेलवे के अधिकारियों को इसमें साजिश की बू आ रही है, यही वजह है कि इसकी जांच रेलवे से नहीं बल्कि सीबीआई से करवाई जानी है. अब सवाल उठते हैं कि आखिर सीबीआई इसमें जांचना क्या चाहती है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
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कैसे काम करता है रेलवे का सिग्नल सिस्टम?
डिजिटल टेक्नोलॉजी का सिस्टम लगने के बाद रेलवे में सिग्नलिंग सिस्टम और पटरियां बदलने की प्रक्रिया ऑटोमैटिक मशीनों से होती है. इन्हें रेलवे स्टेशन पर बैठा स्टेशन मास्टर कंट्रोल करता है. जिस लाइन पर ट्रेन को लाना होता है, उसका सिग्नल ग्रीन या येलो करके पटरियां भी उसी के हिसाब से बदल दी जाती हैं. ओडिशा हादसे में मालगाड़ी से जा भिड़ी कोरोमंडल एक्सप्रेस के ड्राइवर ने अपनी मौत से पहले बताया कि उसे ग्रीन सिग्नल मिला था.
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अगर सिग्नल ग्रीन था और कोरोमंडल एक्सप्रेस बीच वाली पटरी पर थी तो उसे लूप लाइन पर जाना ही नहीं था. यानी ग्रीन सिग्नल के साथ-साथ उसे सीधी पटरी पर नहीं जाना था. गड़बड़ यह हुई कि ट्रेन लूप लाइन पर गई और लूप लाइन पर पहले से खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई. इसमें न तो मालगाड़ी की कोई गलती है और न ही तीसरी ट्रेन की. यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जानबूझकर पटरियां बदली गईं या इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी थी. आमतौर पर यह इंटरलॉकिंग सिस्टम खराब होने के बाद भी काम करता है.
कहां है गड़बड़ी की आशंका?
आशंका जताई जा रही है कि जानबूझकर पटरियां नहीं बदली गईं या फिर जानबूझकर ग्रीन सिग्नल दिया गया. सीबीआई इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेगी. रेलवे स्टेशन पर लगे स्क्रीन पर उस स्टेशन की रेंज में आ रही सभी गाड़ियों की जानकारी होती है. पटरी पर दो ट्रेन आसपास आ जाने पर भी रेलवे स्टेशन को सूचना मिल जाती है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इतनी बड़ी चूक या फिर गलती कैसे हो गई?
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आपको बता दें कि आधुनिक सिस्टम में रेलवे की पटरियों से जुड़े तार बिछे होते हैं जो रेलवे स्टेशनों तक जाते हैं. ये तार एक तरह से सेंसर की तरह काम करते हैं और इनमें गड़बड़ी न के बराबर होती है. रेलवे के सूत्रों के मुताबिक, इनमें गड़बड़ी तब तक संभव नहीं है जब तक इंटरनल सिस्टम से कोई छेड़छाड़ न की जाए. ऐसे में सीबीआई को सबसे बड़े सवाल का जवाब तलाशना है कि सिस्टम में गड़बड़ी अपने आप हुई या किसी और ने सिग्नल ग्रीन करके पटरियां बदल दीं?
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