डीएनए हिंदी: Women Reservation Bill- केंद्र सरकार ने मंगवार को नए संसद भवन में कार्यवाही शुरू होते ही महिला आरक्षण (Women Reservation) पेश कर दिया. इससे पहले सोमवार को मोदी कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दी थी. उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार इस बिल पास करा लेगी. लगभग 27 साल से लंबित पड़े इस बिल को सत्ता पक्ष से लेकर विपक्षी दलों तक पारित करने की मांग कर रहे थे. अगर महिला आरक्षण बिल पारित हो जाता है तो महिलाओं के लिए क्या फायदे होंगे? कितनी सीटें होंगी? आइये इस बारे में तफ्तीश से समझते हैं.
आपको बता दें कि अगर संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो जाता है तो लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई यानी 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, 33 फीसदी कोटा के अंदर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन की महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी. इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है. इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा.
27 साल से यह बिल पेंडिंग
महिला आरक्षण विधेयक को सबसे पहले 1996 में संसद में पेश किया गया था. गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी ने इस बिल की जांच की थी और सात सिफारिशें की थीं. इसके बाद 1998, 1999 और 2008 में विधेयक को पेश किया गया. 2008 में कमेटी की 7 सिफारिशों में से 5 को विधेयक में शामिल कर लिया गया था. इस मुद्दे पर आखिरी बार 2010 में कदम उठाया गया था. लेकिन कुछ सांसदों के विरोध के चलते यह बिल लोकसभा में पारित नहीं हो सका था.
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वर्तमान में कितनी है महिलाओं की भागीदारी
आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में 78 महिलाएं लोकसभा सांसद हैं, जो कुल संख्या 543 के 15 प्रतिशत से भी कम हैं. जबकि जबकि 246 राज्यसभा सीटों में से महिला सांसदों की कुल संख्या 25 है, जो करीब 14 फीसदी है. इसके अलावा राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है. इनमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, पुडुचेरी, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात, गोवा और केरल शामिल हैं.
आरक्षण के बाद किस राज्य में कितनी सीटें होंगी आरक्षित
अगर महिला आरक्षण बिल संसद में पास हो जाता है और इस लागू कर दिया जाता है तो 33 फीसदी महिलाओं की भागेदारी होगी. लोकसभा की 545 सीटों में से करीब 180 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. जबकि राज्यसभा की 246 सीटों में 82 पर महिलाओं की भागीदारी होगी. चलिए राज्यों के हिसाब से लोकसभा सीट बंटवारे आंकडे़ समझते हैं.
- आंध्र प्रदेश में कुल लोकसभा सीट- 25 (महिलाओं के लिए 8 सीट होंगी)
- उत्तर प्रदेश- 80 सीटों पर 27 महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी
- असम- 14 सीटें पर 5 महिलाएं
- बिहार- 40 सीटों पर 14 महिलाएं
- छतीसगढ़- 11 सीटों पर 4 महिलाएं
- गुजरात- 26 सीटों पर 9 महिलाएं
- हरियाणा- 10 सीटों के लिहाज से 4 महिलाएं
- हिमाचल- 4 सीटों पर 1 महिला
- जम्मू-कश्मीर- 5 सीटों पर 2
- झारखंड- 16 सीटों पर 5
- कर्नाटक- 28 सीटों पर 9
- केरल- 20 सीटों पर 7
- मध्य प्रदेस- 29 सीटों पर 10
- महाराष्ट्र- 48 सीटों पर 16
- दिल्ली- 7 सीटों पर 2
- ओडिशा- 21 सीटों पर 7
- राजस्थान- 25 सीटों पर 8
- पंजाब- 13 सीटों पर 4
- तमिलनाडु- 39 सीटों पर 13
- तेलंगाना- 17 सीटों पर 6
- उत्तराखंड- 5 सीटों पर 2
- पश्चिम बंगाल- 42 सीटों पर 14 महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी.
- अन्य राज्यों में भी कुल लोकसभा सीट के एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
क्या बोली कांग्रेस?
कांग्रेस ने कहा कि सबसे पहले राजीव गांधी ने 1989 के मई महीने में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था. वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अनुसार, ‘अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्ह राव ने पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया था. दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए. आज पंचायतों और नगर निकायों में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. यह आंकड़ा 40 प्रतिशत के आसपास है.’ कांग्रेस नेता ने कहा था, ‘‘महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक-तिहाई आरक्षण के वास्ते तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संविधान संशोधन विधेयक लाया था. विधेयक नौ मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ था, लेकिन लोकसभा में नहीं ले जाया जा सका.
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