डीएनए हिंदी: जम्मू-कश्मीर की सियासत में इस समय हलचल मची हुई है. जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार द्वारा बधुवार को जब यह बताया गया कि केंद्र शासित प्रदेश में करीब 25 लाख नए वोटर्स के नाम वोटर लिस्ट में जुड़ने की उम्मीद है तो शायद पहले तो किसी ज्यादा समझ नहीं आया लेकिन उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव में वो लोग भी मतदान कर सकेंगे जो राज्य के मूलनिवासी नहीं हैं लेकिन वहां रह रहे हैं तो कश्मीर घाटी के सियासी दलों में हड़कंप मच गया. फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती से लेकर घाटी के अन्य नेताओं ने चुनाव आयोग के इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया. इस मसले के विरोध में नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने 22 अगस्त को सर्वदलीय बैठक बुलाई है.
घाटी से आई तीखी प्रतिक्रिया
जम्मू कश्मीर के चुनाव में गैर-स्थानीय लोगों के मतदान करने संबंधी खबरों पर घाटी के नेताओं की तरफ से लगातार तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा, "क्या भारतीय जनता पार्टी जम्मू कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं के समर्थन को लेकर इतनी असुरक्षित है कि उसे सीटें जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात करने की जरूरत है? जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का मौका दिया जाएगा तो इनमें से कोई भी चीज भाजपा की सहायता नहीं करेगी."
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जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि इस प्रक्रिया का असली उद्देश्य स्थानीय आबादी को शक्तिहीन करना है. महबूबा मुफ्ती ने कहा, "जम्मू कश्मीर में चुनावों को स्थगित करने संबंधी भारत सरकार का निर्णय, पहले भाजपा के पक्ष में पलड़ा झुकाने और अब गैर स्थानीय लोगों को वोट देने की अनुमति देने से चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए है. असली उद्देश्य स्थानीय लोगों को शक्तिहीन करने के लिए जम्मू-कश्मीर पर शासन जारी रखना है." पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन ने इस कदम को "खतरनाक" करार देते हुए कहा कि यह "विनाशकारी" होगा.
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क्यों चुनाव आयोग के फैसले का हो रहा विरोध?
दरअसल आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में लगातार बदलाव आ रहा है. इस केंद्रशासित राज्य में पहली बार चुनाव होने जा रहा है. चुनाव आयोग ने खुद कहा है कि नई वोटर लिस्ट में करीब 25 लाख वोटर्स के नाम जुड़ने की उम्मीद है. इन वोटर्स में बहुत सारे नाम 18+ उम्र वाले युवाओं के तो होंगे ही साथ में सुरक्षाबलों के जवानों और जम्मू व कश्मीर में लंबे समय से रह रहे प्रवासी लोगों के भी होंगे. अब यह लोग भी जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदान कर सकेंगे. बस कश्मीर घाटी के लोगों को इसी से परेशानी है. घाटी के नेताओं का मानना है कि जो 25 लाख नए वोटर मतदाता सूची में जुड़ेंगे उनमें सबसे बड़ी संख्या सुरक्षाबलों और प्रवासी मतदाताओं की होगी, जिसका फायदा सिर्फ औऱ सिर्फ भाजपा को होगा.
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जम्मू-कश्मीर में कितने वोटर बढ़ेंगे?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं की संख्या करीब 78 लाख थी. अगर इसमे से लद्दाख क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या हटा दें तो यह करीब 76 लाख है. अब आने वाले चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची में करीब 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है यानी इस केंद्र शासित राज्य में करीब 30 से 33 फीसदी मतदाता बढ़ जाएंगे. बात अगर 2014 से 2019 के मतदाताओं में अंतर की करें तो यह पता चलता है कि इन दो चुनावों के बीच महज 6.5 लाख मतदाता ही बढ़े थे जबकि इस बार यह संख्या बहुत ज्यादा होने वाली है. इसका मतलब साफ है कि राज्य कि वोटर लिस्ट में जम्मू-कश्मीर की वोटर लिस्ट में करीब 19 लाख मतदाता दूसरे प्रदेशों के होंगे.
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क्या इस बदलाव से भाजपा को होगा फायदा?
जम्मू-कश्मीर में दो संभाग हैं- जम्मू और कश्मीर. जम्मू संभाग में जहां भाजपा का दबदबा है तो वहीं कश्मीर में लड़ाई नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के बीच रहती है. मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी में अभी बीजेपी पनप नहीं पाई है. सियासी जानकारों का भी मानना है कि कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों औऱ प्रवासी लोगों का वोट सीधे तौर पर भाजपा को जा सकता है औऱ यह उसे राज्य में बढ़त बनाने में लाभदायक साबित हो सकता है. सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि जम्मू संभाग में चुनाव आयोग का के फैसले का ज्यादा असर देखने को मिलेगा क्योंकि यहां अमूमन शांति रहती है जबकि कश्मीर में सुरक्षा की चिंता के मद्देनजर कम ही लोग रजिस्ट्रेशन करवाएंगे. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद जम्मू संभाग ने 6 सीटों का इजाफा हुआ है. अब जम्मू में 43 जबकि कश्मीर में 47 सीटें होंगी. ऐसे में यह स्पष्ट है कि भाजपा जम्मू संभाग में बड़ी बढ़त बनाएगी.
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