Assam Meghalaya Border Dispute: असम और मेघालय के बीच क्या है सीमा विवाद, क्यों बार-बार होती है हिंसा, समझिए

नीलेश मिश्र | Updated:Nov 22, 2022, 04:32 PM IST

असम मेघालय सीमा विवाद

Assam Meghalaya Dispute: असम और मेघालय का सीमा विवाद एक बार फिर चर्चा में है. दोनों राज्यों के बीच हुई हिंसक घटना में कई लोगों की जान चली गई है.

डीएनए हिंदी: असम और मेघालय की सीमा पर एक बार फिर हिंसा हुई है. असम-मेघालय बॉर्डर (Assam Meghalaya Border) पर मुक्रोह इलाके में हुए हिंसक संघर्ष में दोनों राज्यों के कई लोगों की मौत हो गई है. हिंसा के बाद कई जिलों में इंटरनेट सेवा (Internet Shutdown) बंद कर दी गई है. मारे गए और घायल हुए लोगों में वन विभाग और पुलिस के लोग भी शामिल हैं. दोनों राज्यों के बीच सीमा से जुड़ा विवाद दशकों पुराना है. असम और मेघालय के बीच कई बार इस तरह के संघर्ष हो चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और पूर्व में भी गृहमंत्रियों की अध्यक्षता में दोनों राज्यों के बीच समझौते भी हो चुके हैं. इसके बावजूद, समस्या का हल नहीं निकल सका है.

असम राज्य पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से लगा हुआ है. इसकी सीमाएं मेघालय के अलावा, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से लगी हुई हैं. सभी राज्यों के साथ असम की सीमाए लगी होने और सभी राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्र पहाड़ी होने की वजह से कई बार सीमा को लेकर विवाद होते रहे हैं. इसी साल गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में दोनों राज्यों में सीमा विवाद को लेकर समझौता हुआ था. उस वक्त उम्मीद जताई गई थी कि अब सीमा विवाद को लेकर संघर्ष खत्म होगा.

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क्या है असम-मेघालय सीमा विवाद?
असम और मेघालय एक दूसरे से 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. 1970 से पहले मेघालय, असम का ही एक हिस्सा हुआ करता था. विभाजन के समय से लेकर अब तक सीमा विवाद बना हुआ है. 12 इलाके ऐसे हैं जिनको लेकर दोनों राज्यों की सरकारों के बीच लंबे समय से चर्चा, समझौतों और प्रस्तावों का दौर चल रहा है. इन सब प्रयासों के बावजूद कई बार हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं. दोनों राज्यों के बीच ऊपरी ताराबारी, गजांग रिजर्व फॉरेस्ट. हाहि, लांगपिह, बोरदुआर, बोकलापड़ा, नोन्गवाह, मतामुर, खानपाड़ा-पिलंगकाटा, देशदेमोरेह के ब्लॉक-1 और 2 के साथ-साथ खांडुली और रेटाचेरा में सीमा विवाद है.

ताजा विवाद पश्चिमी गारो हिल्स क्षेत्र में बसे लांगपिह (मेघालय) में हुआ है. इस जिले की सीमा असम के कामरूप जिले से लगी हुई है. लंबे समय से यही इलाका विवाद की जड़ है. स्थानीय लोगों के घर बनाने, पेड़ों की कटाई करने या खेती करने को लेकर एक-दूसरे की ओर से आपत्ति दर्ज कराई जाती है. वन क्षेत्र होने की वजह से दोनों राज्यों की वन पुलिस यहां आमने-सामने आ जाती है. पिछली कुछ घटनाओं में पुलिस और वन पुलिस के लोग भी हिंसक संघर्षों में मारे जा चुके हैं.

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साल 2010 में भी ऐसी ही एक हिंसक घटना हुई थी. तब भी लांगपिह इलाके में ही गोलीबारी हुई थी. पुलिस की गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई थी. मेघालय के अलावा, असम और मिजोरम की सीमा पर भी संघर्ष हो चुका है. साल 2021 में में असम-मिजोरम सीमा पर हुई गोलीबारी में छह जवानों की मौत हो गई थी. इस हिंसक संघर्ष में 100 से ज्यादा नागरिकों और सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे.

आजादी के बाद बदले हालात
अंग्रेजों के समय लांगपिह क्षेत्र कामरूप जिले का हिस्सा हुआ करता था. आजादी के बाद यह मेघालय की गारो हिल्स का हिस्सा बन गया. इसी को लेकर दोनों देशों के बीच झगड़ा है. असम इसे अपने राज्य की मिकिर हिल्स (अब कार्बी आंगलॉन्ग क्षेत्र) का हिस्सा मानता है. दूसरी तरफ, मेघालय मिकिर हिल्स के ब्लॉक-1 और 2 पर आपत्ति दर्ज कराता है. मेघालय का कहना है कि ये क्षेत्र पहले यूनाइटेड खासी और जयंतिया हिल्स जिले के अंतर्गत आते थे.

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समझौतों से शांत होगा विवाद?
पिछले कुछ सालों में लगातार दोनों राज्यों के बीच समझौते हो रहे हैं. माना जाता है कि 70 प्रतिशत क्षेत्रों को लेकर जारी विवाद का निपटारा हो चुका है. साल 2019 में अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों के बीच सीमा विवाद और उग्रवाद की समस्याओं को सुलझाने के लिए कई समझौते किए गए हैं. इसी साल असम और मेघालय के बीच समझौता हुआ था जिसके बाद कहा गया कि 12 में से 6 जगहों का विवाद सुलझ गया है. इस समझौते में कहा गया कि असम 18.51 वर्ग किलोमीटर जमीन अपने पास रखेगा और 18.28 वर्ग किलोमीटर मेघालय को दे देगा. ये जमीनें कुल 36 गावों में फैली हुई हैं.

समझौतों के चलते ही हिंसक घटनाओं की संख्या कम हुई है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पूर्वोत्तर में साल 2014 में उग्रवाद की घटनाओं की संख्या 824 थी. वहीं, 2015 में 574, 2016 में 484, 2017 में 308, 2018 में 252 और 2019 में 223 थी. पूर्वोत्तर में राज्यों के बीच विवादों को हल करने के लिए कई क्षेत्रीय समितियां बनाई गई हैं. इसके अलावा, जिला स्तर और राज्य स्तर की समितियां भी विवाद को हल करने के लिए काम कर रही हैं.

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